“विश्वनाथ कॉरिडोर” अपनी बंसी, अपना राग - Kashi Patrika

“विश्वनाथ कॉरिडोर” अपनी बंसी, अपना राग

काशी विश्वनाथ मंदिर “कॉरिडोर” के विरोध में एकजुट होने वालों की संख्या में  जहाँ  एक ओर बढ़ोतरी  हो रही  है। वही, काशी वासी मूक दर्शक बन अपनी पहचान खोने वाले हैं ।  हाल ही में बिहार का यादव समाज भी धरोहर बचाओ आंदोलन में कूद पड़ा हैं । आगे भी विरोध के सुर और तेज होने का अंदेशा है। दूसरी तरफ  शासन का पक्ष हैं कि यहां लगातार बढ़ रहे श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए मंदिर का विस्तारीकरण समय की मांग है... 

शासन का तर्क
उधर, शासन-प्रशासन का तर्क है कि यह काम धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा कर नहीं किया जाएगा। सौंदर्यीकरण के दौरान इस बात का विशेष ध्यान जाएगा सभी लोग संतुष्ट रहें। वहीं, काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी और वाराणसी विकास समिति के सचिव विशाल सिंह ने विरोध को भ्रम की स्थिति फैलाने वाला करार दिया। उन्होंने लोगों से इस सौंदर्यीकरण में सहभाग करने की अपील की है। उन्होंने खासतौर पर कॉरिडोर प्रभावित क्षेत्र में रहने वालों से सहयोग की अपील की है। विशाल सिंह ने दावा किया कि विस्तारीकरण में पड़ने वाले पुराने मकानों या फिर पौराणिक मंदिरों को ध्वस्त नहीं किया जाएगा, बल्कि ऐसी इमारतों और मंदिरों को संरक्षित किया जाएगा।

विस्तारीकरण समय की मांग
इस योजना पर काम कर रहे अधिकारियों का मानना है कि यहां लगातार बढ़ रहे श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए मंदिर का विस्तारीकरण समय की मांग है। प्रोजेक्ट के मुताबिक कॉरिडोर में नक्काशीदार पिलर्स के अलावा दीवारों पर भी देवी-देवताओं की आकृतियां उकेरी जाएंगी। कॉरीडोर के दोनों तरफ देव प्रतिमाओं के विग्रह स्थापित किए जाने की भी योजना है। साथ ही कॉरिडोर में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की ऋचाएं, उपनिषद और 18 पुराणों के मंत्र भी लगातार गूंजेंगे।

रजामंदी में भी
हालांकि, सरकारी दावों के उलट इलाके से बाहर आई तस्वीरें मंदिरों के तोड़े जाने की बात सही साबित करती प्रतीत हो रही हैं। "कॉरिडोर" क्षेत्र में रहने वाले लोगों में भी विरोध की सुगबुगाहट है। इस प्रोजेक्ट के तहत करीब 160 इमारतों को तोड़ने की योजना है, जिनमें 15 लोगों ने अपनी सम्पति सरकार के नाम कर दी है और 60 लोगों ने सहमति दर्ज करा दी है, ऐसा प्रशासन का दावा है। 

संघर्षकर्ताओं की बात
इन सबके बीच प्रोजेक्ट के विरोध में मुखर "धरोहर बचाओ समिति-काशी" अपनी आवाज प्रदर्शन, यात्रा और सोशल साइट के जरिए पूरे देशवासियों तक पहुँचाने को प्रयासरत है। समिति की ओर से कुछ मकानों पर हाथ से लिखे कागज चिपकाएं गए हैं जिस पर लिखा है, "ये बिक्री का नहीँ है, कृपया इस संदर्भ में बात न करें।" इलाके में रहने वाले कुछ व्यापरियों का तर्क है कि यहां से स्थान बदलने से पता भी बदल जाएगा, जिसका असर व्यापार पर पड़ेगा।" 
यानी, दोनों पक्ष अपनी बंसी, अपना राग बजा रहे हैं। इन सबके बीच “कॉरिडोर” निर्माण का कार्य जारी है और विरोध में भी कमर कसने की तैयारी तेज है। 



(नोट: इस पूरे प्रकरण में आप सभी दर्शक-पाठक के मत (पक्ष या विपक्ष) का काशी पत्रिका स्वागत करता है। अपनी पत्रिका के माध्यम से अपनी बात या सवाल प्रशासन तक पहुंचाएं)

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