बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ।
अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ॥
संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु।
बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु॥
सावन में हरि गुणगान देवाधिदेव शिव की पावन नगरी काशी में यूं तो 33 करोड़ देवी-देवता निवास करते हैं, पर जिस प्रकार विषधर को राम प्रिय हैं वैसे ही काशी की भी भगवान् राम में अपार श्रद्धा हैं। यहाँ रामचरितमानस की चौपाइयां और दोहे नित्य आराधना के श्रोत हैं। संध्या वंदन में आप को कई जगहों पर श्रद्धालुओं का जमावड़ा मिल जाएगा, जो मंडली में राम वंदन करते नजर आते हैं।
नगरी की भगवान् राम में अपार श्रद्धा का प्रतिक यहां का भव्य 'मानस मंदिर' हैं जिसमें हर दिन रामचरित मानस का पाठ होता हैं। इस मन्दिर को सेठ रतन लाल सुरेका ने बनवाया था। पूरी तरह संगमरमर से बने इस मंदिर का उद्घाटन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा सन 1964 में किया गया। इस मन्दिर के मध्य में श्रीराम, माता जानकी, लक्ष्मणजी एवं हनुमानजी विराजमान है। इनके एक ओर माता अन्नपूर्णा एवं शिवजी तथा दूसरी तरफ सत्यनारायणजी का मन्दिर है। इस मन्दिर की भीतरी दीवार पर रामचरितमानस लिखा गया है। इसके दूसरी मंजिल पर संत तुलसी दास जी विराजमान हैं। इसी मंजिल पर स्वचालित श्रीराम एवं कृष्ण लीला होती है।
सावन के पावन महीने में जब नगर में हर ओर महादेव की आराधना हो रही होती है, तो इस मंदिर परिसर को खूबसूरत ढंग से सजा दिया जाता हैं। लगता हैं जैसे भगवान् शिव स्वयं इस मंदिर में सावन में सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु का श्रृंगार कर रहे हों।
■ काशी पत्रिका
No comments:
Post a Comment