बहुत फिल्मी है, सत्यजीत रे की प्रेम कहानी - Kashi Patrika

बहुत फिल्मी है, सत्यजीत रे की प्रेम कहानी

जन्मदिवस विशेष।

भारतीय सिनेमाई सफर सत्यजीत रे के जिक्र के बिना अधूरा है। अगर कहा जाए कि सत्यजीत रे चलता-फिरता फिल्म संस्थान थे और उनकी फिल्में सिनेमा का सिलेबस हैं, तो यह कहीं से भी अतिश्योक्ति नहीं होगी। विश्व पटल पर हिंदी सिनेमा को पहचान दिलाने वाले सत्यजित रे को देश ने "पद्मश्री", "पद्मविभूषण", "दादासाहेब फाल्के" सहित 32 राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा, तो "ऑस्कर अवॉर्ड" उनके लिए चलकर भारत आया।
परदे पर खूबसूरत कहानियां गढ़ने वाले रे की प्रेम कहानी भी काफी फिल्मी है।  सत्यजीत रे की पत्नी विजया ने अपनी जीवनी 'माणिक एंड आई' में अपनी और सत्यजीत रे की प्रेम कहानी के रोमांचक पहलुओं का खुलासा करते हुए लिखा है, "आठ साल के प्रेम संबंध के बाद हमने गुपचुप शादी कर ली। उसके बाद अपने- अपने परिवारों को मनाने के लिए योजना बनाई।"
पेंगुइन प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब में विजया ने लिखा है कि वह किशोरावस्था से ही सत्यजीत रे की दोस्त थीं, लेकिन 1940 में पहली बार दोनों के बीच प्रेम की भावना अंकुरित हुई। इसके बाद दोनों को लगा कि वह कभी भी शादी नहीं कर सकेंगे, क्योंकि उनके परिवार वाले कभी उन दोनों का रिश्ता स्वीकार नहीं करेंगे। विजया ने लिखा है, ''वह मुझसे उम्र में छोटे थे और एक करीबी रिश्तेदार थे। इस वजह से शादी की संभावना ही नहीं थी। इसलिए हम दोनों ने फैसला किया कि हम कभी शादी नहीं करेंगे। हम चाहते थे कि हमारी जिंदगी जैसी थी वैसे ही     चलती रहे।"

कोलकाता टू मुंबई

विजया लिखती हैं, "जब फिल्मों में काम की तलाश में मैं मुंबई आई, तो रे ने मुझे प्रेम पत्र लिखने शुरू कर दिए और वह अक्सर मुझसे मिलने  कोलकाता से मुंबई आने लगे।" सत्यजीत रे और विजया के बीच लगातार होती मुलाकातों से उनका प्रेम और गहरा हुआ और दोनों को लगने लगा कि अब वह एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते, बस फिर उन्होंने शादी कर ली।

परिवार से बगावत!

दोनों ने मुंबई में सत्यजीत के परिवार वालों को बताए बिना रजिस्टर्ड मैरिज की योजना बनाई, जिसे विजया की मां ने कर खारिज कर दिया। इसकी अनदेखी कर दोनों ने 20 अक्टूबर, 1949 को विजया की बहन के घर पर शादी कर ली। इसके बाद एक छोटे प्रीतिभोज का आयोजन किया गया, जिसमें पृथ्वी राज कपूर अपनी पत्नी के साथ आए थे। विजया ने लिखा है, ''मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी सचमुच उनसे शादी हो सकेगी और जब ऐसा हुआ तब हम इससे खुश भी हुए और हमें दुख भी हुआ क्योंकि हमें अपनी शादी छिपानी थी. हम एक साथ रह भी नहीं सकते थे।"

दोबारा शादी

सत्यजीत रे ने अपने पारिवारिक मित्र और चिकित्सक नोशो बाबू को अपने और विजया के बारे में सब कुछ बता दिया। तब नोशो बाबू ने उन्हें अपनी मां को मनाने के लिए एक योजना बताई और रे ने अपनी शादी का खुलासा किए बिना अपने घर में घोषणा कर दी कि वह विजया के अलावा किसी और से शादी नहीं करेंगे? अनिच्छापूर्वक और बहुत ज्यादा मनाने के बाद उनकी मां मान गईं और तीन मई, 1949 को सत्यजीत और विजय की दोबारा शादी बंगाली रीति-रिवाजों के अनुसार हुई। इस तरह सत्यजीत रे और विजया की प्रेम कहानी का सुखद अंत हुआ।

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