काशी सत्संग: ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय - Kashi Patrika

काशी सत्संग: ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय


एक डलिया में संतरे बेचती बूढ़ी औरत से एक युवक अक्सर संतरे खरीदता और खरीदे संतरों से एक संतरा निकाल उसकी एक फांक चखता और कहता, "ये कम मीठा लग रहा है, देखो !"1
बूढ़ी औरत संतरे को चखती और प्रतिवाद करती, "ना बाबू मीठा तो है!"
वह उस संतरे को वही छोड़, बाकी संतरे ले गर्दन झटकते आगे बढ़ जाता।
युवक अक्सर अपनी पत्नी के साथ होता था, एक दिन पत्नी ने पूछा "ये संतरे हमेशा मीठे ही होते हैं, फिर यह
नौटंकी तुम क्यों करते हो?"
युवक ने पत्नी को एक मधुर मुस्कान के साथ बताया- "वो बूढ़ी माँ संतरे बहुत मीठे बेचती है, पर खुद कभी नहीं खाती, इस तरह मै उसे संतरा खिला देता हूं।"

एक दिन बूढ़ी मां से उसके पड़ोस में सब्जी बेचने वाली औरत ने सवाल किया, "ये झक्की लड़का संतरे लेते इतनी चख-चख करता है, पर संतरे तौलते
हुए मैं तेरे पलड़े को देखती हूं, तुम हमेशा उसकी चख-चख में, उसे ज्यादा संतरे तौल देती है?"
बूढ़ी मां ने साथ सब्जी बेचने वाली से कहा, "उसकी चख-चख संतरे के लिए नहीं, मुझे संतरा खिलाने को लेकर होती है। वह समझता है मैं उसकी बात समझती नहीं! मैं बस उसका प्रेम देखती हूं, पलड़ों पर संतरे अपने आप बढ़ जाते हैं।"


किसी फकीर ने सच कहा है, "मेरी हैसियत से ज्यादा मेरी थाली में तूने परोसा है, तू लाख मुश्किलें भी दे दे मालिक, मुझे तुझपे भरोसा है।"
"छीन कर खाने वालों का कभी पेट नहीं भरता और बांट कर खाने वाला कभी भूखा नहीं मरता।" 
"ऊंचा उठने के लिए पंखों की जरूरत तो पक्षियों को पड़ती है, इंसान तो जितना नीचे झुकता है, वह उतना ही ऊपर उठता जाता है।"
ऊं तत्सत...

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