साहित्य ही नहीं, दिलों पर राज करते हैं प्रेमचंद - Kashi Patrika

साहित्य ही नहीं, दिलों पर राज करते हैं प्रेमचंद

जन्मदिन विशेष:  प्रेमचंद की कालजयी कहानियों के पात्र आज भी हमारे आसपास सांस ले रहे हैं। तभी तो, अपनी मृत्यु के अस्सी साल बाद और जन्म के 138 साल बीत जाने पर भी वे पाठकों के लोकप्रिय कथाकार हैं। प्रेमचंद को खासकर गरीबी के सजीव चित्रण का रचनाकार माना जाता है, किंतु उन्हें पढ़ने वालों में हर वर्ग एवं आयु के पाठक हैं। हो भी क्यों न! यूँ ही तो उन्हें “उपन्यास सम्राट” नहीं पुकारा जाता है।

काशी के कथाकार
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस से चार मील दूर लमही ग्राम में हुआ था। उनके पिता अजायब राय डाकखाने में मामूली नौकरी करते थे। प्रेमचंद के बचपन का नाम धनपत राय था। जब वे सिर्फ 15 साल के थे, तो उनके पिता अजायब राय ने उनका विवाह करा दिया। विवाह के साल भर बाद ही पिता के देहान्त के बाद, अचानक पूरे घर का बोझ उन पर आ गया।

13 साल की उम्र से लेखन
प्रेमचंद ने महज 13 साल की उम्र से ही लिखना आरंभ कर दिया था। शुरू में उन्होंने कुछ नाटक लिखे। फिर बाद में उर्दू में उपन्यास लिखना शुरू किया। इस तरह उनका साहित्यिक सफर शुरू हुआ जो मरते दम तक साथ-साथ रहा।

अंग्रेजों ने जला दिया “सोजे वतन”
दूसरी शादी के बाद प्रेमचंद की परिस्थितियां कुछ बदलीं। इसी दौरान उनकी पाँच कहानियों का संग्रह 'सोजे वतन’ छपा। इसमें उन्होंने देश प्रेम और देश की जनता के दर्द को लिखा। अंग्रेज शासकों को इसमें बगावत की बू आने लगी। इस समय प्रेमचन्द ‛नवाब राय’ के नाम से लिखा करते थे। लिहाजा नवाब राय की खोज शुरू हुई। नवाब राय पकड़ लिए गए और उनकी आंखों के सामने 'सोजे वतन' को अंग्रेजों ने जला दिया। साथ ही बिना आज्ञा के न लिखने का प्रतिबंध भी लगा दिया।

और बन गए प्रेमचंद
इसके बाद धनपत राय नवाब राय नहीं बल्कि हमेशा के लिए प्रेमचंद बन गए और ये नाम सुझाया उनके नजदीकी मुंशी दया नारायण निगम ने। मुंशी दया नारायण निगम बीसवीं सदी के शुरू में कानपुर से प्रकाशित होने वाली उर्दू पत्रिका 'जमाना' के संपादक थे। जमाना पत्रिका में किया। उनकी पहली कहानी सरस्वती पत्रिका में 1915 के दिसम्बर अंक में 'सौत' प्रकाशित हुई और अंतिम कहानी 'कफन' नाम से।

विधवा शिवरानी को बनाया जीवन संगिनी
मुंशी प्रेमचंद बहुत ही आदर्शवादी व ईमानदार व्यक्ति थे। प्रेमचंद आर्यसमाजी एवं विधवा विवाह के प्रबल समर्थक भी थे। शिवरानी देवी प्रेमचंद की दूसरी पत्नी थीं। वो बाल विधवा थीं। पहली पत्नी से प्रेमचंद के संबंध मधुर नहीं थे, लेकिन शिवरानी देवी सही मायनों में जीवनसंगिनी थीं। उनकी कुछ कहानियां पढ़कर ऐसा कहा गया कि प्रेमचंद कई बार शिवरानी देवी के मनचाहे भावों पर भी कहानी लिख दिया करते थे। 1944 में शिवरानी देवी ने प्रेमचंद से जुड़ी अपनी यादों को “प्रेमचंद घर में” नामक किताब में सहेजा।

बच्चों के लिए भी लिखी कहानियां
प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानियों, व्यंग्य के साथ ही बच्चों के लिए भी लिखा। ‘दो बैलों की कथा’ तो हममें से अकसर लोगों ने पढ़ी है।  प्रेमचंद ने बाल कथाओं में पशुओं को वाणी देकर उन्हें मानवीय-पात्र के रूप में प्रस्तुत करके, बाल पाठकों के मन में प्राणि जगत के प्रति संवेदना सहानुभूति जगाने का प्रयास किया। कुछ कहानियों जैसे ‘गुल्ली-डंडा’, ‘चोरी’, ‘कजाकी’, ‘नादान दोस्त’ आदि में बच्चों की स्वाभाविक क्रियाएं और खेल तथा आदतों के अलावा बालमन की सहज अभिव्यक्ति है। किंतु, उनकी प्रसिद्धि मुख्यतः भारत के ग्रामीण जीवन को आम लोगों की भाषा में बयां करने की वजह से है। 'गोदान', 'गबन', 'निर्मला', 'कर्मभूमि', 'सेवासदन', 'कायाकल्प', 'प्रतिज्ञा' जैसे उपन्यासों और 'कफन', 'पूस की रात', 'नमक का दारोगा', 'बड़े घर की बेटी', 'घासवाली' जैसी कई कहानियों के पात्र आज भी हमारे आसपास मौजूद हैं।
काशी पत्रिका

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