को नहीं जानत...“संकटमोचक” नाम तिहारो!! - Kashi Patrika

को नहीं जानत...“संकटमोचक” नाम तिहारो!!

बनारसी चर्चा कुछ इसी अंदाज में होता है कि सामान्य खबर में भी दुनिया-जहान की बातें और राजनीति समा जाए। कृपया, इसे सच्चाई से जोड़ने-तुलना करने का प्रयत्न न करें। आज सुबह-ए-चाय पर निकला एक ऐसा ही विषय और फिर उ फलाना-ढिमका होता हुआ, फिर फुस्स हो गया...

“नमस्कार भाय...”पाडे जी का अभिवादन। उत्तर मिला,“नाराज हउवा का!!महादेव की बजाय, नमस्कार... हया।”
पाडे जी,“नहीँ भाय, कुछ चिंतित हैं।”(जब भी पांडेजी, मूड में होते हैं, सिर्फ शुद्ध हिंदी का प्रयोग करते हैं।)
दोस्तों की चंडाल-चौकड़ी ने चाय की बेंच पर पांडेजी के लिए जगह बनाई, ‛चाय, ली आ’ कहते हुए सबकी नजर पांडेजी पर जम गई।
पांडेजी किसी की तरफ देखे बिना आगे बोलने लगे,“बहुत टेंशन है। बिहार में नीतीश कुमार से आज अमित शाह मिलेंगे। पता नहीं बात बनेगी की नहीं। कहीं बिगड़ गई तो!”
‛हूँ, बस इत्ती सी बात!’ उधर से किसी ने बोला। पांडेजी ठहरे खालिस मोदी भक्त, प्रतिउत्तर सुन भड़क गए। उठने लगे। लोगों ने मान-मनौवाल किया, तब जाकर कुछ देर बैठने को राजी हुए।
चर्चा आगे बढ़ी। “इसमें चिंता की कोई बात नहीं। नीतीश कुमार को पूछ ही कौन रहा है। शाह की बात मानने के अलावा उनके पास कोई और रास्ता है भी नहीं।” किसी ने दिलासा थमाया। कुछ पल को पांडेजी की भौहें तनी, फिर सिकुड़ गई। “नहीँ यार, नीतीश 25 सीट मांगें हैं, तो 20 से कम तो लेंगे नहीं। ऊपर से अकेले चुनाव लड़ने की हूल भी दे चुके हैं। वैसे ही, उ मराठी मानुष (उद्धव ठाकरे) किचकिच किए है। विपक्षी गठजोड़ बनाने पर तुले हैं। ऐसे में, नीतीश बिदके तो मोदीजी अकेले से हो जाएंगे।” पांडेजी की चिंता अपनी जगह वाजिब जान पड़ती थी, लेकिन दोस्तों की नजर में व्यर्थ मालूम पड़ती थी, किंतु उन्हें टेंशनफ्री करना जरूरी था। सो, किसी ने राम वाण फेंका,“अरे यार! को नहीं जानत...‛संकटमोचक’ नाम तिहारो, अमित शाह ने आज तक मोदीजी का बुरा होने दिया है क्या? नीतीश कुमार तो मानेंगे ही। वैसे भी, पिछली लोकसभा में अकेले लड़कर क्या ...लिए थे, दो सीट पाए थे। बीजेपी 31 सीटों पर जीती थी। तेवर तो नीतीश इसलिए दिखा रहे हैं, क्योंकि उनकी बीजेपी के साथ रहकर भी सेक्युलर छवि बरकरार रहे। बीजेपी को भी बिहार में नीतीश के इसी चेहरे का फायदा उठाना है। अउर नीतीश न माने, तो गिरिराज सिंह माफिक हिंदू चेहरा भुना लेंगे, शाह।”
इनका ज्ञान खत्म हुआ, तो झट दूसरे ने मंच सम्भाल लिया। “चिंता जिन करें भाय, अमित शाह दिल्ली से कउनु न कउनु घुट्टी लेकर बिहार जरूर पहुंचेंगे, जिसे पीकर नीतीश तृप्त हो जाएंगे। बिहार में मोदीजी की छवि की बजाय कुछ और उपाय ढूंढ़ना होगा, उसी पर विचार-विमर्श होगा, बिहार की 7 सीटें जो पिछली बार लोकसभा में बीजेपी से अछूती रह गई थी, वहां कैसे धाक जमाए इसका मंथन होगा। नीतीश कुमार अपनी सीटों पर फिर से काबिज होना चाहेंगे, जबकि बीजेपी को सीमांचल में अपना पांव मजबूत करने के लिए नीतीश कुमार के सेक्यूलर चेहरे की जरूरत पड़ेगी। रणनीति नीतीश-शाह मिलकर बनाएंगे। तभी तो, नाश्ते से डिनर तक का वक्त लगेगा। आप व्यर्थ ही चिंता में घुले जा रहे हैं।”
अब पांडेजी गुनगुनाने लगे। उनका मूड हल्का होता देख किसी ने फब्ती कसी, “सुना है, आपके ही जात वाले जनेऊधारी युवराज आजकल मुस्लिम बुद्धिजीवियों से भाईचारा गांठ रहे हैं। इतिहासकार, अर्थशास्त्री, पत्रकार, प्रोफेसर बड़े-बड़े लोगों से भेट-मुलाकात हो रही है।” तब तक पता नहीं कौन से नंबर वाली चाय आ गई, घूंट गटकते एक ने पांडेजी की ओर प्रश्न उछाला,“क्या सचमुच मोदीजी अंबानी की जेब में हैं?”
इससे पहले कि पांडेजी की चाय का जायका फिर बिगड़ता, कई दोस्त बीच में टपक पड़े। कई सवाल हवा में एक साथ उछले, थाईलैंड के 'मिशन इंपॉसिबल' ने दिल जीत लिया..., फीफा देखा क्या..., बिहार में शराब...ताजमहल पर सुप्रीम कोर्ट...सबको बारिश की फुहारों ने शांत कर दिया और गोष्ठी चाय खत्म कर फिर नई मुलाकात की आस के साथ समाप्त हुई।
हर हर महादेव!!
सोनी सिंह

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