बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

2014 लोकसभा चुनाव बीती बात हो गई और इसी के साथ, ‛अच्छे दिन, सबका साथ सबका विकास, कालाकाला धन वापसी, भ्रष्टाचार पर लगाम...वादे भी भूली-बिसरी बात बनकर रह गई। विपक्ष के चुनावी घोषणाओं को याद रखने की जहमत किसी ने उठाई नहीं, क्योंकि जनता ने बहुमत से 2014 में विकास चुना था। खैर, अब नई बिसात बिछ रही है और फोकस 2019 है, तो फिर से नए वादे, नए इरादे बयां किए जाने की तैयारी चल रही है। भाजपा की ओर से नित नए जुमले तलाशे जा रहे हैं, जिसमेँ पुराने वादों की विफलता छुप सके जैसा विज्ञापनों में दिखने लगा है,‘साफ नीयत, सही विकास’। ख़बरों के अनुसार चुनाव आते-आते भाजपा 2014 की ही तरह एक नहीं, अनेक नारों के साथ अखाड़े में कूदेगी। इन नारों पर फिलहाल काम जारी है। पार्टी की मीडिया सेल नए-नए नारे लिख रही है, उसे पार्टी अध्यक्ष से अप्रूव करा रही है। इसी हफ्ते भाजपा का एक नया बन रहा नारा सामने आया था, जिसमें कहा गया है “काम अधूरा, एक मौका मोदी सरकार, काम पूरा होने का।”
भाजपा लोकलुभावन और मनभावन नारों या यूं कहिए चुनावी नैया पार लगाने वाली ‛पंचलाइन’ पर कसरत कर रही है, तो विरोधी दलों की कोशिश महागठबंधन खड़ा करने की है। विरोधी दलों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली भाजपा को रोकने के लिए महागठबंधन समय की जरूरत है।
बहरहाल, राह चाहे भाजपा की हो या विरोधियोँ की मुश्किलें भी कई हैं। भाजपा को सोचना होगा कि पुराने वादों की अधूरी फेहरिस्त को कैसे अपने पक्ष में करे, क्योंकि पिछले चुनाव में भाजपा पर सबसे ज्यादा भरोसा महिलाओं और युवाओं ने किया था। दोनों का भाजपा से मोहभंग दिख रहा है। बेरोजगारी की दर तेजी से बढ़ी है। वादा यह था कि दो करोड़ नौकरियां पैदा की जाएंगी, पर नोटबंदी लागू करके 30 लाख नौकरियां एक झटके में खत्म कर दी। उसके बाद किसी भी सेक्टर में नौकरियां पैदा नहीं हुई है। महंगाई से महिलाओं को घर चलाना मुश्किल हो गया है, तो वह ख्वाब टूट चुका है।
ऐसा ही हाल विपक्ष का है, एकजुट होने से कामयाबी कितनी मिलेगी यह तो बाद की बात है, लेकिन अंतर्विरोधों के चलते महागठबंधन को जमीनी हकीकत बनाने का रास्ता फिलहाल आसान नहीँ है। खासकर, सीटों का बंटवारा बड़ा मुद्दा है। विपक्षी खेमे में दो तरह की विचारधारा उभरती दिख रही है। पहली ये है कि केंद्र में कांग्रेस की ओर से गठबंधन बनाया जाए, दूसरी में कांग्रेस और भाजपा, दोनों से ही अलग रहने की पक्षधर पार्टियों का तीसरा मोर्चा खड़ा करने पर जोर दिया जा रहा है। हाल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच टकराव के दौरान जिस तरह ममता बनर्जी और कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने दिल्ली में आकर केजरीवाल का समर्थन किया, उससे तीसरे मोर्चे के गठन की संभावना प्रबल दिख रही है।
कुल मिलाकर, 2019 का समर जीतना किसी के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि झूठे दावों, वादों से जनता को फुसलाना आसान नहीं रह गया है।
■ संपादकीय

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