गपशप
का हो लोगन कइसन हउअ जा बाल-बच्चा सब मस्ती में और सुनावल जाए। दु दिना से हमनी पेड़ -पौधा का बात करत है जा लेकिन तु लोगन का कोउनो जबाब नहीं आबत बा। एक मिला बस हमर तारीफ कर के चल घायल अरे हम कोउनो नेता थोड़े है की रोज हम भाषण पढ़ब और तु लोगन सुनल जा। अरे कौनो बात होखे, किस्सा कहानी होखे काम कैसे करल जाइ इ पर बात होखे तब न मज़ा बा। चला इ सब जाए दा आजकल जेके देखा उ कहे में विश्वास करा ला करे में कोई के ज्यादा चिंता नहीं बा।
आज हम नीम का पेड़ और उकरे फायदा के विषय में बताइब।
नीम - नीम का पेड़ उष्णकटिबंधीय अउर सम-उष्णकटिबंधीय जलवायु में होला। अपने यहां पाए जावे वाला ई पेड़ बहुते गुणकारी बा। नीमिया का पेड़ बहुत जल्दी बड़ा होखे वाला पौध बा। एकर लम्बाई १५ से २० मीटर होला। कहु-कहु एकर लम्बाई खड़े दुगना भी होला। एकर डाली और शाख मिलाके छायादार गोलाकार बनावा लन। कम पानी में होखे वाला इ पौध जमीन के बंजर और रेगिस्तान होखे से बचावा ला। इहि से लोगन देखबा पाहिले लोग नीम लगावत रहलन की जमीन बचल रहे। इ पेड़ का ईगो और खासियत होला की एकरे कितनो गर्मी झेले का आदत होला। गुण में ई पेड़ का कोउनो सानी नहीं बाटे। एकरे पत्ता और फल से तेल, आयुर्वेदिक दवा, एंटीसेप्टिक, साबुन बहुत कुछ बनावल जा ला। कौनो रोग होखे ओ में बहुत गुणकारी बा, पुरनिया लोग नीम के डंठल से दातुन करे जेसे उन्हनी के रोगो कम होत रखे।
नीम के फूल – कुंवर नारायण
एक कड़वी–मीठी औषधीय गंध सेबाकि मिले पे।
भर उठता था घर
जब आँगन के नीम में फूल आते।
साबुन के बुलबुलों–से
हवा में उड़ते हुए सफ़ेद छोटे–छोटे फूल
दो–एक माँ के बालों में उलझे रह जाते
जब की तुलसी घर पर जल चढ़ाकर
आँगन से लौटती।
अजीब सी बात है मैंने उन फूलों को जब भी सोचा
बहुवचन में सोचा
उन्हें कुम्हलाते कभी नहीं देखा – उस तरह
रंगारंग खिलते भी नहीं देखा
जैसे गुलमोहर या कचनार – पर कुछ था
उनके झरने में, खिलने से भी अधिक
शालीन और गरिमामय, जो न हर्ष था
न विषाद।
जब भी याद आता वह विशाल दीर्घायु वृक्ष
याद आते उपनिषद् : याद आती
एक स्वच्छ सरल जीवन–शैली : उसकी
सदा शान्त छाया में वह एक विचित्र–सी
उदार गुणवत्ता जो गर्मी में शीतलता देती
और जाड़ों में गर्माहट।
याद आती एक तीखी
पर मित्र–सी सोंधी खुशबू, जैसे बाबा का स्वभाव।
याद आतीं पेड़ के नीचे सबके लिये
हमेशा पड़ी रहने वाली
बाघ की दो चार खाटें
निबौलियों से खेलता एक बचपन…
याद आता नीम के नीचे रखे
पिता के पार्थिव शरीर पर
सकुचाते फूलों का वह वीतराग झरना
– जैसे माँ के बालों से झर रहे हों –
नन्हें नन्हें फूल जो आँसू नहीं
सान्त्वना लगते थे।
- बाबा सुतनखु
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