काशी सत्संग: सन्तोषम परम् सुखम - Kashi Patrika

काशी सत्संग: सन्तोषम परम् सुखम


एक दिन वन में गुजरते हुए नारदजी ने देखा कि एक मनुष्य ध्यान में इतना मग्न है कि उसके शरीर के चारों ओर दीमक का ढेर लग गया है। नारदजी को देखकर उसने उन्हें प्रणाम किया और पूछा -प्रभु! आप कहां जा रहे हैं? नारदजी ने उत्तर दिया- मैं बैकुंठ जा रहा हूं।
तब उस व्यक्ति ने नारदजी से निवेदन किया- आप भगवान से पूछकर आएं कि मैं कब मुक्ति प्राप्त करूंगा? नारदजी ने स्वीकृति दे दी। थोड़ा आगे जाने पर नारदजी ने एक दूसरे व्यक्ति को देखा। अपनी धुन में मस्त उस व्यक्ति ने भी नारदजी को प्रणाम कर अपनी जिज्ञासा उनके समक्ष रखी- आप जब भगवान के समक्ष जाएं, तो पूछें कि मैं मुक्त कब होऊंगा? नारदजी ने उसे भी हां कर दी।
लौटते समय दीमक वाले व्यक्ति ने पूछा- भगवान ने मेरे बारे में क्या कहा? नारदजी ने कहा- भगवान बोले कि मुझे पाने के लिए उसे चार जन्म और लगेंगे। यह सुनकर वह योगी विलाप करते हुए कहने लगा- मैंने इतना ध्यान किया कि मेरे चारों ओर दीमक का ढेर लग गया, फिर भी चार जन्म और लेने पड़ेंगे। दूसरे व्यक्ति के पूछने पर नारदजी ने जवाब दिया- भगवान ने कहा कि सामने लगे इमली के पेड़ में जितने पत्ते हैं, उसे मुक्ति के लिए उतने ही जन्म प्रयास करने पड़ेंगे। यह सुन वह व्यक्ति आनंद से नृत्य करने लगा और बोला- मैं इतने कम समय में मुक्ति प्राप्त करूंगा। उसी समय देववाणी हुई मेरे बच्चे! तुम इसी क्षण मुक्ति प्राप्त करोगे।
ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना सीखो। उस ईश्वर ने आपको जो भी और जितना भी दिया है वो आपके कारण नहीं, अपितु अपनी करुणा से दिया है। अगर आपके पास पैरों में पहनने को जूते नहीं, तो चिंता मत करना, क्योंकि इस दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिनके पास पैर ही नहीं हैं। अगर तुम्हारे पास हाथों में पहनने को घड़ी नहीं तो चिन्ता मत करना, क्योंकि कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिनके पास हाथ ही नहीं। आपके पास वो हाथ हैं, जिससे सिकन्दर ने दुनिया जीती। तुम्हारे पास वो दो पैर हैं, जिन पर चलकर कोलंबस ने अमेरिका की खोज की और तुम्हारे पास वो दो आँखें हैं, चक्रवर्ती सम्राट धृतराष्ट्र भी जिनसे वंचित रह गए थे। अगर अब भी आपकी दृष्टि अभाव की तरफ जाती है, तो समझ लेना अब आपके पास सब कुछ है सिवा संतोष के।
ऊं तत्सत...

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