जमीं छोड़ कर मैं किधर जाऊँगा - Kashi Patrika

जमीं छोड़ कर मैं किधर जाऊँगा


जमीं छोड़ कर मैं किधर जाऊँगा,
अँधेरों के अंदर उतर जाऊँगा। 

मेरी पत्तियाँ सारी सूखी हुईं, 
नए मौसमों में बिखर जाऊँगा। 

अगर आ गया आइना सामने, 
तो अपने ही चेहरे से डर जाऊँगा। 

वो इक आँख जो मेरी अपनी भी है, 
न आई नजर तो किधर जाऊँगा। 

वो इक शख्स आवाज देगा अगर,
मैं खाली सड़क पर ठहर जाऊँगा। 

पलट कर न पाया किसी को अगर, 
तो अपनी ही आहट से डर जाऊँगा। 
■ आदिल मंसूरी 

No comments:

Post a Comment