‛दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम’ - Kashi Patrika

‛दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम’


बनारसी ज्ञान॥ 
पाड़े जल्दी में थे और हड़बड़ाए से घर से निकले ही थे कि पड़ोस से मिश्राजी ने आवाज लगाई, “का हो पाड़े, बड़ी जल्दी में हया। आवा चाय हो जाए। बहुत दिन भयल।”
पाड़ेजी असमंजस में पड़ गए, लेकिन बोले हम थोड़ा जल्दी में हैं भाई साहब, फिर कभी। पर मिश्राजी भी कहा मानने वाली पार्टी थे, “कहा जा रहे हैं? कउनो जरूरी काम हय का भाय?” क्रोध पर कण्ट्रोल करते हुए पांडे बोले, “भाई, अटलजी की अस्थि कलश यात्रा आज बनारस में है, सो वही जा रहे हैं।”
मिश्राजी तो जैसे यही सुनने की ताक में थे तपाक से बोले, “तब त भाय, नेतागण जुटिहे। तो पाड़े लगल हाथ पूछ लिहा के राम मन्दिर कब ले बनी।” पाड़ेजी अनमने ही उनकी बात सुन रहे थे, क्योंकि एक तो पड़ोस की बात थी, उस पर वे मित्र का इंतजार कर रहे थे, जिनकी गाड़ी से कलश यात्रा तक पहुंचना था।
मिश्राजी भी लग रहा था कि उनकी मजबूरी समझ गए थे और उम्मीद भी जगी थी कि बात आलाकमान तक पहुंच जाए, क्योंकि पाड़ेजी की मोदी भक्ति को टक्कर देने वाला मोहल्ले में कोई और था भी नहीं। आगे सुर मिलाए, “आपको क्या बताए पाड़ेजी, हम तो राम मंदिर के मॉडल की फोटो भी अपने पूजा घर में रखे हैं। पूजा भी करते हैं, लेकिन अब साक्षात् मन्दिर बन जाए, रामलला विराजे तो दर्शन कर आएं। साथ ही प्रत्यक्ष छवि भी ले आएं।”
पाड़ेजी का तो जैसे मूड बिगड़ गया। मन में ,‛शिव शिव’ किया, पर चेहरे पर और अधिक शालीनता का भाव लाते हुए बोले, “अंतिम यात्रा में कोई ऐसी बातें पूछता है! अटलजी भाजपा के लिए कितने महत्वपूर्ण थे आप जानते भी हैं! प्रधानमंत्रीजी के लिए विश्वास तक करना मुश्किल हो रहा था। आपने उनका भावुक लेख नहीं पढ़ा लगता है।”
मिश्राजी भी कोई सीधी उंगली से निकलने वाले घी तो थे नहीं। चट से बोले, “भाय लेखवेख पढ़ने का ज्यादा शौक तो है नहीं हमको। हाँ न्यूज चाटने की हमारी आदत से तो आप वाकिफ हैं ही। सो अस्थि कलश में जब नेतागण ‛से चीज’ का रिकॉर्ड बनाने में नहीं शर्मा रहे, तो आप एक सवाल पूछने में क्यों लजा रहे हैं।’ आगे भी बोलते रहे, “दूसरा ये की मोदीजी को यकीन हुआ या नहीं ये तो मालूम नहीं, लेकिन उनके सहयोगी शिवसेना को तो लग रहा है 15 अगस्त के ध्वजारोहण और भाषण के लिए मोदीजी अटलजी के निधन पर अविश्वास जताते रहे।”
‛ये सब छोड़िए’ पाड़ेजी अब पूरी तरह आग बबूला हो चुके थे। भाई साहब से संबोधन अब मिश्राजी पर आ गया बोले, “देखिये मिश्राजी, इस बखत हमको देर हो रहा है। तो कल आपके साथ ही चाय पीते हैं, तब सवाल-जवाब भी हो जाएगा।”
मिश्राजी तो जैसे आज आकाशवाणी हो गए थे, “गांव हमारा है रामपुर जो सफाई में फिस्सडी निकला। यहां विश्वनाथ गली में जो हमारी दुकान थी वह आप जानते ही हैं कि विकास की भेंट चढ़ने जा रही है। बेटा कब से पढ़लिख कर प्राइवेट नौकरी में घिस रहा है। तो भाय विकास से तो न हमको कोई लाभ पहुंचा, न आपके सरकार होने से हमरा बेटा सेट हुआ। ले दे के राम लला को लेकर आस का दीया अभी तक टिमटिमा रहा है, तो उस पर फुल एंड फाइनल कर क्यों नहीं देते। आखिर अटलजी की भी तो यही इच्छा थी।” थूक फेंकते हुए आगे मिश्राजी शुरू हो गए, “आपकी पार्टी का राजनीति में चुनावी उत्थान का आधार ही अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के पक्ष में किया गया आंदोलन रहा। 1989 से लेकर 1998 तक के चुनावी  घोषणापत्रों में आपने यही घुट्टी पिलाई है न। हालांकि 2009 और 2014 के चुनावों में यह अंतिम पृष्ठ पर चला गया, लेकिन मुद्दा रहा तो। और यदि संभव नहीं है, तो फिर बार-बार आपके नेतागण इस पर बोलते क्यों है?”
पाड़े समझ गए पीछा छुटना मुश्किल है। तब तक सामने से मित्र महोदय गाड़ी लिए आते दिख गए तो जान में जान आई। झट गाड़ी पर चढ़े और मिलते है के मुद्रा में हाथ उठाया ही था कि मिश्रा बड़बड़ाए, “ये तो वही हाल हो गया जनता का, “दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम”। न  ही विकास हुआ, न रोजी-रोजगार की व्यवस्था ही भई। ख़ैर, जब आप लोग बिना सकुचाए ‛रामलला’ को सालों से वादा की गठरी थमा रहे हैं, तो  पूरा नहीं कर रहे, तो हम लोग की कौन गिनती!!”
मिश्राजी बड़बड़ाते रहे पाड़े चेहरे पर जान छूटने की मुस्कान लिए आगे बढ़ गए।
■ सोनी सिंह 

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