गपशप
का हो लोगन कइसन हउअ जा बाल-बच्चा सब मस्ती में और सुनावल जाए। आज ले हमनी नीम, पारिजात, सागौन, कनेर, महुआ, और गूलर के पेड़ लगावे के बारे में बतियावल गयल। हमनी जा आज खाली जगहे पे बरगद के पेड़ लगावे के विषय में बात करल जाइ। बरगद का पेड़ बहुते विशाल हो सके ला अऊर एकर जड़ जमीन में दूर ले फैली। अइसे त बरगद का पेड़ अपने आप हो जा ला लेकिन आज के लोगन हर जगह त घर दुआर बना देहले हउअन और खली जमीने पे कूड़ा फेकाला त होइ त होइ केहर। ऐसे हमनी जा बरगद का पेड़ लगावल जाइ। कहूं जहाँ डेरका ले खाली जगह होखे ओहि इ पेड़ लगावल जाइ।
बरगद के पेड़ पे एगो कविता बाटे लोगन ओहु सुन लेवल जा :
बरगद / शशि सहगल
यूँ ही एक दिन
शून्य में खोये-खोये
नज़र जा टिकी बरगद पर।
भरा पूरा वट-वृक्ष
चारों ओर फैली घनी टहनियाँ
आत्मविश्वास से भरपूर
उसके चौड़े मज़बूत पत्ते।
गौर से देखने पर लगा
अपनी मूल जड़ से संतुष्ट नहीं था वह
ऊपर से लटकती
लम्बी दाढ़ी सी उसकी जड़नुमाँ टहनियाँ
धरती में समा रही थी
और अधिक पोषक तत्वों को
पूंजीपति सा बटोर
समृद्ध होने की होड़ में
निरन्तर कार्यरत थीं।
बड़ का वह पेड़
केवल पेड़ मात्र नहीं था
पिता सम शरण और सुरक्षा देता सभी को
भेद भाव रहित
उसका आश्रय सुलभ था सभी को
नयी सुहागिन अपने कोमल हाथों से
चढ़ाती जल, बांधती मौली
ऐसे में उसका मज़बूत तना भी
तरंगायित हो उठता
कोयल के स्वर में
अखण्ड सौभाग्य का वर देता वट-वृक्ष
उसकी आयु क्या रही होगी?
नहीं पता किसी को
वह तो नाती पोतों वाले
पितामहों का भी परदादा रहा होगा
देखें होंगे उसने
हर तरह के उतार-चढ़ाव
प्रभु अगर दे सके वरदान
तो चाहूँगी मैं
मुझे बताये वह
अपने और हमारे पूर्वजों को हाल।
बाकि मिले पे।
- बाबा सुतनखु
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