अब केंद्र और राज्यों के मुखियाओं को शर्म नहीं आती, क्योंकि उनके आंखों की शर्म खुद शर्मसार है। बदलाव के लिए चुनी सरकारों ने आम जनता से मुँह कब का मोड़ लिया था, अब बस बाकी रहा है तो दिखावा और इस दिखावे के साथ समाचार चैनलों का हो-हल्ला। जो माना जाए तो, कभी राजनेताओं, तो कभी बड़े अधिकारियों के रसूक में फंसकर अक्सर सच से मुँह मोड़ लेता है। देश में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों की संख्या कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही है। अब हाल ये हो गया हैं कि मासूम बच्चियां भी सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे में समाज और शासन का ऊपरी दिखावा कि ‛सब कुछ ठीक है’ कब तक चलता हैं ये तो समय ही बताएगा...
देश पहली बार बना महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश
पूरी दुनिया में भारत महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक और असुरक्षित देश माना गया है। 26 जून 2018 को थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की ओर से जारी किए गए एक सर्वे में महिलाओं के प्रति यौन हिंसा, मानव तस्करी और यौन व्यापार में ढकेले जाने के आधार पर भारत को महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक बताया गया है।
इस सर्वे के अनुसार महिलाओं के मुद्दे पर युद्धग्रस्त अफगानिस्तान और सीरिया क्रमश: दूसरे और तीसरे, सोमालिया चौथे और सउदी अरब पांचवें स्थान पर हैं। इस सर्वे में 193 देशों को शामिल किया गया था, जिनमें से महिलाओं के लिए बदतर शीर्ष 10 देशों का चयन किया गया। ऐसा नहीं हैं कि स्थिति केवल आज बदतर हुई हैं पर शासन प्रशासन की अनदेखी और अपराधियों के बच निकलने से मामला भयावह रूप लेता जा रहा हैं। 2011 में भी इस सर्वे में अफगानिस्तान, कॉन्गो, पाकिस्तान, भारत और सोमालिया महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश माने गए थे।
हर घंटे होते हैं 4 रेप
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2007 से 2016 के बीच महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध में 83 फीसदी का इजाफा हुआ है। साथ ही हर घंटे में 4 रेप के मामले दर्ज किए जाते है। ऐसा तब है जब अक्सर महिलाए अपराध के बाद सामाजिक दबाब के कारण रिपोर्ट लिखवाने से कतराती हैं। वास्तविक स्थिति इससे कही ज्यादा भयावह है।बलात्कार, यौन उत्पीड़न और महिलाओं के साथ होने वाले अपराध यही संकेत देते हैं कि भारत सुरक्षित नहीं है। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2015 के दौरान देश में बलात्कार के 34,651 दर्ज किए गए। लेकिन महिला सुरक्षा को लेकर काम कर रहे लोग इसे सही नहीं मानते। उनके मुताबिक बलात्कार के असल मामले इस आंकड़े से भी अधिक होंगे, लेकिन सुरक्षा की कमी और सामाजिक ताने-बाने के चलते कई बार महिलाएं सामने नहीं आती।
हालिया मुजफ्फरपुर, बिहार बालिका गृह दुष्कर्म काण्ड
मामला उस समय संज्ञान में आया जब 26 अप्रैल को टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में पूरे राज्य में बालिका गृहों में रेप, छेडछाड़, शारीरिक हमले और दुर्व्यवहार की पुष्टि की। बालिका गृह में 42 बच्चियों में से 34 के साथ रेप की पुष्टि हो चुकी हैं। मामला इतना गंभीर हैं और विपक्ष की माने तो इसमें सरकार के नुमाइंदों में से ही इतने सफेदपोश शामिल हैं कि न्याय की उम्मीद कम ही दिखाई देती हैं। पहले तो मुख्यमंत्री ने मामले में चुप्पी साधी पर अपराध इतना घृणित हैं कि लोग इसे भूल नहीं पा रहे हैं। लाचार होकर राज्य सरकार ने सीबीआई जाचं के आदेश दिए। पर अब जब अपराधियों में बड़े अधिकारिओं के सम्मलित होने की बात सामने आ रही हैं तो सरकार एक बार पुनः पीछे हटती नजर आ रही हैं।
मामला केवल एक राज्य या केंद्र का नहीं है। घटनाओं की पुनरावृत्ति और प्रशासन की अनदेखी ने भारत में देश की आधी आबादी को डर के साए में जीने को मजबूर कर दिया हैं। अगर इस बार भी केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो वो कहीं ऐसा न हो कि ये आधी आबादी स्वयं दुर्गा का रूप धारण कर महिषासुरों का वध करने लगे, इसलिए जरूरी है कि प्रशासन अपना काम करे, ताकि उस पर लोगों का विश्वास बना रहे।
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