देश की सियासत उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम हर ओर चुनावी मूड में है और 2019 से पहले पूरी तैयारी से मैदान में उतरने की कोशिश हर कोई करता दिख रहा है। 2014 में केंद्र सरकार के गठन के समय कमजोर दिख रहा विपक्ष दिन-ब-दिन मजबूत हो रहा है और कई मुद्दों पर संगठित भी। पेट्रोल-डीजल की आसमान छूती कीमतों के खिलाफ आज कांग्रेस की अगुवाई में तकरीबन डेढ़ दर्जन राजनीतिक पार्टियां सड़क पर भारत बंद का शंखनाद कर रही हैं, तो पिछले कुछ समय से राफेल, नोटबंदी, रुपये की गिरती साख जैसे विषयों पर कांग्रेस लगातार बीजेपी को घेर रही है। इतना ही नहीं बीजेपी के हिंदुत्व पर भी कांग्रेस नजर जमाए है। लेकिन सब कुछ सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है।
मीडिया खबरों के मुताबिक ‘मुद्दों को समझने’ और पीएम पद की ‘बड़ी जिम्मेदारी’ स्वीकार करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पिछले साल दिसंबर से ही अथक प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए विभिन्न विषयों पर विशषज्ञों के साथ मंथन करने से लेकर धरातल पर समझने तक की पुरजोर कोशिश की जा रही है। कांग्रेस की कमान संभालने के बाद से ही अब तक राहुल की एक्सपर्ट्स के साथ 50 से अधिक सत्र में करीब 150 घंटे की मास्टर क्लास हो चुकी है। इनमें देश की मौजूदा समस्याओं जैसे किसान संकट, रोजगार, दलितों, कमजोर वर्गों, महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं को रोकने सहित राफेल की बारीकियों को समझने का प्रयास तक शामिल है।
उधर, देश के विभिन्न हिस्सों में रैली, विशेष व्यक्तियों से मुलाकात हो या साथियों को मनाने की बात बीजेपी के दो दिग्गज मोदी-शाह लगातार सक्रियता बनाए हुए हैं। बावजूद इसके कोई चूक की गुंजाइश सत्ता पक्ष नहीं चाहती। दिल्ली में हुई कार्यकारिणी की बैठक भी इसी चुनावी रणनीति का हिस्सा रही, जिसके जरिए अन्य मुद्दों पर चर्चा के साथ ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं को साधने के अलावा उन्हें आश्वस्त करने का प्रयास किया कि वे विपक्ष की बातों में आए बिना भरोसा रखें कि लोकसभा चुनाव में जीत उनकी ही होगी।
हालांकि, बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही जनता के सामने अपना एजेंडा रखने की अपेक्षा एक-दूसरे पर हमलावर रहेंगे, यहीँ दोनों पार्टियों की रणनीति का हिस्सा दिख रहा है। साथ ही धर्म-जाति का भुनाने की जुगत भी हो रही है, किंतु खुलकर बोलने की बजाय दोनों पार्टियां धर्मनिरपेक्षता पर ही मुखर हैं और राष्ट्रहित की बात कर रही हैं, ताकि महंगाई, रोजगार, शिक्षा...जैसे जमीनी मुद्दों को जिंदा रख अपने हक में भुनाया जा सके। यहीं वजह है कि बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक में 'अजेय भारत और अटल बीजेपी' का नारा बहुत-ही ध्यान रखकर गढ़ा गया है,जिसमें राष्ट्रीयता का पुट भी छिपा हुआ है। साथ ही संघ परिवार की विचारधारा भी देखने को मिलती है।
कुल मिलाकर, जनता जनार्दन को अपने पाले में करने की रणनीति बनाई जा रही है, जिसमें धर्म-जाति के आधार पर जनता को बांटकर उनका साथ भी चाहिए और आम जन की आवश्यकताओं को भी जीवित रखना है, ताकि उन सपनों पर सियासी रोटियां सेंकी जा सके।
■ संपादकीय
मीडिया खबरों के मुताबिक ‘मुद्दों को समझने’ और पीएम पद की ‘बड़ी जिम्मेदारी’ स्वीकार करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पिछले साल दिसंबर से ही अथक प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए विभिन्न विषयों पर विशषज्ञों के साथ मंथन करने से लेकर धरातल पर समझने तक की पुरजोर कोशिश की जा रही है। कांग्रेस की कमान संभालने के बाद से ही अब तक राहुल की एक्सपर्ट्स के साथ 50 से अधिक सत्र में करीब 150 घंटे की मास्टर क्लास हो चुकी है। इनमें देश की मौजूदा समस्याओं जैसे किसान संकट, रोजगार, दलितों, कमजोर वर्गों, महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं को रोकने सहित राफेल की बारीकियों को समझने का प्रयास तक शामिल है।
उधर, देश के विभिन्न हिस्सों में रैली, विशेष व्यक्तियों से मुलाकात हो या साथियों को मनाने की बात बीजेपी के दो दिग्गज मोदी-शाह लगातार सक्रियता बनाए हुए हैं। बावजूद इसके कोई चूक की गुंजाइश सत्ता पक्ष नहीं चाहती। दिल्ली में हुई कार्यकारिणी की बैठक भी इसी चुनावी रणनीति का हिस्सा रही, जिसके जरिए अन्य मुद्दों पर चर्चा के साथ ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं को साधने के अलावा उन्हें आश्वस्त करने का प्रयास किया कि वे विपक्ष की बातों में आए बिना भरोसा रखें कि लोकसभा चुनाव में जीत उनकी ही होगी।
हालांकि, बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही जनता के सामने अपना एजेंडा रखने की अपेक्षा एक-दूसरे पर हमलावर रहेंगे, यहीँ दोनों पार्टियों की रणनीति का हिस्सा दिख रहा है। साथ ही धर्म-जाति का भुनाने की जुगत भी हो रही है, किंतु खुलकर बोलने की बजाय दोनों पार्टियां धर्मनिरपेक्षता पर ही मुखर हैं और राष्ट्रहित की बात कर रही हैं, ताकि महंगाई, रोजगार, शिक्षा...जैसे जमीनी मुद्दों को जिंदा रख अपने हक में भुनाया जा सके। यहीं वजह है कि बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक में 'अजेय भारत और अटल बीजेपी' का नारा बहुत-ही ध्यान रखकर गढ़ा गया है,जिसमें राष्ट्रीयता का पुट भी छिपा हुआ है। साथ ही संघ परिवार की विचारधारा भी देखने को मिलती है।
कुल मिलाकर, जनता जनार्दन को अपने पाले में करने की रणनीति बनाई जा रही है, जिसमें धर्म-जाति के आधार पर जनता को बांटकर उनका साथ भी चाहिए और आम जन की आवश्यकताओं को भी जीवित रखना है, ताकि उन सपनों पर सियासी रोटियां सेंकी जा सके।
■ संपादकीय
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