‛विपक्षी तरकश में नोटबंदी-राफेल मुद्दों की बरसात है,
तो सत्ता के पास नित नई योजनाओं की सौगात है,
यूं कहें चुनावी नैया पार लगाने के लिए
हर एक के पास अपना-अपना चप्पू है,
इन सब में बस जनता ही ‛पप्पू’ है॥’
किसी भी मुद्दे पर टीवी के खबरिया चैनलों पर डिबेट में हिस्सा ले रहे विभिन्न पार्टियों के प्रवक्ताओं के बयान पर गौर करें, तो पाएंगे कि वे एक-दूसरे की पार्टियों की नाकामियों, घोटालों को गिनाते हैं यानी जनता को ‛चूना’ लगाने का काम सभी ने किया है। गुरुवार को भी कुछ ऐसा ही हुआ और राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‛नोटबंदी' के फैसले को लेकर कठघरे में खड़ा कर दिया। फिर क्या था, बीजेपी नोटबंदी के फायदे समझाने को आकुल हो गई। आप पक्ष-विपक्ष के आरोपों-प्रत्यारोपों को ताक पर रखिए। और दिखती तो है बड़ी भैंस, मगर अक्ल को ही जनाब बड़ी मानिए और उसके घोड़े दौड़ाइए...
चुनिंदा सुपरहिट हिंदी फिल्मों की तरह यहां भी यादें ताजा करने के लिए फ्लैशबैक में चलना पड़ेगा। 8 नवंबर 2016 की रात बीती और अगली सुबह दूध से लेकर सब्जी जैसी रोजमर्रा की आम जरूरत के लिए छुट्टे तलाशे जा रहे थे। कुछ घरों में तो बच्चों के गुल्लक तक टूट गए। अपनी ही मेहनत की कमाई का ब्यौरा देने के लिए लोग महीनों लंबी कतारों में खड़े रहे। लेकिन ज्यादातर चेहरों पर तसल्ली की मुस्कान थी कि देश का भला हो रहा है। सरकार ने भी बढ़ा-चढ़ाकर नोटबंदी के फैसले से कालेधन की वापसी से लेकर आतंकवाद खत्म होने तक के दावे किए, लेकिन एक साल और नौ महीने के बाद जब रिजर्व बैंक की रिपोर्ट आ गई है कि नोटबंदी के बाद 99.30 प्रतिशत 500 और 1000 के नोट वापस आ गए हैं। नोटबंदी के वक्त 15.41 लाख करोड़ सर्कुलेशन में था। 15.31 लाख करोड़ वापस आ गया है। तो सवाल ये उठ रहे हैं कि नोटबंदी को लागू करने से देश को क्या फायदा हुआ? सत्ता पक्ष की ओर से नोटबंदी की कामयाबी को लेकर कोई दमदार दलील अब तक सामने नहीं आई है। इस दौरान हुई मुसीबतों को दरकिनार करते हुए सरकार के दावों एवं जमीनी हकीकत में अंतर समझने का प्रयास करते हैं-
दावा: ‛नकली नोटों पर रोक लग जाएगा’
जानकारों की माने, तो नए नोटों की छपाई और कागज की क्वालिटी इतनी घटिया है कि बंद किए गए नोटों के मुकाबले उनकी नकल कहीं ज्यादा आसान है। रिजर्व बैंक के ही आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2016-17 में जहां दो हजार के 638 जाली नोट पकड़ में आये थे, 2017-18 में इनकी संख्या बढ़कर 17,938 हो गई। तिस पर अब पचास और एक सौ के नोटों को भी जाली मुद्रा के कारोबारियों की नजर लग गई है। एक सौ के जाली नोटों में पैंतीस, तो पचास के जाली नोटों में तकरीबन 154 प्रतिशत की वृद्धि इसी की गवाही देती है।
दावा: कैशलेस इकॉनमी को बढ़ावा
नौ दिसंबर, 2016 को रिजर्व बैंक के मुताबिक आम लोगों के पास 7.8 लाख करोड़ रुपए थे, जो जून, 2018 तक बढ़कर 18.5 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गए हैं। मोटे तौर पर आम लोगों के पास नकदी नोटबंदी के समय से दोगुनी हो चुकी है। इतना ही नहीं रिजर्व बैंक के आंकड़ों से आम लोगों के पास पैसा राष्ट्रीय आमदनी का 2.8 फीसदी तक बढ़ा है, जो बीते छह साल में सबसे ज्यादा आंका जा रहा है। जहां तक डिजिटल लेन-देन की बात है, उसे कितना प्रोत्साहन मिला है, इसका जवाब रिजर्व बैंक यह बताकर पहले ही दे चुका है कि नोटबंदी के दौरान जितने मूल्य के नोट बंद किए गए, उसके बाद उसे उनसे ज्यादा मूल्य के नोट जारी करने पड़े हैं।
दावा: नक्सल और आतंकवाद पर लगाम
नोटबंदी की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के अंदर नक्सलियों और देश के बाहर से फंडिंग पाने वाली आतंकी हरकतों पर नोटबंदी से अंकुश लगने की बात कही थी। लेकिन जिस तरह से बीते मंगलवार को हुए पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार से सवाल ये उठता है कि क्या नोटबंदी के बाद भी नक्सल समर्थक इतने मजबूत हो गए हैं! नोटबंदी से भारत प्रशासित कश्मीर में चरमपंथी हमलों पर अंकुश भी नहीं लगा है। राज्य सभा सांसद नरेश अग्रवाल के पूछे एक सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री हसंराज गंगाराम अहीर ने सदन में बताया था कि जनवरी से जुलाई, 2017 के बीच कश्मीर में 184 आतंकवादी हमले हुए, जो 2016 में इसी दौरान हुए 155 आतंकवादी हमले की तुलना में कहीं ज्यादा थे। गृह मंत्रालय की 2017 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू कश्मीर में 342 चरमपंथी हमले हुए, जो 2016 में हुए 322 हमले से ज्यादा थे। इतना ही नहीं, 2016 में जहां केवल 15 लोगों की मौत हुई थी, 2017 में 40 आम लोगों इन हमलों में मारे गए थे। कश्मीर में चरमपंथी हमले 2018 की शुरुआत से भी जारी हैं।
फायदा या नुकसान!
रिजर्व बैंक और बैंक कर्मियों को फटका
नोटबंदी से देश को हुए फायदों का तो कोई ठोस आधार नहीँ दिखता, किंतु इससे रिजर्व बैंक से लेकर बैंक कर्मियों तक को आर्थिक नुकसान जरूर उठाना पड़ा। नोटबंदी के बाद 2016-17 में भारतीय रिजर्व बैंक ने 500, 2,000 और अन्य मूल्यों के नए नोटों की छपाई पर 7,965 करोड़ रुपये खर्च किए, जो इससे पिछले साल खर्च की गई 3,421 करोड़ रुपये की राशि के दो गुने से भी अधिक है। इसी तरह 2017-18 में जुलाई 2017 से जून 2018 तक बैंक ने नोटों की छपाई पर 4,912 करोड़ रुपये और खर्च किए। इसके अलावा नकदी की किल्लत नहीं हो इसके लिए ज्यादा नोट बाजार में जारी करने के चलते 17,426 करोड़ रुपए का ब्याज भी चुकाना पड़ा। इसके अलावा देश भर के एटीएम को नए नोटों के मुताबिक कैलिब्रेट करने में भी करोड़ों रुपए का खर्च सिस्टम को उठाना पड़ा है।
वहीं, अचानक नोटों के अंबार गिनने का काम थोप दिए जाने के कारण कई कैशियरों से हिसाब जोड़ने में गलती हुई। नतीजतन उन्हें अपनी जेब से 5000 से लेकर 3-3 लाख तक जुर्माना भरना पड़ा।
आम आदमी को झटका
नोटबंदी के दौरान करीब सौ लोगों की जान तो गई ही लोगों को अपने छोटे रोजगार-धंधे गंवाने पड़े। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी (सीएमईआई) के कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्विस (सीपीएचएस) के आंकड़ों के मुताबिक 2016-2017 के अंतिम तिमाही में करीब 15 लाख नौकरियां गई हैं। भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी संगठन भारतीय मजदूर संघ ने भी नोटबंदी पर ये कहा है, "असंगठित क्षेत्र की ढाई लाख यूनिटें बंद हो गईं और रियल एस्टेट सेक्टर पर बहुत बुरा असर पड़ा है। बड़ी तादाद में लोगों ने नौकरियां गंवाई हैं।"
ले-देकर नोटबंदी को लेकर सरकार केवल एक फायदा गिना सकती है, 2017-2018 के इकॉनामिक सर्वे के मुताबिक नोटबंदी के बाद देश भर में टैक्स भरने वाले लोगों की संख्या में 18 लाख की बढ़ोत्तरी हुई है।
■ सोनी सिंह (illustration: साभार)
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