मरणासन्न स्थिति में पहुंच चुकी कांग्रेस फिर सांस लेने लगी है। पार्टी के पुराने ढर्रे से हटकर काम करने की कोशिश में राहुल गांधी इस बार आत्मविश्वास से भरे नजर आ रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी संगठन में बदलाव कर रहे हैं और ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जिम्मेदारी सौंप रहे हैं। अलग-अलग राज्यों के वरिष्ठ पदाधिकारियों के दफ्तरों में उनके सहायकों के रूप में 44 में से 30 नए सचिव चुने गए हैं। कहा जा रहा है कि करीब 70 युवा नेताओं की फेहरिस्त ऐसी ही सेवाओं के लिए तैयार कर ली गई है। वैस भी, इस समय देश में युवाओं की लगातार बढ़ती आबादी को देखते हुए तमाम राजनीतिक पार्टियां युवाओं को फोकस में रखकर योजनाएं बना रही हैं। युवाओं की शिक्षा, उनके स्वास्थ्य और रोजगार को मूल में लेकर योजनाओं पर विचार किया जा रहा है और कुछ पर क्रियान्वयन भी। ऐसे में, राहुल गांधी द्वारा कई राज्यों में नए नेताओं को अहम जवाबदेही सौंपने का फैसला स्वागत योग्य है। हालांकि, जब राहुल कांग्रेस में पहली बार सक्रिय हुए तब भी उन्होंने कई युवा नेताओं को संगठन में जगह दी थी। फिर कांग्रेस के अंदरूनी राजनीति का स्वरूप देखते हुए उस वक्त यह प्रक्रिया जोर नहीं पकड़ पाई, क्योंकि कांग्रेस में इस बात की हिचक रही कि ऊपर से नीचे तक एकबारगी बदलाव से वरिष्ठ नेताओं में नाराजगी आ सकती है और एक अंदरूनी टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है।
फिलहाल, कांग्रेस फिर से अपनी जमीन तैयार कर रही है और वापसी की उम्मीद भी। यह देश की राजनीति के लिए अच्छे संकेत है, क्योंकि सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों का मजबूत होना जरूरी है। एक समय भाजपा भी बिलकुल ख़त्म होने के कगार पर थी, किंतु लौट आई और जनता को चुनाव का मौका मिला। उस समय सत्ता से जनता असन्तुष्ट थी, ठीक वैसी ही स्थिति एक बार फिर बनती दिख रही है। युवा देश में युवाओं से जुड़े सबसे बड़े मुद्दे रोजगार के सवाल पर प्रधानमंत्री लगातार आलोचना झेल रहे हैं। अनुमान के मुताबिक साल 2017 तक तकरीबन 40 करोड़ 84 लाख से ज्यादा बेरोजगार युवा आबादी देश की तरक्की को मुंह चिढ़ा रहे हैं। मैककिंसी ग्लोबल इंस्टिट्यूट के मुताबिक, साल 2011 से 2015 के बीच खेती से जुड़े रोजगार 2 करोड़ 60 लाख तक सीमित हो गए, जबकि गैर-कृषि रोजगार का आंकड़ा बढ़कर 3 करोड़ 30 लाख तक पहुंच गया। श्रम मंत्रालय की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक टेक्सटाइल्स और ऑटोमोबाइल्स समेत आठ क्षेत्रों में रोजगार पैदा होने की गति पिछले सात सालों में सबसे कम रही है, जबकि प्रधानमंत्री ने 2014 के आम चुनावों में हर साल 1 करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था।
कुल मिलाकर, वादों पर सत्ता की विफलता एक बार फिर कांग्रेस के लिए नए अवसर का सृजन करती दिख रही है। साथ ही राहुल भी बदलते राजनीतिक परिवेश को देखते हुए अपने हिसाब से संगठन को एक नया रूप दे रहे हैं। वह महसूस कर रहे हैं कि बदलते दौर में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को अपनी शैली बदलनी ही होगी। उसे हर चीज थोपने की आदत से परहेज करना होगा। यहीँ वजह है कि पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को कमान दी गई, तो कर्नाटक में भी सिद्धारमैया को अहम निर्णय लेने की छूट दी गई है। उनकी सलाह पर अमल किया गया। अशोक गहलोत और गुलाम नबी आजाद जैसे नेताओं को भी अहम जिम्मेदारी दी गई है। राहुल गांधी के अपने-अपने समुदायों में पकड़ रखने वाले जिग्नेश मेवानी और हार्दिक पटेल जैसे नेताओं से मिलने का सकारात्मक संदेश गया है। यानी जनता के पास मजबूत पक्ष और विपक्ष दोनों मौजूद होंगे, ऐसे संकेत मिल रहे हैं, यह देश के लिए सकारात्मक संकेत हैं।
-संपादकीय
फिलहाल, कांग्रेस फिर से अपनी जमीन तैयार कर रही है और वापसी की उम्मीद भी। यह देश की राजनीति के लिए अच्छे संकेत है, क्योंकि सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों का मजबूत होना जरूरी है। एक समय भाजपा भी बिलकुल ख़त्म होने के कगार पर थी, किंतु लौट आई और जनता को चुनाव का मौका मिला। उस समय सत्ता से जनता असन्तुष्ट थी, ठीक वैसी ही स्थिति एक बार फिर बनती दिख रही है। युवा देश में युवाओं से जुड़े सबसे बड़े मुद्दे रोजगार के सवाल पर प्रधानमंत्री लगातार आलोचना झेल रहे हैं। अनुमान के मुताबिक साल 2017 तक तकरीबन 40 करोड़ 84 लाख से ज्यादा बेरोजगार युवा आबादी देश की तरक्की को मुंह चिढ़ा रहे हैं। मैककिंसी ग्लोबल इंस्टिट्यूट के मुताबिक, साल 2011 से 2015 के बीच खेती से जुड़े रोजगार 2 करोड़ 60 लाख तक सीमित हो गए, जबकि गैर-कृषि रोजगार का आंकड़ा बढ़कर 3 करोड़ 30 लाख तक पहुंच गया। श्रम मंत्रालय की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक टेक्सटाइल्स और ऑटोमोबाइल्स समेत आठ क्षेत्रों में रोजगार पैदा होने की गति पिछले सात सालों में सबसे कम रही है, जबकि प्रधानमंत्री ने 2014 के आम चुनावों में हर साल 1 करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था।
कुल मिलाकर, वादों पर सत्ता की विफलता एक बार फिर कांग्रेस के लिए नए अवसर का सृजन करती दिख रही है। साथ ही राहुल भी बदलते राजनीतिक परिवेश को देखते हुए अपने हिसाब से संगठन को एक नया रूप दे रहे हैं। वह महसूस कर रहे हैं कि बदलते दौर में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को अपनी शैली बदलनी ही होगी। उसे हर चीज थोपने की आदत से परहेज करना होगा। यहीँ वजह है कि पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को कमान दी गई, तो कर्नाटक में भी सिद्धारमैया को अहम निर्णय लेने की छूट दी गई है। उनकी सलाह पर अमल किया गया। अशोक गहलोत और गुलाम नबी आजाद जैसे नेताओं को भी अहम जिम्मेदारी दी गई है। राहुल गांधी के अपने-अपने समुदायों में पकड़ रखने वाले जिग्नेश मेवानी और हार्दिक पटेल जैसे नेताओं से मिलने का सकारात्मक संदेश गया है। यानी जनता के पास मजबूत पक्ष और विपक्ष दोनों मौजूद होंगे, ऐसे संकेत मिल रहे हैं, यह देश के लिए सकारात्मक संकेत हैं।
-संपादकीय
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