चुनाव-दर-चुनाव प्रचार-प्रसार का पर होने वाले व्यय को पार्टियां बढ़ाती जा रही हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव ने इस मामले में सभी आंकड़ों को पार करते हुए खर्च के मामले में ‘अब तक का सबसे महंगा’ विधानसभा चुनाव रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज कर लिया है। चुनाव पर होने वाले खर्च का लगातार बढ़ना सोचनीय है, आखिर इस खर्च का भार किस पर पड़ेगा? साथ ही यह भी प्रश्न उठता है कि राजनीतिक दलों के पास इतना रुपया आया कहा से? हालांकि, खर्च का लेखाजोखा सही भी हो, तो प्रचार पर भाड़ी-भरकम रकम लगाना कहा तक उचित है?
एक गैर सरकारी संगठन और थिंक टैंक के रूप में काम करने वाला सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज ने अपने सर्वे में कर्नाटक चुनाव को ‘धन पीने वाला’ चुनाव बताया है। सीएमएस के अनुसार विभिन्न राजनीतिक पार्टियों और उनके उम्मीदवारों द्वारा कर्नाटक चुनाव में 9,500-10,500 करोड़ रुपए के बीच धन खर्च किया गया। यह खर्चा राज्य में आयोजित पिछले विधानसभा चुनाव के खर्च से दोगुना है। इस सर्वे की बड़ी बात ये है कि इसमें प्रधानमंत्री के अभियान में हुआ खर्चा शामिल ही नहीं है। सर्वेक्षण में बताया गया है कि कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु देश में विधानसभा चुनाव में खर्चे के मामले में सबसे आगे हैं। सीएमएस के एन भास्कर राव ने कहा कि खर्च की दर अगर यही रही तो 2019 के लोकसभा चुनाव में 50,000-60,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है, जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में 30,000 करोड़ रूपया खर्च हुआ था।
दरअसल, हेलिकॉप्टरों की मांग से विभिन्न दलों की ‘अमीरी’ और ‘गरीबी’ का भी पता चलता है। एडीआर के अनुसार पिछले वित्त वर्षों में भाजपा की आय 81 प्रतिशत बढ़ी है। इस हिसाब से ‘अमीर’ भाजपा ने कर्नाटक चुनाव में प्रचार के लिए निर्वाचन आयोग के पास हेलिकॉप्टर सेवा की मांग से संबंधित 53 आवेदन दिए थे। वहीं एडीआर के अनुसार कांग्रेस की आय में 14 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, इसलिए इस ‘गरीब’ पार्टी ने कर्नाटक चुनाव में प्रचार के लिए सबसे कम 10 हेलिकॉप्टरों का आवेदन आयोग को दिया था। कर्नाटक चुनाव में हेलिकॉप्टरों की मांग में दूसरे स्थान पर जनता दल (एस) रही, जिसने निर्वाचन आयोग को हेलिकॉप्टर-प्रचार के लिए 16 आवेदन सौंपे थे।
कुल मिलाकर, महंगे होते चुनाव प्रचार पार्टियों में अमीर प्रत्याशियों की बढ़ती संख्या की ओर भी इशारा करते हैं। लेकिन इस खर्च की भरपाई किसके जेब पर भारी पड़ेगी यह चिंता का विषय है।
- संपादकीय
एक गैर सरकारी संगठन और थिंक टैंक के रूप में काम करने वाला सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज ने अपने सर्वे में कर्नाटक चुनाव को ‘धन पीने वाला’ चुनाव बताया है। सीएमएस के अनुसार विभिन्न राजनीतिक पार्टियों और उनके उम्मीदवारों द्वारा कर्नाटक चुनाव में 9,500-10,500 करोड़ रुपए के बीच धन खर्च किया गया। यह खर्चा राज्य में आयोजित पिछले विधानसभा चुनाव के खर्च से दोगुना है। इस सर्वे की बड़ी बात ये है कि इसमें प्रधानमंत्री के अभियान में हुआ खर्चा शामिल ही नहीं है। सर्वेक्षण में बताया गया है कि कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु देश में विधानसभा चुनाव में खर्चे के मामले में सबसे आगे हैं। सीएमएस के एन भास्कर राव ने कहा कि खर्च की दर अगर यही रही तो 2019 के लोकसभा चुनाव में 50,000-60,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है, जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में 30,000 करोड़ रूपया खर्च हुआ था।
दरअसल, हेलिकॉप्टरों की मांग से विभिन्न दलों की ‘अमीरी’ और ‘गरीबी’ का भी पता चलता है। एडीआर के अनुसार पिछले वित्त वर्षों में भाजपा की आय 81 प्रतिशत बढ़ी है। इस हिसाब से ‘अमीर’ भाजपा ने कर्नाटक चुनाव में प्रचार के लिए निर्वाचन आयोग के पास हेलिकॉप्टर सेवा की मांग से संबंधित 53 आवेदन दिए थे। वहीं एडीआर के अनुसार कांग्रेस की आय में 14 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, इसलिए इस ‘गरीब’ पार्टी ने कर्नाटक चुनाव में प्रचार के लिए सबसे कम 10 हेलिकॉप्टरों का आवेदन आयोग को दिया था। कर्नाटक चुनाव में हेलिकॉप्टरों की मांग में दूसरे स्थान पर जनता दल (एस) रही, जिसने निर्वाचन आयोग को हेलिकॉप्टर-प्रचार के लिए 16 आवेदन सौंपे थे।
कुल मिलाकर, महंगे होते चुनाव प्रचार पार्टियों में अमीर प्रत्याशियों की बढ़ती संख्या की ओर भी इशारा करते हैं। लेकिन इस खर्च की भरपाई किसके जेब पर भारी पड़ेगी यह चिंता का विषय है।
- संपादकीय
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