जीवन में जब भी हम खराब दौर से गुजरते हैं, तब मन में यह विचार जरूर आता है कि परमात्मा मेरी परेशानी देखता क्यों नहीं है! मेरे दुःख कम क्यों नहीं करता! पर याद रखिए, जब परीक्षा चल रही होती है, तब शिक्षक मौन रहते हैं।
“दु:ख” और “तकलीफ” भगवान की बनाई हुई वह प्रयोगशाला है, जहां आपकी काबलियत और आत्मविश्वास को परखा जाता है।
सुलझा हुआ मनुष्य वह है, जो अपने निर्णय स्वयं करता है और उन निर्णयों के परिणाम के लिए किसी दूसरे को दोष नहीं देता।
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