यह जो “माया” है शब्द, बड़ा अर्थपूर्ण है। इसका अर्थ है: जादू। अंग्रेजी में जो मैजिक शब्द है, वह माया से ही आया है। माया का अर्थ है: जहां कुछ नहीं है, वहां कुछ दिखाई पड़ जाना...
जादू का खेल देखा है! जादू के खेल का मतलब क्या होता है? वहां कुछ है नहीं, मगर दिखाई पड़ता है। जादूगर आम की गुठली रोप देता है एक गमले में, कपड़ा ढांक देता है, जमूरे से दो—चार बातें करता है, डमरू बजाता है कि जस्ता आम खाएगा…। बातचीत थोड़ी चली। चांदर उठाता है, आम का पौधा हो गया है! ऐसे आम के पौधे बढ़ते नहीं। फिर कुछ थोड़ी बात चलती है, जमूरे से फिर कुछ वार्तालाप होता है। लोगों को फिर थोड़ी बातचीत में उलझाए रखता है। फिर चांदर उठाता है : आम लग गया!
जादू का अर्थ होता है: जो नहीं होता, जो नहीं हो सकता है, वह दिखाई पड़ रहा है। उसका आभास हो रहा है। माया भी इसी तरह एक आभास मात्र है और आभास का हम रोज—रोज पोषण करते हैं।
एक स्त्री के तुम प्रेम में पड़ गए। फिर विवाह का संयोजन किया। चला, जादू शुरू हुआ! विवाह का आयोजन जादू की शुरुआत है। अब एक भ्रांति पैदा करनी है कि मेरी है, तो बैंड-बाजे बजाए, बारात चली, घोड़े पर तुम्हें दुल्हा बना कर बिठाया गया। विवाह की पूरी प्रकिया एक मनोवैज्ञानिक सजेशन की तरह चलता है और स्त्री-पुरुष दोनों के भीतर गहरे में यह बात बैठ जाती है कि अब तुम दोनों के एक-दूसरे के हो गए सदा के लिए। अब मृत्यु ही तुम्हें अलग कर सकती है। अब माया आगे बढ़ता है, फिर एक दिन तुम्हारा बच्चा पैदा होता है। न पत्नी तुम्हारी थी न पति तुम्हारा था। दो झूठों पर एक तीसरा झूठ चला कि यह बच्चा मेरा है, हमारा है।
सच यह है कि सब परमात्मा का है। तुम्हारा कैसे हो सकता है? भेजने वाला कोई और है। तुम बनाने वाले नहीं हो, बनानेवाला कोई और है। मगर भ्रांतियां चलती चली जाती हैं: मेरा बेटा! फिर मेरे बेटे की प्रतिष्ठा, मेरी प्रतिष्ठा; मेरे बेटे का अपमान, मेरा अपमान। फिर चले तुम। फिर लगे तुम चेष्टा में। अब बेटे को बनाना है ऐसा कि तुम्हारा अहंकार भरे इससे। तुम तो चले जाओ, लेकिन लोग याद करें कि एक बेटा छोड़ गए। उल्लू मर गए, औलाद छोड़ गए!
एक भ्रांति से दूसरी भ्रांति, तीसरी भ्रांति हम खड़ी करते चले जाते हैं। हम एक महल खड़ा कर देते हैं भ्रांतियों का। इस भ्रांति का नाम माया है।
■ ओशो
जादू का खेल देखा है! जादू के खेल का मतलब क्या होता है? वहां कुछ है नहीं, मगर दिखाई पड़ता है। जादूगर आम की गुठली रोप देता है एक गमले में, कपड़ा ढांक देता है, जमूरे से दो—चार बातें करता है, डमरू बजाता है कि जस्ता आम खाएगा…। बातचीत थोड़ी चली। चांदर उठाता है, आम का पौधा हो गया है! ऐसे आम के पौधे बढ़ते नहीं। फिर कुछ थोड़ी बात चलती है, जमूरे से फिर कुछ वार्तालाप होता है। लोगों को फिर थोड़ी बातचीत में उलझाए रखता है। फिर चांदर उठाता है : आम लग गया!
जादू का अर्थ होता है: जो नहीं होता, जो नहीं हो सकता है, वह दिखाई पड़ रहा है। उसका आभास हो रहा है। माया भी इसी तरह एक आभास मात्र है और आभास का हम रोज—रोज पोषण करते हैं।
एक स्त्री के तुम प्रेम में पड़ गए। फिर विवाह का संयोजन किया। चला, जादू शुरू हुआ! विवाह का आयोजन जादू की शुरुआत है। अब एक भ्रांति पैदा करनी है कि मेरी है, तो बैंड-बाजे बजाए, बारात चली, घोड़े पर तुम्हें दुल्हा बना कर बिठाया गया। विवाह की पूरी प्रकिया एक मनोवैज्ञानिक सजेशन की तरह चलता है और स्त्री-पुरुष दोनों के भीतर गहरे में यह बात बैठ जाती है कि अब तुम दोनों के एक-दूसरे के हो गए सदा के लिए। अब मृत्यु ही तुम्हें अलग कर सकती है। अब माया आगे बढ़ता है, फिर एक दिन तुम्हारा बच्चा पैदा होता है। न पत्नी तुम्हारी थी न पति तुम्हारा था। दो झूठों पर एक तीसरा झूठ चला कि यह बच्चा मेरा है, हमारा है।
सच यह है कि सब परमात्मा का है। तुम्हारा कैसे हो सकता है? भेजने वाला कोई और है। तुम बनाने वाले नहीं हो, बनानेवाला कोई और है। मगर भ्रांतियां चलती चली जाती हैं: मेरा बेटा! फिर मेरे बेटे की प्रतिष्ठा, मेरी प्रतिष्ठा; मेरे बेटे का अपमान, मेरा अपमान। फिर चले तुम। फिर लगे तुम चेष्टा में। अब बेटे को बनाना है ऐसा कि तुम्हारा अहंकार भरे इससे। तुम तो चले जाओ, लेकिन लोग याद करें कि एक बेटा छोड़ गए। उल्लू मर गए, औलाद छोड़ गए!
एक भ्रांति से दूसरी भ्रांति, तीसरी भ्रांति हम खड़ी करते चले जाते हैं। हम एक महल खड़ा कर देते हैं भ्रांतियों का। इस भ्रांति का नाम माया है।
■ ओशो
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