जन्मदिन विशेष॥
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान एक नाम के उच्चारण को लेकर राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निशाने पर आ गए थे। और व्यंग्य के तीर चले।
वह नाम था सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या का। यह नाम खास है, क्योंकि प्राचीन भारत को इस इंजीनियर ने अपनी सूझबूझ से इतना कुछ दिया कि उनके जन्मदिवस को “इंजीनियर्स डे” के रूप में याद किया जाता है।
एम विश्वेश्वरय्या के तेज दिमाग से जुड़ा एक वाक्या काफी मशहूर हुआ। जब रेलगाड़ी में बैठे हुए उन्होंने रेल की गति अस्वाभाविक होने मात्र से भांप लिया कि कुछ गड़बड़ है।
रेलगाड़ी की गति से जान लिया-कुछ गड़बड़ है
यह उस समय की बात है, जब भारत में अंग्रेजों का शासन था। खचाखच भरी एक रेलगाड़ी चली जा रही थी। यात्रियों में अधिकतर अंग्रेज थे। एक डिब्बे में एक भारतीय मुसाफिर गंभीर मुद्रा में बैठा था। सांवले रंग और मंझले कद का वह यात्री साधारण वेशभूषा में था, इसलिए वहां बैठे अंग्रेज उसे मूर्ख और अनपढ़ समझ रहे थे और उसका मजाक उड़ा रहे थे। पर वह व्यक्ति किसी की बात पर ध्यान नहीं दे रहा था। अचानक उस व्यक्ति ने उठकर गाड़ी की जंजीर खींच दी। तेज रफ्तार में दौड़ती वह गाड़ी तत्काल रुक गई। सभी यात्री उसे भला-बुरा कहने लगे। थोड़ी देर में गार्ड भी आ गया और उसने पूछा, ‘जंजीर किसने खींची है?’ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, ‘मैंने खींची है।’ कारण पूछने पर उसने बताया, ‘मेरा अनुमान है कि यहां से लगभग एक फर्लांग की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है।’ गार्ड ने पूछा, ‘आपको कैसे पता चला?’ वह बोला, ‘श्रीमान! मैंने अनुभव किया कि गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आ गया है। पटरी से गूंजने वाली आवाज की गति से मुझे खतरे का आभास हो रहा है।’ गार्ड उस व्यक्ति को साथ लेकर जब कुछ दूरी पर पहुंचा तो यह देखकर दंग रहा गया कि वास्तव में एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए हैं और सब नट-बोल्ट अलग बिखरे पड़े हैं। दूसरे यात्री भी वहां आ पहुंचे। जब लोगों को पता चला कि उस व्यक्ति की सूझबूझ के कारण उनकी जान बच गई है तो वे उसकी प्रशंसा करने लगे। गार्ड ने पूछा, ‘आप कौन हैं?’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘मैं एक इंजीनियर हूं और मेरा नाम है डॉ॰ एम. विश्वेश्वरैया।’ नाम सुन सब स्तब्ध रह गए। दरअसल उस समय तक देश में डॉ॰ विश्वेश्वरैया की ख्याति फैल चुकी थी। लोग उनसे क्षमा मांगने लगे। डॉ॰ विश्वेश्वरैया का उत्तर था, ‘आप सब ने मुझे जो कुछ भी कहा होगा, मुझे तो बिल्कुल याद नहीं है।’
“भारत रत्न”
सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या देश के बड़े इंजीनियर और जानकार रहे हैं। उनका जन्मदिन, 15 सितंबर अभियन्ता दिवस (इंजीनियर्स डे) के रूप में मनाया जाता है। वो मैसूर के 19वें दीवान थे, जिनका कार्यकाल साल 1912 से 1918 के बीच रहा। उन्हें न सिर्फ 1955 में भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया, बल्कि सार्वजनिक जीवन में योगदान के लिए किंग जॉर्ज पंचम ने उन्हें ब्रिटिश इंडियन एम्पायर के नाइट कमांडर से भी नवाजा। वो मांड्या जिले में बने कृष्णराज सागर बांध के निर्माण के मुख्य स्तंभ माने जाते हैं और उन्होंने हैदराबाद शहर को बाढ़ से बचाने का सिस्टम भी दिया।
निजी जीवन
विश्वेश्वरय्या के पिता संस्कृत के जानकार थे। वो 12 साल के थे, जब उनके पिता का निधन हो गया। शुरुआती पढ़ाई चिकबल्लापुर में करने के बाद वो बैंगलोर चले गए जहां से उन्होंने 1881 में बीए डिग्री हासिल की। इसके बाद पुणे गए जहां कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में पढ़ाई की। उन्होंने बॉम्बे में पीडब्ल्यूडी से साथ काम किया और उसके बाद भारतीय सिंचाई आयोग में गए।
कर्नाटक का भगीरथ
दक्षिण भारत के मैसूर को एक विकसित और समृद्धशाली क्षेत्र बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है। तब कृष्णराज सागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फ़ैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ मैसूर समेत कई संस्थान उनकी कोशिशों का नतीजा हैं। इन्हें कर्नाटक का भगीरथ भी कहा जाता है। वो 32 साल के थे, जब उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी भेजने का प्लान तैयार किया, जो सभी इंजीनियरों को पसंद आया। सरकार ने सिंचाई व्यवस्था दुरुस्त बनाने के लिए एक समिति बनाई, जिसके तहत उन्होंने एक नया ब्लॉक सिस्टम बनाया। उन्होंने स्टील के दरवाजे बनाए, जो बांध से पानी के बहाव को रोकने में मदद करते थे। उनके इस सिस्टम की तारीफ ब्रिटिश अफसरों ने भी की। विश्वेश्वरय्या ने मूसी और एसी नामक दो नदियों के पानी को बांधने के लिए भी प्लान बनाया। इसके बाद उन्हें मैसूर का चीफ इंजीनियर नियुक्त किया गया। वो उद्योग को देश की जान मानते थे, इसीलिए उन्होंने पहले से मौजूद उद्योगों जैसे सिल्क, चंदन, मेटल, स्टील आदि को जापान व इटली के विशेषज्ञों की मदद से और अधिक विकसित किया। उन्होंने बैंक ऑफ मैसूर खुलवाया और इससे मिलने वाले पैसे का उपयोग उद्योग-धंधों को बढ़ाने में किया गया। 1918 में वो दीवान पद से सेवानिवृत्त हो गए।
बुढ़ापे को यूं दिया जवाब
विश्वेश्वरैया ने सौ वर्ष से अधिक की आयु ही नहीं पाई, बल्कि जीवन के अंतिम क्षण तक सक्रिय रहे। एक बार एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, 'आपके चिर यौवन का रहस्य क्या है?' विश्वेश्वरैया ने उत्तर दिया, 'जब बुढ़ापा मेरा दरवाजा खटखटाता है, तो मैं भीतर से जवाब देता हूं कि विश्वेश्वरैया घर पर नहीं है। और वह निराश होकर लौट जाता है। बुढ़ापे से मेरी मुलाकात ही नहीं हो पाती तो वह मुझ पर हावी कैसे हो सकता है?' वे कहते थे, 'जंग लग जाने से बेहतर है, काम करते रहना।' 14 अप्रैल, 1962 में बंगलौर में 101 वर्ष की आयु में मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या का निधन हो गया।
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कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान एक नाम के उच्चारण को लेकर राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निशाने पर आ गए थे। और व्यंग्य के तीर चले।
वह नाम था सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या का। यह नाम खास है, क्योंकि प्राचीन भारत को इस इंजीनियर ने अपनी सूझबूझ से इतना कुछ दिया कि उनके जन्मदिवस को “इंजीनियर्स डे” के रूप में याद किया जाता है।
एम विश्वेश्वरय्या के तेज दिमाग से जुड़ा एक वाक्या काफी मशहूर हुआ। जब रेलगाड़ी में बैठे हुए उन्होंने रेल की गति अस्वाभाविक होने मात्र से भांप लिया कि कुछ गड़बड़ है।
रेलगाड़ी की गति से जान लिया-कुछ गड़बड़ है
यह उस समय की बात है, जब भारत में अंग्रेजों का शासन था। खचाखच भरी एक रेलगाड़ी चली जा रही थी। यात्रियों में अधिकतर अंग्रेज थे। एक डिब्बे में एक भारतीय मुसाफिर गंभीर मुद्रा में बैठा था। सांवले रंग और मंझले कद का वह यात्री साधारण वेशभूषा में था, इसलिए वहां बैठे अंग्रेज उसे मूर्ख और अनपढ़ समझ रहे थे और उसका मजाक उड़ा रहे थे। पर वह व्यक्ति किसी की बात पर ध्यान नहीं दे रहा था। अचानक उस व्यक्ति ने उठकर गाड़ी की जंजीर खींच दी। तेज रफ्तार में दौड़ती वह गाड़ी तत्काल रुक गई। सभी यात्री उसे भला-बुरा कहने लगे। थोड़ी देर में गार्ड भी आ गया और उसने पूछा, ‘जंजीर किसने खींची है?’ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, ‘मैंने खींची है।’ कारण पूछने पर उसने बताया, ‘मेरा अनुमान है कि यहां से लगभग एक फर्लांग की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है।’ गार्ड ने पूछा, ‘आपको कैसे पता चला?’ वह बोला, ‘श्रीमान! मैंने अनुभव किया कि गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आ गया है। पटरी से गूंजने वाली आवाज की गति से मुझे खतरे का आभास हो रहा है।’ गार्ड उस व्यक्ति को साथ लेकर जब कुछ दूरी पर पहुंचा तो यह देखकर दंग रहा गया कि वास्तव में एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए हैं और सब नट-बोल्ट अलग बिखरे पड़े हैं। दूसरे यात्री भी वहां आ पहुंचे। जब लोगों को पता चला कि उस व्यक्ति की सूझबूझ के कारण उनकी जान बच गई है तो वे उसकी प्रशंसा करने लगे। गार्ड ने पूछा, ‘आप कौन हैं?’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘मैं एक इंजीनियर हूं और मेरा नाम है डॉ॰ एम. विश्वेश्वरैया।’ नाम सुन सब स्तब्ध रह गए। दरअसल उस समय तक देश में डॉ॰ विश्वेश्वरैया की ख्याति फैल चुकी थी। लोग उनसे क्षमा मांगने लगे। डॉ॰ विश्वेश्वरैया का उत्तर था, ‘आप सब ने मुझे जो कुछ भी कहा होगा, मुझे तो बिल्कुल याद नहीं है।’
“भारत रत्न”
सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या देश के बड़े इंजीनियर और जानकार रहे हैं। उनका जन्मदिन, 15 सितंबर अभियन्ता दिवस (इंजीनियर्स डे) के रूप में मनाया जाता है। वो मैसूर के 19वें दीवान थे, जिनका कार्यकाल साल 1912 से 1918 के बीच रहा। उन्हें न सिर्फ 1955 में भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया, बल्कि सार्वजनिक जीवन में योगदान के लिए किंग जॉर्ज पंचम ने उन्हें ब्रिटिश इंडियन एम्पायर के नाइट कमांडर से भी नवाजा। वो मांड्या जिले में बने कृष्णराज सागर बांध के निर्माण के मुख्य स्तंभ माने जाते हैं और उन्होंने हैदराबाद शहर को बाढ़ से बचाने का सिस्टम भी दिया।
निजी जीवन
विश्वेश्वरय्या के पिता संस्कृत के जानकार थे। वो 12 साल के थे, जब उनके पिता का निधन हो गया। शुरुआती पढ़ाई चिकबल्लापुर में करने के बाद वो बैंगलोर चले गए जहां से उन्होंने 1881 में बीए डिग्री हासिल की। इसके बाद पुणे गए जहां कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में पढ़ाई की। उन्होंने बॉम्बे में पीडब्ल्यूडी से साथ काम किया और उसके बाद भारतीय सिंचाई आयोग में गए।
कर्नाटक का भगीरथ
दक्षिण भारत के मैसूर को एक विकसित और समृद्धशाली क्षेत्र बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है। तब कृष्णराज सागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फ़ैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ मैसूर समेत कई संस्थान उनकी कोशिशों का नतीजा हैं। इन्हें कर्नाटक का भगीरथ भी कहा जाता है। वो 32 साल के थे, जब उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी भेजने का प्लान तैयार किया, जो सभी इंजीनियरों को पसंद आया। सरकार ने सिंचाई व्यवस्था दुरुस्त बनाने के लिए एक समिति बनाई, जिसके तहत उन्होंने एक नया ब्लॉक सिस्टम बनाया। उन्होंने स्टील के दरवाजे बनाए, जो बांध से पानी के बहाव को रोकने में मदद करते थे। उनके इस सिस्टम की तारीफ ब्रिटिश अफसरों ने भी की। विश्वेश्वरय्या ने मूसी और एसी नामक दो नदियों के पानी को बांधने के लिए भी प्लान बनाया। इसके बाद उन्हें मैसूर का चीफ इंजीनियर नियुक्त किया गया। वो उद्योग को देश की जान मानते थे, इसीलिए उन्होंने पहले से मौजूद उद्योगों जैसे सिल्क, चंदन, मेटल, स्टील आदि को जापान व इटली के विशेषज्ञों की मदद से और अधिक विकसित किया। उन्होंने बैंक ऑफ मैसूर खुलवाया और इससे मिलने वाले पैसे का उपयोग उद्योग-धंधों को बढ़ाने में किया गया। 1918 में वो दीवान पद से सेवानिवृत्त हो गए।
बुढ़ापे को यूं दिया जवाब
विश्वेश्वरैया ने सौ वर्ष से अधिक की आयु ही नहीं पाई, बल्कि जीवन के अंतिम क्षण तक सक्रिय रहे। एक बार एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, 'आपके चिर यौवन का रहस्य क्या है?' विश्वेश्वरैया ने उत्तर दिया, 'जब बुढ़ापा मेरा दरवाजा खटखटाता है, तो मैं भीतर से जवाब देता हूं कि विश्वेश्वरैया घर पर नहीं है। और वह निराश होकर लौट जाता है। बुढ़ापे से मेरी मुलाकात ही नहीं हो पाती तो वह मुझ पर हावी कैसे हो सकता है?' वे कहते थे, 'जंग लग जाने से बेहतर है, काम करते रहना।' 14 अप्रैल, 1962 में बंगलौर में 101 वर्ष की आयु में मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या का निधन हो गया।
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