जीवन-संगिनि चंचल हिलोर!
प्रति पल विचलित गति से चल कर,
अलसित आ तू इसी ओर॥
मैं भी तो तुझ-सा हूँ विचलित,
कठिन शिलाओं से चिर परिचित;
प्रतिबिम्बित नभ-सा चंचल चित,
फेनिल के आँसू से चर्चित;
जान न पाता हूँ जीवन का--
किस स्थल पर है सुखद छोर॥
सुनें परस्पर सुख-ध्वनियाँ हम,
मैं न अधिक हूँ, और न तू कम;
आज न कर पाऊँगा संयम,
मैं न बनूँ तो, तू बन प्रियतम;
मृदु सुख बन जावे इस क्षण में--
विरह-वेदना अति कठोर।
जीवन-संगिनि चंचल हिलोर॥
■ रामकुमार वर्मा
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