जन्मदिन विशेष : मीना कुमारी को उनके जन्मदिन पर GOOGLE ने दिया DOODLE तोहफा...
भारतीय सिने परदे पर जिंदगी के गमगीन पहलुओं को जीवन करने वाली मीना कुमारी 'ट्रेजडी क्वीन' के नाम से मशहूर हुईं। उनकी अदाकारी इस दर्जे की थी कि 1963 के दसवें फिल्मफेयर अवॉर्ड में बेस्ट एक्ट्रेस कैटेगरी में तीन फिल्में (मैं चुप रहूंगी, आरती और साहिब बीवी और गुलाम) नामित हुई थीं और तीनों में मीना कुमारी ही थीं। अवॉर्ड साहिब बीवी और गुलाम में 'छोटी बहू' के रोल के लिए मिला था। उनकी सिनेमाई सफलता बुलंदियों पर थी, लेकिन निजी जिंदगी का दर्द उनकी ही शायरी बयां करती है,
“टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली.”
जन्म से ही दुखों की सौगात
1 अगस्त, 1932 को महजबीं बानो (मीना कुमारी) का जन्म मुंबई में हुआ था। जब महजबीन ने इस दुनिया में कदम रखा था। पिता अली बख्श और मां इकबाल बेगम (मूल नाम प्रभावती) के पास डॉक्टर को देने के पैसे नहीं थे। हालत यह थी कि दोनों ने तय किया कि बच्ची को मुस्लिम यतीमखाने के बाहर सीढियों पर छोड़ दिया जाए। छोड़ भी आए। पर पिता का मन नहीं माना। पलट कर अली बख्श भागे और बच्ची को गोद में उठा कर घर ले आए। किसी तरह परवरिश की।
सात साल की उम्र से फिल्मी सफर शुरू
सात साल की छोटी उम्र में ही घर का सारा बोझ महजबीं ने अपने कंधों पर उठा लिया और वह फिल्मों में काम करने लगीं। बेबी मीना के नाम से पहली बार फिल्म 'फरजद-ए-हिंद' में नजर आईं। इसके बाद लाल हवेली, अन्नपूर्णा, सनम, तमाशा आदि कई फिल्में कीं। मीना कुमारी को 1952 में आई फिल्म 'बैजू बावरा' ने स्टार बना दिया। इसके बाद वह कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ती गईं।
मीना का “कमाल” इश्क
पहले से मुफलिसी में जिंदगी गुजारने वाली मीना कुमारी की जिंदगी में डायरेक्टर कमाल अमरोही का इश्क वो तूफान बनकर आया कि उनकी जिंदगी तबाह कर गया। वैसे तो मीना कुमारी के चाहने वाले कम नहीं थे। बैजू बावरा में उनके नायक भारत भूषण ने भी उनसे प्रेम का इजहार किया था। पाकीजा में उनके प्रेमी बने राजकुमार को उनसे ऐसा इश्क हो गया था कि वे मीना के सामने अपने संवाद भूल जाते थे। लेकिन, मीना तो प्यार करतीं थीं कमाल अमरोही से। 14 फरवरी, 1952 को दोनों ने चोरी-छिपे निकाह कर लिया। लेकिन, कमाल उन्हें खुशियां नहीं दे पाएं और दोनों का रिश्ता बिगड़ने लगा। उधर, मीना कुमारी का कैरियर आसमान छू रहा था। हालांकि, उनकी यह उड़ान भी निजी जिंदगी के लिए मुसीबत ही बनी। मीना कुमारी की सफलता कमाल अमरोही को खटक रही थी। दोनों के बीच कड़वाहट इस कदर बढ़ गई कि अमरोही ने मीना कुमारी को
फिल्में छोड़ने तक के लिए कह दिया।
धर्मेन्द्र से जुड़ी, पर...
कमाल के साथ विवाह से जुड़े मीना के सुनहरे सपने टूटने लगे। उसी दौरान उनकी जिंदगी में एक पंजाबी गबरू की एंट्री हुई। आज के ही-मैन कहलाने वाले वे गबरू थे धर्मेंद्र। फिल्म फूल और पत्थर (1966) में दोनों ने साथ में पहली बार काम किया। फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाने के लिए प्रयास कर रहे धर्मेंद्र को मीना जैसी स्थापित अभिनेत्री का सहारा मिला। मीना की सिफारिश पर धर्मेंद्र को कई फिल्मों में काम मिला। फिल्मों में साथ अभिनय करते-करते दोनों नजदीक आ गए। लेकिन विडंबना यह थी कि उस समय दोनों ही शादीशुदा थे। धर्मेंद्र के साथ मीना कुमारी का संबंध लगभग तीन साल तक चला। धर्मेंद्र सिने इंडस्ट्री में अपने पांव पूरी तरह जमा चुके थे। अब उन्हें मीना के सहारे की उन्हें जरूरत नहीं थी। दोनों ने आखिरी बार फिल्म 1968 में आई चंदन का पालना में काम किया।
शराब का सहारा
कुंठा ने मीना को नशे का आदी बना दिया। कहते हैं, मीना कुमारी पहली तारिका थीं, जिन्होंने बॉलीवुड में पराए मर्दों के बीच बैठकर शराब के प्याले पर प्याले गटके। यही नहीं, वे छोटी-छोटी बोतलों में देसी-विदेशी शराब भरकर पर्स में रखने लगी थीं। जब मौका मिलता एक शीशी गटक लेतीं। 1956 में मुहूर्त से शुरू हुई फिल्म 'पाकीजा' की शूटिंग दोबारा शुरू हुई। 14 साल बाद 4 फरवरी, 1972 को फिल्म पर्दे पर आई। तब तक मीना मीना की हालत काफी बिगड़ गई थी। बीमारी की हालत में भी वह फ़िल्में कर रही थीं। अंतत: 31 मार्च 1972 को लिवर सिरोसिस के चलते मीना कुमारी ने दुनिया को अलविदा कह दिया। और इसी के साथ उनके दुखों का अंत हुआ।
मीना कुमारी की पंक्तियां
“राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा।”
■ काशी पत्रिका
भारतीय सिने परदे पर जिंदगी के गमगीन पहलुओं को जीवन करने वाली मीना कुमारी 'ट्रेजडी क्वीन' के नाम से मशहूर हुईं। उनकी अदाकारी इस दर्जे की थी कि 1963 के दसवें फिल्मफेयर अवॉर्ड में बेस्ट एक्ट्रेस कैटेगरी में तीन फिल्में (मैं चुप रहूंगी, आरती और साहिब बीवी और गुलाम) नामित हुई थीं और तीनों में मीना कुमारी ही थीं। अवॉर्ड साहिब बीवी और गुलाम में 'छोटी बहू' के रोल के लिए मिला था। उनकी सिनेमाई सफलता बुलंदियों पर थी, लेकिन निजी जिंदगी का दर्द उनकी ही शायरी बयां करती है,
“टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली.”
जन्म से ही दुखों की सौगात
1 अगस्त, 1932 को महजबीं बानो (मीना कुमारी) का जन्म मुंबई में हुआ था। जब महजबीन ने इस दुनिया में कदम रखा था। पिता अली बख्श और मां इकबाल बेगम (मूल नाम प्रभावती) के पास डॉक्टर को देने के पैसे नहीं थे। हालत यह थी कि दोनों ने तय किया कि बच्ची को मुस्लिम यतीमखाने के बाहर सीढियों पर छोड़ दिया जाए। छोड़ भी आए। पर पिता का मन नहीं माना। पलट कर अली बख्श भागे और बच्ची को गोद में उठा कर घर ले आए। किसी तरह परवरिश की।
सात साल की उम्र से फिल्मी सफर शुरू
सात साल की छोटी उम्र में ही घर का सारा बोझ महजबीं ने अपने कंधों पर उठा लिया और वह फिल्मों में काम करने लगीं। बेबी मीना के नाम से पहली बार फिल्म 'फरजद-ए-हिंद' में नजर आईं। इसके बाद लाल हवेली, अन्नपूर्णा, सनम, तमाशा आदि कई फिल्में कीं। मीना कुमारी को 1952 में आई फिल्म 'बैजू बावरा' ने स्टार बना दिया। इसके बाद वह कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ती गईं।
मीना का “कमाल” इश्क
पहले से मुफलिसी में जिंदगी गुजारने वाली मीना कुमारी की जिंदगी में डायरेक्टर कमाल अमरोही का इश्क वो तूफान बनकर आया कि उनकी जिंदगी तबाह कर गया। वैसे तो मीना कुमारी के चाहने वाले कम नहीं थे। बैजू बावरा में उनके नायक भारत भूषण ने भी उनसे प्रेम का इजहार किया था। पाकीजा में उनके प्रेमी बने राजकुमार को उनसे ऐसा इश्क हो गया था कि वे मीना के सामने अपने संवाद भूल जाते थे। लेकिन, मीना तो प्यार करतीं थीं कमाल अमरोही से। 14 फरवरी, 1952 को दोनों ने चोरी-छिपे निकाह कर लिया। लेकिन, कमाल उन्हें खुशियां नहीं दे पाएं और दोनों का रिश्ता बिगड़ने लगा। उधर, मीना कुमारी का कैरियर आसमान छू रहा था। हालांकि, उनकी यह उड़ान भी निजी जिंदगी के लिए मुसीबत ही बनी। मीना कुमारी की सफलता कमाल अमरोही को खटक रही थी। दोनों के बीच कड़वाहट इस कदर बढ़ गई कि अमरोही ने मीना कुमारी को
फिल्में छोड़ने तक के लिए कह दिया।
धर्मेन्द्र से जुड़ी, पर...
कमाल के साथ विवाह से जुड़े मीना के सुनहरे सपने टूटने लगे। उसी दौरान उनकी जिंदगी में एक पंजाबी गबरू की एंट्री हुई। आज के ही-मैन कहलाने वाले वे गबरू थे धर्मेंद्र। फिल्म फूल और पत्थर (1966) में दोनों ने साथ में पहली बार काम किया। फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाने के लिए प्रयास कर रहे धर्मेंद्र को मीना जैसी स्थापित अभिनेत्री का सहारा मिला। मीना की सिफारिश पर धर्मेंद्र को कई फिल्मों में काम मिला। फिल्मों में साथ अभिनय करते-करते दोनों नजदीक आ गए। लेकिन विडंबना यह थी कि उस समय दोनों ही शादीशुदा थे। धर्मेंद्र के साथ मीना कुमारी का संबंध लगभग तीन साल तक चला। धर्मेंद्र सिने इंडस्ट्री में अपने पांव पूरी तरह जमा चुके थे। अब उन्हें मीना के सहारे की उन्हें जरूरत नहीं थी। दोनों ने आखिरी बार फिल्म 1968 में आई चंदन का पालना में काम किया।
शराब का सहारा
कुंठा ने मीना को नशे का आदी बना दिया। कहते हैं, मीना कुमारी पहली तारिका थीं, जिन्होंने बॉलीवुड में पराए मर्दों के बीच बैठकर शराब के प्याले पर प्याले गटके। यही नहीं, वे छोटी-छोटी बोतलों में देसी-विदेशी शराब भरकर पर्स में रखने लगी थीं। जब मौका मिलता एक शीशी गटक लेतीं। 1956 में मुहूर्त से शुरू हुई फिल्म 'पाकीजा' की शूटिंग दोबारा शुरू हुई। 14 साल बाद 4 फरवरी, 1972 को फिल्म पर्दे पर आई। तब तक मीना मीना की हालत काफी बिगड़ गई थी। बीमारी की हालत में भी वह फ़िल्में कर रही थीं। अंतत: 31 मार्च 1972 को लिवर सिरोसिस के चलते मीना कुमारी ने दुनिया को अलविदा कह दिया। और इसी के साथ उनके दुखों का अंत हुआ।
मीना कुमारी की पंक्तियां
“राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा।”
■ काशी पत्रिका
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