शर्मा के यूँ न देख अदा के मकाम से,
अब बात बढ़ चुकी है हया के मकाम से।
तस्वीर खींच ली है तेरे शोख हुस्न की,
मेरी नजर ने आज खता के मकाम से।
दुनिया को भूल कर मेरी बाँहों में झूल जा,
आवाज दे रहा हूँ वफा के मकाम से।
दिल के मुआ'मले में नतीजे की फिक्र क्या,
आगे है इश्क जुर्म-ओ-सजा के मकाम से।
■ साहिर लुधियानवी
No comments:
Post a Comment