असम में जारी भारतीय नागरिकों की सूची से 40 लाख लोग नदारद।।
असम में आज भारतीय नागरिकता को लेकर जारी किए गए आंकड़े में तकरीबन 40 लाख लोगों की नागरिकता पर सवाल उठा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश और निगरानी में हुए इस सत्यापन को लेकर अब सियासत गर्म हो गई है और इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश हो रही है।
असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के दूसरे और अंतिम मसौदे को सोमवार को कड़ी सुरक्षा के बीच जारी कर दिया गया है। इसके मुताबिक 2 करोड़ 89 लाख लोग असम के नागरिक हैं, जबकि यहां रह रहे 40 लाख लोगों का नाम इस सूची में नहीं है। यानी 40 लाख लोगों को भारतीय नागरिक नहीं माना गया है। अब इन लोगों के पास अपने दावे पेश करने का मौका होगा। राज्य सरकार का कहना है कि जिनके नाम रजिस्टर में नहीं है उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए एक महीने का समय दिया जाएगा। बता दें कि एनआरसी का पहला मसौदा 31 दिसंबर और एक जनवरी को जारी किया गया था, जिसमें 1.9 करोड़ लोगों के नाम थे।
‛एनआरसी’ पर राज्यसभा में हंगामा
एनआरसी मसौदा जारी होने के बाद राज्यसभा में इस मुद्दे पर जमकर हंगामा हुआ। कांग्रेस, सपा और तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों के हंगामे की वजह से सोमवार को राज्यसभा की बैठक एक बार के स्थगन के बाद दोपहर दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने रजिस्टर जारी होने के बाद दिए एक बयान में कहा, "अंतिम एनआरसी में किसी का नाम नहीं होने के बावजूद भी ट्राइब्यूनल का रास्ता खुला रहेगा। किसी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी, अतः किसी को अनावश्यक परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।"
ममता बनर्जी ने चला बंग्ला कार्ड
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने असम में जारी नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन के फाइनल ड्राफ्ट पर 40 लाख लोगों के नाम नहीं होने पर मोदी सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने गृहमंत्री राजनाथ सिंह के निष्पक्षता से लिस्ट तैयार करने के दावे पर सवाल उठाए और कहा कि कुछ समुदाय और भाषा विशेष के लोगों को जबरन निशाना बनाया जा रहा है। ममता ने कहा कि 40 लाख लोग जिन्हें ड्राफ्ट से बाहर किया गया है, वो कहां जाएंगे? अगर बांग्लादेश भी उन्हें वापस नहीं लेता तो उनका क्या होगा?
असम में आज भारतीय नागरिकता को लेकर जारी किए गए आंकड़े में तकरीबन 40 लाख लोगों की नागरिकता पर सवाल उठा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश और निगरानी में हुए इस सत्यापन को लेकर अब सियासत गर्म हो गई है और इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश हो रही है।
असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के दूसरे और अंतिम मसौदे को सोमवार को कड़ी सुरक्षा के बीच जारी कर दिया गया है। इसके मुताबिक 2 करोड़ 89 लाख लोग असम के नागरिक हैं, जबकि यहां रह रहे 40 लाख लोगों का नाम इस सूची में नहीं है। यानी 40 लाख लोगों को भारतीय नागरिक नहीं माना गया है। अब इन लोगों के पास अपने दावे पेश करने का मौका होगा। राज्य सरकार का कहना है कि जिनके नाम रजिस्टर में नहीं है उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए एक महीने का समय दिया जाएगा। बता दें कि एनआरसी का पहला मसौदा 31 दिसंबर और एक जनवरी को जारी किया गया था, जिसमें 1.9 करोड़ लोगों के नाम थे।
‛एनआरसी’ पर राज्यसभा में हंगामा
एनआरसी मसौदा जारी होने के बाद राज्यसभा में इस मुद्दे पर जमकर हंगामा हुआ। कांग्रेस, सपा और तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों के हंगामे की वजह से सोमवार को राज्यसभा की बैठक एक बार के स्थगन के बाद दोपहर दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने रजिस्टर जारी होने के बाद दिए एक बयान में कहा, "अंतिम एनआरसी में किसी का नाम नहीं होने के बावजूद भी ट्राइब्यूनल का रास्ता खुला रहेगा। किसी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी, अतः किसी को अनावश्यक परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।"
ममता बनर्जी ने चला बंग्ला कार्ड
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने असम में जारी नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन के फाइनल ड्राफ्ट पर 40 लाख लोगों के नाम नहीं होने पर मोदी सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने गृहमंत्री राजनाथ सिंह के निष्पक्षता से लिस्ट तैयार करने के दावे पर सवाल उठाए और कहा कि कुछ समुदाय और भाषा विशेष के लोगों को जबरन निशाना बनाया जा रहा है। ममता ने कहा कि 40 लाख लोग जिन्हें ड्राफ्ट से बाहर किया गया है, वो कहां जाएंगे? अगर बांग्लादेश भी उन्हें वापस नहीं लेता तो उनका क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुआ काम
असम के नागिरकों के सत्यापन का काम सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मई 2015 में शुरू हुआ। इसके लिए रजिस्ट्रार जनरल ने समूचे राज्य में कई एनआरसी केंद्र खोले। एनआरसी में शामिल होने की योग्यता के अनुसार उन लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा, जिनके पूर्वजों के नाम 1951 के एनआरसी में या 24 मार्च 1971 तक के किसी वोटर लिस्ट में मौजूद हों।
इसके अलावा 12 दूसरे तरह के सर्टिफ़िकेट या कागजात जैसे जन्म प्रमाण पत्र, जमीन के कागज, पट्टेदारी के दस्तावेज, शरणार्थी प्रमाण पत्र, स्कूल-कॉलेज के सर्टिफिकेट, पासपोर्ट, अदालत के पेपर्स भी अपनी नागरिकता प्रमाणित करने के लिए पेश किए जा सकते हैं। अगर किसी व्यक्ति का नाम 1971 तक के किसी भी वोटर लिस्ट में मौजूद नहीं है, लेकिन किसी दस्तावेज में उसके किसी पूर्वज का नाम है, तो उसे पूर्वज से रिश्तेदारी साबित करनी होती है। कई मामलों में बॉर्डर पुलिस लोगों को इस सिलसिले में नोटिस भेजती है, जिसके बाद उन्हें फ़ॉरेनर्स ट्राइब्यूनल में अपनी नागरिकता के सबूत देने होते हैं।
■ काशी पत्रिका
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