“जिन खोजा तिन पाइया...” - Kashi Patrika

“जिन खोजा तिन पाइया...”

प्रसन्न रहना एक कला है, जो स्वयं ही सीखनी पड़ती है। तुम दूसरों की अपेक्षाओं को पूरा करके उन्हें प्रसन्न नहीं कर सकते। फिर तुम कुछ भी कर लो, वे तुम्हारे साथ अप्रसन्न होने के मार्ग ढूंढ़ लेंगे...

दूसरों की अपेक्षाओं को पूरा करना बंद करो, क्योंकि यह एक मात्र तरीका है, जिससे तुम आत्महत्या कर सकते हो। तुम यहां किसी की भी अपेक्षाएं पूरी करने के लिए नहीं हो और कोई भी यहां तुम्हारी अपेक्षाएं पूरी करने के लिए नहीं हैं। दूसरों की अपेक्षाओं के कभी भी शिकार मत बनो और किसी दूसरे को अपनी अपेक्षाओं का शिकार मत बनाओ।

यही है जिसे मैं निजता कहता हूं। अपनी निजता का सम्मान करो और दूसरों की निजता का भी सम्मान करो। कभी भी किसी के जीवन में हस्तक्षेप मत करो और किसी को भी अपने जीवन में हस्तक्षेप मत करने दो। सिर्फ तभी किसी दिन तुम आध्यात्म में विकसित हो सकते हो। वर्ना, 99 प्रतिशत लोग आत्महत्या करते हैं। उनका पूरा जीवन कुछ और नहीं बस धीमी गति से आत्महत्या है। यह अपेक्षा और वह अपेक्षा पूरी करते हुए... कभी मां, कभी बाप, कभी पत्नी, पति, फिर बच्चे आते हैं--वे अपेक्षाएं करते हैं। फिर समाज आ जाता है। चारों तरफ सभी अपेक्षाएं कर रहे हैं। तुम बस बेचारे, एक अभागे इंसान और सारी दुनिया तुमसे अपेक्षा कर रही है कि यह करो और वह करो। और तुम दूसरों की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सकते, क्योंकि वे बड़ी विरोधाभासी हैं।

तुम दूसरों की अपेक्षाओं को पूरा करते करते पागल हो गए हो। और तुमने किसी की भी अपेक्षा पूरी नहीं की है। कोई भी प्रसन्न नहीं है। तुम हार गए, नष्ट हो गए और कोई भी प्रसन्न नहीं है। जो लोग स्वयं के साथ खुश नहीं हैं वे प्रसन्न नहीं हो सकते। तुम कुछ भी कर लो, वे तुम्हारे साथ अप्रसन्न होने के मार्ग ढूंढ़ लेंगे, क्योंकि वे प्रसन्न नहीं हो सकते।

प्रसन्नता एक कला है, जो तुम्हें सीखनी होती है। इसका तुम्हारे करने या न करने से कुछ लेना-देना नहीं है। दूसरों को प्रसन्न करने की जगह, प्रसन्न होने की कला सीखो।
ओशो

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