केवल राजनीति आज युवाओं के भविष्य का निर्धारण कर रही हैं - Kashi Patrika

केवल राजनीति आज युवाओं के भविष्य का निर्धारण कर रही हैं


भारत का दुर्भाग्य ही हैं कि जिस देश की आबादी का विश्व में आज सबसे बड़ा हिस्सा युवा हैं; उसी देश में युवाओं के सपने पूरे न होने की स्थिति में युवा आज केवल राजनीति के अधीन दिखता हैं। जिस युवा शक्ति को देश का कर्णधार और भविष्य माना जाता हैं और उससे नए विचारों और विकल्पों को लाने की उम्मीद की जाती हैं, आज भारत में उसी की स्थिति सबसे दयनीय हैं। युवाओं के लिए बनी योजनाओं का सही प्रकार से क्रियान्वयन न होना, देश की युवा शक्ति का बिखराव, और सबसे बड़ी बात उसका देश की नीतियों में कमतर योगदान और प्रतिनिधित्व की कमी ही वो कारण हैं जो आज देश में युवाओं को सत्ता के हाथ की कठपुतली बनाए हुए हैं।

भविष्य की चिंता में बेहाल युवा
आज देश में रोजगार का हाल सबसे बुरा है। नौकरियों की परवाह किसे होगी, जब प्रधानमंत्री ही कह गए की हमने रोजगार दिया हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री का यह सबसे हास्यादपद और दुखद बयान था, जब उन्होंने वास्तविक स्थिति को नकारते हुए कहा कि भारत में रोजगार की कमी नहीं, वरन रोजगार के आंकड़ों की कमी हैं। युवाओं के भरोसे दिल्ली की गद्दी पर बैठने और राजनीति चमकाने वाले नरेंद्र मोदी आज उनकी अनदेखी करते दिखते हैं। वे युवाओं को भूल गए। जब युवा दो जून की रोजी रोटी और अपने भविष्य के लिए ही आशंकित होगा तो देश को क्या दिशा दिखाएगा। आज बड़ी संख्या में युवा बेरोजगार हैं और अपने भविष्य को लेकर सदैव आशंकित रहते हैं। आत्महत्या, चोरी, नशे की लत ये आज के युवा का चेहरा बनकर रह गया हैं।

सत्ता में आम युवाओं की भागीदारी न के बराबर 
विडम्बना ही हैं कि भारत ही एक मात्र ऐसा देश है, जिसने सत्ता में नए विचारों को लाने वाले और देश के भविष्य की दिशा निर्धारित करने वाले युवाओं को सत्ता से ही दूर रखा हैं। विश्वविद्यालयों में छात्र संघ को ही नकार कर राजनीति कुछ चुनिंदा दलों और लोगों के हाथ में सिकुड़ गई हैं। इससे ऊपर उठे तो परिवार के लोगों का राजनीति में एकाधिकार। आजादी के 70 सालों बाद भी देश के योजनाकार ये नहीं समझ पाए कि युवा ही एकमात्र वो वर्ग हैं जो सत्ता का सुख भोगने के लिए राजनीति में नहीं आता हैं।

रूढ़िवादी सोंच और लड़के-लड़कियों का विभेद 
हमने आजादी के 70 सालों में लड़के-लड़कियों के बीच जिस विभेद को दूर करने और सर्वमान्य समाज जो सभी के लिए बराबर हो का जो सपना देखा था वो अब तक पूरा नहीं हो पाया हैं। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा आज के युवा उठा रहे हैं। आए दिन प्रेमी युगल देश के किसी न किसी कोने में मार दिए जाते हैं, उनका अपराध होता हैं समाज की पुरानी सोच से एक कदम आगे बढ़ना, बेटियों को गर्भ में ही मार दिया जाता हैं, क्योंकि उनके जीवन की रुपरेखा में समाज ने खर्चों का बोझ डाल रखा हैं, समाज में लड़के और लड़कियों के बीच की खाई इतनी ज्यादा गहरी हैं कि दोनों को समाज में बराबर का दर्जा किस प्रकार दिया जाए,ये आज तक भारत के योजनाकार नहीं समझ सकें। इन सब के बीच राजनीति फलती-फूलती रहती हैं। कभी देश में युवाओं के प्रति कोई अपराध हो जाए, तो उसे राजनैतिक चश्मे से कभी महिलाओं के प्रति अपराध तो कभी छात्रों की आपसी रंजिश घोषित कर दिया जाता हैं। इन्हें युवाओं के प्रति संगठित अपराध के रूप में कोई मान्यता नहीं देता। इन सब के बीच युवाओं में जात-पात का बीज़ योजनाबद्ध तरीके से राजनीति बोती रहती हैं। कभी अवसर के रूप में अधिकता, तो कभी पैसों के तराजू में तौल कर।

युवाओं के प्रति समाज का तिरष्कृत भाव
विषमता भरे समाज में आज एक औसत व्यक्ति को स्थापित होने में इतना समय लग जाता हैं कि वो अपने आने वाली पीढ़ी को समग्रता में देख ही नहीं पाता। ऐसे में, वो युवा को या तो अपना प्रतिद्वंद्वी मान बैठता हैं या उसे नीचा दिखाने का प्रयास करता हैं। वो युवा शक्ति की नई सोच को अपना ही नहीं पाता और उसे पल्लवित होने से पहले ही जड़ से उखाड़ फेकता हैं। आप को जान कर हैरानी होगी कि युवा जितनी ऊँची उड़ान भरता हैं, उसे अपने प्रति समाज से इस तिरष्कृत भाव को उतना ज्यादा सहना पड़ता हैं। समाज के इस कुरूप चेहरे को गाहे-बगाहे राजनीति अपरोक्ष रूप से बढ़ावा देती रहती हैं।

राजनीति के इस बदसूरत चेहरे के विषय में कोई नहीं लिखता,जो देश की भावी पीढ़ी को योजनाबद्ध तरीके से कमजोर करती हैं, क्योंकि राजनेताओँ और कुछ चुनिंदा व्यापारी वर्ग की पूरी जिंदगी युवाओं के प्रति इन्हीं विभेदनकारी नीतियों की वजह से चलती हैं, जो भविष्य के समाज का निर्माण करते हैं। 

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