काशी सत्संग: निराशा का अंधेरा - Kashi Patrika

काशी सत्संग: निराशा का अंधेरा


कई बार मनुष्य स्वयं को निराशा के ऐसे अंधेरे में जकड़ लेता है कि उसे ही सच मानकर उसमें डूबने लगता है, जबकि आशा का दामन थामकर बाहर निकलना बहुत आसान होता है। एक बार एक आदमी कुँए पर पानी पी रहा था, तो उसे पानी पिलाने वाली बहन ने मजाक में कह दिया कि तेरे पेट में छोटी-सी छिपकली चली गयी। असल में एक छोटा पत्ता था, जो कुँए के पास लगे पेड़ से गिरा था। उस आदमी के दिमाग में यह बात बैठ गयी कि मेरे पेट में छिपकली चली गयी, अब मैं ठीक होने वाला नहीं हूँ।

उस व्यक्ति के परिजनों ने बहुत इलाज करवाया, किन्तु वह किसी से भी ठीक नहीं हुआ। तब एक बहुत अनुभवी बृद्ध वैद्य ने उस व्यक्ति का पूरा इतिहास सुना और सुनने के बाद उस आदमी को कहा बेटा तू ठीक हो जायेगा, क्योंकि अब छिपकली के निकलने का समय आ गया।

वैद्य ने उस पानी पिलाने वाली बहन को कहा कि उस आदमी को उसी कुँए पर लाकर पुनः पानी पिलाना। जैसे ही वह व्यक्ति अंजलि बना कर पानी पीने बैठा, तो पीछे से किसी ने उसे जोर का थप्पड़ लगाया और कहा कि देखो वह छिपकली निकल गयी। कितनी बड़ी होकर निकली। अगले दिन से वह आदमी धीरे-धीरे ठीक होने लगा । महीने भर बाद वह आदमी एकदम ठीक हो गया। न किसी ने छिपकली पेट में जाते देखी,  न बाहर आते।

इंसान का मन ऐसा है कि यदि कोई बात बैठ गयी, तो वह असंभव को भी संभव बना लेता है। एक बार किसी व्यक्ति को निराश कर दीजिये, फिर वह कुछ करने योग्य नहीं रह जायेगा। यह मानकर चलो कि आप किसी से पराजित नहीं हो सकते- न अपनी समस्याओ से, न बीमारियों से, न कष्टों से और न ही निराशाओं से। 
ऊं तत्सत... 

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