आज यहाँ जब पूरे देश के साथ विश्व को आवश्यकता है सम्पूर्ण औघोगिक क्रांति की जिससे की जो लोग पीछे छूट गए है उन्हें मुख्य धारा में लाया जा सके उस समय चीन और कुछ एक राष्ट्र अपने विस्तार और प्रभुत्व की लड़ाई लड़ रहे है। ये वैसा ही है जो कभी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने किया था। सही मायने में कहां जाए तो ये बिल्कुल युग परिवर्तन का दौर है और इसमें आखरी जीत के परिणाम के रूप में- और अधिक मजबूत व शशक्त भारत के एक स्वर्णिम युग के शुरुआत की पहल है।
चीन अपनी महत्वकांक्षा में बार-बार भारत से उलझने की भूल कर रहा है और दबाब की नीति बना रहा है साथ ही अप्रत्यक्ष रूप में पाकिस्तान समर्थक आतंकवाद को समर्थन दे रहा है ये उसी के लिए घातक होने जा रहा है जिस प्रकार शीत युद्ध के बाद रूस का विघटन शुरू हो गया और रूस ने उससे बहुत बड़ी सीख ली पर चाईना अपने मद में चूर चौथे विश्वयुद्ध की शुरुआत करने को भी तैयार दिख रहा है।
अपनी कमजोरी को जानते हुए भी सीनाजोरी करने की चीन की नीति न केवल निराशावादी है बल्कि उसके स्वार्थी देश होने पर मुहर भी लगाता है। ये चीन के विघटन की विभीषिका की आग की शुरुआत में घी डालने वाला काम है।
चीन को अपने आतंरिक मामले पहले सुलझाने चाहिए न कि आतंकवाद के सहारे दुनिया पर राज करने की साजिश रचनी चाहिए। चीन ने अपने तरह की सैन्य शासन वाले राष्ट्रों को इतनी मदद कर दी की है आज वो लिकतांत्रिक देशों के लिए खतरा पैदा कर रहें हैं।
चीन को जल्द ही अपनी नीति को बदलना होगा नहीं तो सामूहिक बहिष्कार की नीति के तहत चीन को आलग-थलग करने के लिए अन्य देशो को एकजुट होना होगा। ये आज हो जाए तो अच्छा पर न भी हो तो आने वाले समय में होना लगभग तय है।
ये लेखक के निजी विचार है।
- सम्पादकीय
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