बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

दोब्रे उतरो 

भारत और यूरोप का नज़दीक आना जारी है। आज जब विश्व की दशा और दिशा परिवर्तिति हो रही है और अमूमन सभी देश अपने-अपने आपसी झगड़े सुलझाकर विश्व को एक सामूहिक धरातल पर लाने का प्रयास कर रहें है तो उस समय भारत और यूरोप के देशों का साथ-साथ खड़ा होने सुखदायी है।

हालिया प्रधानमंत्री के यूरोप दौरे में ये बात और पुख्ता रूप से दिखाई दी जब यूरोप ने भारत को नए आर्थिक क्षेत्र के रूप में देखते हुए समुचित मंच प्रदान किया। साल भर पहले हुए प्रधानमंत्री के यूरोप दौरे से स्थिति कही आगे निकल गई है और अब हर वैश्विक मंच पर भारत और यूरोप साथ-साथ दिखाई देतें है।

इसमें गौर करने वाली बात ये है की यूरोप के अधिकांश देश आज अमेरिका से कहीं ज्यादा रशिया के नजदीक दिखाई देते है फिर चाहे मुद्दा सीरिया में हुए बमबारी का ही क्यों न हो। रशिया भारत का सबसे पुराना दोस्त रहा है पर ऐसा क्या हो गया है कि अब भारत और रशिया के रिश्तों की वो गर्माहट अब ऊपरी तौर पर नजर नहीं आती।

इस गर्मजोशी के पीछे बहुत हद तक कारण रशिया ही हैं जब शीत युद्ध के बाद रशिया शांत था तो भारत ने बहुत तेजी से अपनी अर्थव्यवस्थ में सुधार किया और आगे निकल आया। पर रशिया जब शीत युद्ध की विभीषिका से बाहर आया तो उसके किसी भी देश से सम्बन्ध न के बराबर बच गए। ऐसे में उसने एक उभरती हुई शक्ति चीन के साथ चलना बेहतर समझा बानीमत भारत के और आज परिणाम सामने है।

भारत और चीन में एक बहुत बड़ा अंतर है सर्वमान्यता का; सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य होते हुए भी चीन पर और वहां के लोगों पर विश्व का विश्वास अमूमन कम ही दिखाई देता है। और कारण साफ़ है वहां का सैन्य शासन जो किसी भी देश के लिए लम्बे समय में घातक है। ऐसा नहीं है की चीन के सम्बन्ध विश्व में नहीं है पर वो सरे सम्बन्ध सौहार्द से बढ़कर गुलामी करने से है। जहाँ चीन की सत्ता कुछ मुट्ठी  भर लोगों के हाथ में फसी है वही भारत की राजनैतिक व्यवस्था में पक्ष-विपक्ष के साथ-साथ आम जनता का भी उतना ही योगदान है।

बात रशिया की तो अब वो समय आ गया है जब रशिया अपने और भारत के अटूट संबंधों का खुलकर दिखावा कर सकता है। वैश्विक मंच पर उसका जितना सहयोग भारत एक लोकतान्त्रिक देश होते हुए कर सकता है उतना चीन एक मिलिट्री रेजिम होते हुए नहीं कर सकता। बात लोगों के सर्वमान्य स्वीकार्यता की है न की आर्थिक ताकत का तमगा दिखाकर अपनी बात मनवाने की। रशिया की यूरोप से नजदीकी यह राह और आसान करने वाली है।

- संपादकीय 

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