हफ्तेभर की खबरों का लेखाजोखा॥
आम जन के चश्मे से देखे तो, माल्या से लेकर तेल की बढ़ती कीमतों तक सियासी आरोप-प्रत्यारोप के बीच जनता का दामन खाली ही है। महंगाई, रोजगार से लेकर जात-पात तक उसकी हालत “न खुदा ही मिला, न विसाले सनम” जैसी है।राजनीति से इतर सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना और दवाओं पर प्रतिबंध संबंधित अहम फैसले दिए। उधर, आंध्र प्रदेश से कांग्रेस के लिए अच्छी खबर आई, जहां पीएम की रेस में राहुल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समकक्ष खड़े होते दिखे।
माल्या: बीजेपी/कांग्रेस कितने बेदाग
दो मार्च, 2016 को विजय माल्या बाकायदा अपनी मूल पहचान के साथ भारतीय बैंकों को चूना लगाकर विदेश फुर्र हो जाते हैं। एक सरकार की नाक के नीचे उन्हें लोन मिला, नियमों को ताक पर रखकर उन्हें राज्यसभा सांसद भी बनाया गया और दूसरी सरकार के कार्यकाल में वे ठेंगा दिखाकर विदेश जा बैठे। माल्या के महफूज हो जाने के बाद हमेशा की तरह चल पड़ा “झूठी दिलासाओं और आरोप-प्रत्यारोप” का दौर।
फिलहाल, विजय माल्या द्वारा वित्त मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात कर देश छोड़ने की बात कहे जाने को लेकर सियासी गलियारे में कोहराम मचा है और कांग्रेस इसे भुनाने की पुरजोर कोशिश में जुटी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया ने तो दावा तक कर दिया है कि एक मार्च, 2016 को संसद के केंद्रीय कक्ष में शराब कारोबारी विजय माल्या की वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ ‘विधिवत मुलाकात’ हुई थी और इसके वह साक्षी हैं। उनका कहना है कि अगर संसद के सीसीटीवी को खंगाला जाए, तो सच सामने आ जाएगा। इतना ही नहीं, पुनिया ने चुनौती दी कि अगर उनका यह दावा सच साबित नहीं हुआ, तो वह राजनीति छोड़ देंगे।
खैर, पुनिया के दावे की सच्चाई परखने से इतर भी बहुत कुछ समझने को है। समझने की कोशिश करें, तो विजय माल्या को राज्यसभा सदस्य बनाने के लिए 2002 में कांग्रेस ने नियमों की अनदेखी की, जबकि 2010 में यही झोल बीजेपी ने रचा। माल्या चूँकि कर्नाटक से चुनकर आए, इसलिए उनका विवादास्पद चयन और अरबों की देनदारी भी वहीँ के अखबार तक सिमट कर रह गया। बयानबाजी के तीर अब भले छोड़े जा रहे हैं, लेकिन सवालों के जवाब किसी के पास नहीं कि माल्या को सदन तक पहुँचाने की कोशिशें क्यों हुईं? माल्या के देश छोड़ने के बाद सरकार और एजेंसियां क्यों जागी? उनकी तमाम संपत्ति जब्त करने का सिर्फ दिखावटी ऐलान क्यों होता है? इन सबके बीच माल्या यहां-वहां मस्त घूमता-फिरता अपनी जिंदगी उसी ऐश से काट रहा है, और आम जन आस लगाए है कि वह पकड़ा जाएगा! माल्या या उसके जैसे अन्य भगोड़ों पर कार्रवाई करने का दिखावा क्यों?
चुनावी “रावण”
यूपी में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर कब्जा वर्तमान में हर राजनीतिक दल की चाहत भी है, और मजबूरी भी। इसी बिसात पर बीजेपी ने “रावण” को आजाद कर नया पासा फेंक दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ और उनके दो साथियों को रिहा कर दिया है। सरकार दलील दे रही है कि चंद्रशेखर को उनकी मां के आग्रह के बाद रिहा किया गया है। लेकिन बात इतनी सी नहीं है। खुद चंद्रशेखर इसे लेकर सरकार की नीयत पर उंगली उठा रहे हैं। यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि चंद्रशेखर ने जेल से निकलते ही बीजेपी को उखाड़ फेंकने की बात कही, फिर सरकार का क्या फायदा! विशेषज्ञों की मानें तो बीजेपी का यह पैतरा मायावती को घेरने की तैयारी लग रहा है। बहरहाल, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में बीएसपी की कांग्रेस के साथ समझौते को लेकर तस्वीर साफ नहीं हो पा रही, लेकिन चन्द्रशेखर के बहाने यूपी में नए समीकरण बनते दिख रहे हैं। पिछले साल सहारनपुर में हुई हिंसा के आरोपी और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून एनएसए के तहत जेल में बंद चंद्रशेखर उर्फ रावण की भीम सेना सहारनपुर में राजपूत-दलितों के संघर्ष के बाद सुर्खियो में आई। इस इलाके की बड़ी दलित आबादी पारंपरिक रूप से बीएसपी की समर्थक रही है, लेकिन भीम सेना के उदय के साथ ही चंद्रशेखर तेजी से बीएसपी के कोर वोट बैंक यानी जाटवों में मशहूर हो गए।
हालांकि शुरुआती दिनों में मायावती पर हमला बोल चुके चंद्रशेखर अब नर्म पड़ चुके हैं और जेल से रिहा होने के बाद वे मायावती को अपनी बुआ बता रहे हैं। मगर बीजेपी रिहाई के जरिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटव वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में है, जो बीएसपी का जनाधार है। साथ ही, उसकी नजर दलित-मुस्लिम गठजोड़ को भी तोड़ने में है, जिसके चलते कैराना और नूरपुर में हार का सामना करना पड़ा था। उधर, शिवपाल सिंह यादव के सपा से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बना लेने से यादव वोटों में टूट की भी संभावना बढ़ गई है। यानी “फूट डालो” का पासा बीजेपी ने फेंका है, जिसे संभालने में कांग्रेस कामयाब होगी या नहीं यह तो वक्त बताएगा। वैसे, चंद्रशेखर ने यह शंका जताई है कि बीजेपी कहीं फिर किसी नए मामले में उसे गिरफ्तार न कर ले!
तेल में ‛आग’ बरकरार
पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर सरकार की तथाकथित लाचारी और विपक्ष के चुनावी बंद के बीच महंगाई नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। शनिवार को पेट्रोल की कीमत में 28 पैसे और डीजल की कीमत में 22 पैसे की बढोत्तरी की गई। तेल में लगी ‛आग’ का असर अन्य चीजों पर पड़ रहा है, जिससे आम जन परेशान है तथा सरकार से उम्मीद बांधे है कि शायद सरकार ही कुछ रहम कर दे। मगर केंद्र सरकार ने खुद को लाचार बताते हुए फिलहाल जरा भी राहत देने से मना कर दिया है। लेकिन यहां भी सबकुछ जैसा दीखता है, वैसा है नहीं। विशेषज्ञ बताते हैं कि अभी जो पेट्रोल की कीमत है, उस पर केंद्र सरकार करीब 20 रुपये एक्साइज टैक्स लेती है। राज्य सरकार 17 रुपये वैट के रूप में वसूलती है। एक लीटर पेट्रोल की कीमत है करीब साढ़े 40 रुपये। इसी तरह डीजल पर केंद्र सरकार 15 रुपये का टैक्स लेती है, तो राज्य सरकार 10 रुपये का। जबकि एक लीटर डीजल की कीमत है करीब 44 रुपये। यानी केंद्र और राज्य सरकार अपना टैक्स कम कर दे, तो लोगों को राहत मिल जाए।
विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि यूपीए ने 2005-06 से 2013-14 के बीच जितना पेट्रोल-डीजल की एक्साइज ड्यूटी से नहीं वसूला, उससे करीब तीन लाख करोड़ रुपये ज़्यादा उत्पाद शुल्क एनडीए ने चार साल में वसूल लिया है। यानी हाथी के दांत दिखाने के और...।
पीएम रेस में मोदी से आगे निकले राहुल!
आंध्र प्रदेश से कांग्रेस के लिए अच्छी खबर है। यहां पीएम की रेस में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पछाड़ दिया है। ‛आज तक’ चैनल पर प्रसारित ओपिनियन पोल के सर्वे में ये बात सामने आई है। इस सर्वे के अनुसार आंध्रा के 44 फीसदी लोगों ने 2019 में पीएम के लिए राहुल गांधी को पहली पसंद के तौर पर माना है। जबकि नरेंद्र मोदी को मात्र 38 फीसदी लोगों ने पसंद किया है। इंडिया टुडे- माई एक्सिस सर्वे में सीएम के उम्मीदवार पर भी लोगों की सोच अब कुछ अलग ही है। सीएम को लेकर सर्वे के मुताबिक राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री और टीडीपी अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू को जनता दूसरे नंबर पर पसंद कर रही है। सीएम के तौर पर लोगों की पहली पसंद जगनमोहन रेड्डी हैं।
दहेज प्रताड़ना: सुप्रीम कोर्ट ने पलटा फैसला
दहेज उत्पीड़न के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले में बदलाव कर पति और उसके परिवार को मिला सुरक्षा कवच खत्म कर दिया है। शुक्रवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा है कि अब शिकायतों के निपटारे के लिए परिवार कल्याण समिति की समीक्षा की जरूरत नहीं होगी। यानी गिरफ्तारी पुलिस अधिकारी के विवेक पर होगी। हालांकि आरोपी के पास अग्रिम जमानत का विकल्प रहेगा।
पिछले साल 27 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यू यू ललित की पीठ कहा था कि आईपीसी की धारा-498 ए यानी दहेज प्रताड़ना मामले में गिरफ्तारी सीधे नहीं होगी और उनके पास अग्रिम जमानत लेने का विकल्प भी रहेगा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों को सुलझाने के लिए परिवार कल्याण समिति बनाने की बात कही थी। जिसके बाद कई समाजसेवी संस्थाओं ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की थी। इन पर गौर करते हुए, शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को पलट दिया। 35 पेज के ताजा फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि परिवार कल्याण समिति के गठन का निर्देश सही नहीं है। यह समिति न्यायिक दायरे से बाहर की चीज है। साथ ही धारा 498-ए के दुरुपयोग पर कोर्ट ने कहा कि इसे रोकने के लिए पहले से ही दंड प्रक्रिया संहिता में कई प्रावधान और कई फैसले हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसी संदर्भ में सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया है कि वे धारा 498-ए के मामलों की जांच करने वाले अफसरों की जबरदस्त ट्रेनिंग कराएं। यह ट्रेनिंग खासतौर पर गिरफ्तारी से जुड़ी सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय सिद्धांतों की हो। आईपीसी की धारा 498 ए दहेज और दहेज के लिए होने वाली हिंसा के आरोपितों पर लगाई जाती है। इसके तहत दोषी पाए जाने वाले आरोपितों को न्यूनतम तीन साल की सजा का प्रावधान है।
सेहत के लिए खतरनाक 328 दवाओं पर बैन
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 328 दवाओं पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। इनमें अधिकांश दर्द निवारक दवा बताई जाती हैं। इसमें कई ऐसी दवाएं हैं, जो डॉक्टर की पर्ची के बिना दुकान पर आसानी से मिल जाती हैं, लेकिन अब मिलना मुश्किल हो जाएगा। ये फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन (एफडीसी) दवाएं हैं। ड्रग टेक्नोलॉजी एडवाइजरी बोर्ड (डीएटीबी) ने मंत्रालय को इनके प्रतिबंध की सिफारिश की थी। डीएटीबी ने यह सिफारिश सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल दिए गए आदेश पर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल 328 फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन (एफडीसी) वाली दवाओं का फिर से परीक्षण कराने को कहा था। इससे पहले इन दवाओं पर लगाई गई रोक को दिल्ली हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था। केन्द्र सरकार ने कोकाटे समिति की सिफारिश पर 10 मार्च 2016 को 349 एफडीसी दवाओं पर रोक लगा दी थी, जिसके खिलाफ प्रभावित निर्माता हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट गए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मामले का गहराई से विश्लेषण करने के लिए इसे डीटीएबी या फिर डीटीएबी द्वारा गठित उप-समिति को भेजा जाना चाहिए ताकि इन मामलों में नये सिरे से गौर किया जा सके। अब डीएबीटी की सिफारिश पर सरकार ने इन दवाइयों को बैन करने की अधिसूचना जारी कर दी है। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि इसके लिए कोर्ट के दरवाजे खटखटाए जा सकते हैं।
अंततः बशीर बद्र की पंक्तियां
“दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा ही लगे,
उदासियों में भी चेहरा खिला खिला ही लगे।
मेरे मुकद्दर में रौशनी न सही,
ये खिड़की खोलो जरा सुब्ह की हवा ही लगे॥”
■ सोनी सिंह
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