जिगर और दिल को बचाना भी है... - Kashi Patrika

जिगर और दिल को बचाना भी है...



जिगर और दिल को बचाना भी है,
नजर आप ही से मिलाना भी है।

मोहब्बत का हर भेद पाना भी है,
मगर अपना दामन बचाना भी है।

जो दिल तेरे गम का निशाना भी है,
कतील-ए-जफा-ए-जमाना भी है।

ये बिजली चमकती है क्यूँ दम-ब-दम,
चमन में कोई आशियाना भी है।

खिरद की इताअत जरूरी सही,
यही तो जुनूँ का जमाना भी है।

न दुनिया न उक्बा कहाँ जाइए,
कहीं अहल-ए-दिल का ठिकाना भी है।

मुझे आज साहिल पे रोने भी दो,
कि तूफान में मुस्कुराना भी है।

जमाने से आगे तो बढ़िए 'मजाज'
जमाने को आगे बढ़ाना भी है।
■ असरार-उल-हक ‛मजाज’ 

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