बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

बढ़ती जनसंख्या और प्रदूषण आज देश की सबसे बड़ी समस्या हैं। कई रूपों में ये आम जीवन को इतने बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रही है कि देश की स्थिति दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है। इसमें भी जनसँख्या का घनत्व जो शहरों में ज्यादा है, वो लोगों को यहाँ अमानवीय स्थिति में रहने को मजबूर कर रहा है। आज ये सर्वविदित है कि देश में रोजगार की भारी कमी हैं और सामान्य स्थिति को यह और भयावह तब कर देता है जब बेरोजगार लोगों की एक लम्बी फौज पैसे के आभाव में असंतुलित रूप में संसाधनों के दुरुपयोग से पैसे कमाने को मजबूर हो जाते हैं।

आज देश की स्थिति ऐसी है कि जीवन जीने के लिए अधिकतम लोगों की मूलभूत आवश्यकताए जैसे स्वच्छ जल, हवा, पानी, भोजन, मकान आदि भी मुहैया नहीं हो पा रहा हैं। आज दुनिया की कुल आबादी का 17 % हिस्सा केवल भारत में रहता हैं। हालिया आई कुछ रिपोर्टों पर गौर करें, तो हम देखेंगे कि देश की आबादी के सबसे बड़े भाग उत्तर प्रदेश, बिहार, और पश्चिम बंगाल में निकट भविष्य में जल का सबसे बड़ा संकट उत्पन्न होने वाला हैं। और यह संकट ऐसा है, जो विश्व की जनसँख्या के हिसाब से सबसे बड़ा संकट होगा। यह रिपोर्ट गंगा नदी और भूजल से सम्बंधित हैं जिसमें साफ़ तौर पर कहा गया है कि जल्द ही इस क्षेत्र में ये दोनों समाप्त होने वाले हैं।

विशेषज्ञों के मुताबित भारत के अधिकांश शहरों का निर्माण इस तरह हुआ है कि उनमें समुचित सुधार की गुंजाइश न के बराबर है। यह मुख्य रूप से इस ओर इशारा करता हैं कि शहरों की जनसँख्या और वातावरण को ध्यान में रखकर हमने उनका निर्माण किया ही नहीं। और उनमें हर साल बढ़ने वाली आबादी के बारे में तो कभी सोचा ही नहीं। आजादी के बाद भारत में हर शहर के निर्माण और विस्तार के पीछे केवल एक कारक रोजगार था, जिसने उस शहर का निर्माण किया।

जल्द ही देश को इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा कि शहरों में रोजगार के बेहतर विकल्प मौजूद हैं। नहीं तो, बड़े पैमाने पर भारत में इन शहरों का पतन अब सुनिश्चित हो जाएगा। साथ ही सरकार और समाज को बढ़ती जनसँख्या की रोकथाम के उपाय सोचने होंगे। इसके साथ ही सरकार को बहुत बड़े पैमाने पर स्थानीय रोजगार का सृजन करना होगा, जो लोगों के पलायन को रोक सके। अब स्थिति इतनी भयावह हो चुकी हैं कि इसके साथ ही सरकारों को ये भी सुनिश्चित करना होगा कि स्थानीय अर्थतंत्र के साथ वातावरण के हिसाब से ही विकास हो अन्यथा कुछ सालों में स्थिति पुनः शहरों जैसी हो जाएगी।

इन सब के बीच देश के मुखिया का यह कहना की जनसँख्या को वरदान मानों अव्यवहारिक हैं, जो केवल अर्थतंत्र की और इशारा करता है। जहां मानव केवल एक पूंजी भर है, जिससे व्यापार का विस्तार होता है।
■संपादकीय 

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