की है कोई हसीन खता हर खता के साथ,
थोड़ा सा प्यार भी मुझे दे दो सजा के साथ।
गर डूबना ही अपना मुकद्दर है तो सुनो,
डूबेंगे हम जरूर मगर नाखुदा के साथ।
मंजिल से वो भी दूर था और हम भी दूर थे,
हम ने भी धूल उड़ाई बहुत रहनुमा के साथ।
रक्स-ए-सबा के जश्न में हम तुम भी नाचते,
ऐ काश तुम भी आ गए होते सबा के साथ।
इक्कीसवीं सदी की तरफ हम चले तो हैं,
फित्ने भी जाग उट्ठे हैं आवाज-ए-पा के साथ।
ऐसा लगा गरीबी की रेखा से हूँ बुलंद,
पूछा किसी ने हाल कुछ ऐसी अदा के साथ।
■ कैफी आजमी
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