हालिया उपचुनावों में हार, बढ़ती महगाईं, बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ती अव्यवस्था और घटते प्रधानमंत्री मोदी के कद के बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को अपने कार्यक्रम में बुलाकर अपने कद और सर्वमान्यता को बढ़ाने का प्रयास किया हैं। आज तक जो संघ केवल हिन्दुओं की बात करता आया था उसने अपने को सेक्युलर बनाने की तरफ कदम बढ़ा दिया हैं। खांटी कांग्रेसी को अपने मंच पर स्थान देना कम से कम यही प्रदर्शित करता हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है कि संघ खुलकर अपने को सामाजिक सरोकारों से दूर ले जाकर राजनैतिक विचारधारा के रूप में स्थापित करने में लगा हैं।
अगर मोदी का कद भविष्य में और कम होता हैं तो संघ अपनी विचारधारा को केंद्र सरकार को दबाकर और पुख्ता रूप से लागू करवाने का प्रयास करेगी। और अब जब संघ खुलकर राजनीतिक सरोकारों के रूप में बहार आ रही हैं, तो उसका ऐसा करना जायज भी लगता हैं।
कभी सामाजिक कार्यों का चोंगा पहनकर अपनी सर्वमान्यता बढ़ाने वाली राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ किस तरह राजनीतिक विचारधारा में बदल रही हैं ये लोगों में चर्चा का विषय हैं और लोग यह भी कहने से गुरेज नहीं आ रहे हैं कि यही संघ का असली चेहरा भी हैं जो अब तक छुपा हुआ था।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना २७ सितम्बर १९२५ को विजयदशमी के दिन हुई। संघ दुनिया के लगभग 80 से अधिक देशों में कार्यरत है। संघ के लगभग 50 से ज्यादा संगठन राष्ट्रीय ओर अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है ओर लगभग 200 से अधिक संघठन क्षेत्रीय प्रभाव रखते हैं। इस बड़े सगठन की बागडोर अधिकांशतः किसी व्यक्ति विशेष के हाथों में रही हैं। इसी संगठन से निकले नरेंद्र मोदी आज भारत के प्रधानमंत्री हैं।
संघ की हालिया बढ़ती गतिविधियों का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि आज संघ बहुसंख्यक हिन्दुओं के पैरोकार के रूप में स्थापित होता जा रहा हैं। जब कि किसी भी हिंदूवादी संगठन ने आज तक ऐसा करने का प्रयास नहीं किया था। राजनीतिक विचारधारा से अभिप्रेरित संघ आज हिन्दुओं के कई ऐसे मुद्दे हैं जिसपर मौन हो जाता हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण राम मंदिर का निर्माण हैं।
जानकार मानते हैं कि जिस दिन विविधता से भरी हिन्दू सस्कृति को एक रंग में रंगने का प्रयास किया जाएगा उसी दिन सर्वमान्य हिन्दू सस्कृति संकुचित होना शुरू हो जाएगी। इतिहास भी इसी बात की गवाही देता हैं जब हिन्दू विचारधारा से ही बौद्ध, जैन और सिक्ख संप्रदाय निकले और भारत की पवित्र भूमि पर फैले फुले।
आज अगर संघ का कद बढ़ता हैं तो यह निकट भविष्य में देश की सस्कृति में बड़े पैमाने पर बदलाव का प्रयास करेगा। यह जानकारों के लिए चिंता का विषय भी हैं क्योकि संविधान के इतर एक ऐसी संस्था होगी जो स्वयं को स्वयंभू भी समझ सकती हैं। संख्या बल के आधार पर संविधान का भी मखौल बनाया जा सकता हैं।
२०१९ से पहले संघ की इस राजनीतिक पारी को देखना सबके लिए दिलचस्प होगा, जब कोई सामाजिक संगठन अपने को राष्ट्र से ऊपर रखकर कार्य कर रहा होगा।
:सिद्धार्थ सिंह



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