तू किसी रेल सी गुजरती है/दुष्यंत कुमार - Kashi Patrika

तू किसी रेल सी गुजरती है/दुष्यंत कुमार

दुष्यंत कुमार » साये में धूप।।

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो गजल आपको सुनाता हूँ।

एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ।

तू किसी रेल-सी गुजरती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ।

हर तरफ ऐतराज होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूँ।

एक बाजू उखड़ गया जबसे
और ज्यादा वजन उठाता हूँ।

मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने करीब पाता हूँ।

कौन ये फासला निभाएगा
मैं फरिश्ता हूँ सच बताता हूँ।

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