काशी सत्संग: "अलौकिक न्याय" - Kashi Patrika

काशी सत्संग: "अलौकिक न्याय"


एक रोज एक महात्मा अपने शिष्य के साथ भ्रमण पर निकले। गुरुजी को ज्यादा इधर-उधर की बातें करना पसंद नहीं था। कम बोलना और शांतिपूर्वक अपना कर्म करना ही गुरु को प्रिय था परन्तु शिष्य बहुत चपल था। उसे दूसरों की बातों में बड़ा ही आनंद मिलता था। चलते हुए जब वे तालाब के पास से होकर गुजर रहे थे, तो देखा कि एक मछुआरे ने नदी में जाल डाल रखा है।
शिष्य यह देख खड़ा हो गया और मछुआरे को ‘अहिंसा परमो धर्म’ का उपदेश देने लगा। मछुआरे ने उसे अनदेखा किया, लेकिन शिष्य तो उसे हिंसा के मार्ग से निकाल लाने को उतारू ही था।
शिष्य और मछुआरे के बीच इसे लेकर झगड़ा होने लगा। यह देख गुरुजी शिष्य को लेकर आगे बढ़ गए और समझाया- बेटा हम जैसे साधुओं का काम सिर्फ समझाना है, लेकिन ईश्वर ने हमें दंड देने के लिए धरती पर नहीं भेजा है। शिष्य ने पूछा- हमारे राजा को तो बहुत से दंड के बारे में पता ही नहीं, तो आखिर इस हिंसक प्राणी को दंड कौन देगा? गुरू ने कहा- तुम निश्चिंत रहो, इसे भी दंड देने वाली एक अलौकिक शक्ति इस दुनिया में मौजूद है, जिसकी पहुंच सभी जगह है। ईश्वर की दृष्टि सब तरफ है और वह सब जगह पहुंच जाते हैं।
शिष्य गुरुजी की बात सुनकर संतुष्ट हो गया। इस बात के दो वर्ष बाद एक दिन गुरुजी और शिष्य दोनों उसी तालाब से होकर गुजरे। शिष्य अब दो साल पहले की वह मछुआरे वाली घटना भूल चुका था। उन्होंने उसी तालाब के पास देखा कि एक घायल सांप बहुत कष्ट में था। उसे हजारों चीटियां नोच-नोच कर खा रही थीं। शिष्य ने यह दृश्य देखा और उससे रहा नहीं गया। दया से उसका ह्रदय पिघल गया। वह सर्प को चींटियों से बचाने के लिए जाने ही वाला था कि गुरुजी ने उसके हाथ पकड़ लिए और उसे जाने से मना करते हुए कहा- बेटा! इसे अपने कर्मों का फल भोगने दो। यदि अभी तुमने इसे बचाया, तो इस बेचारे को फिर से दूसरे जन्म में यह दुःख भोगने होंगे, क्योंकि कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है। शिष्य ने पूछा- गुरुजी इसने ऐसा कौन-सा कर्म किया है, जो इस दुर्दशा में यह पड़ा है?
गुरुजी बोले- यह वही मछुआरा है, जिसे तुम इसी स्थान पर मछली न मारने का उपदेश दे रहे थे और वह तुम्हारे साथ लड़ने को उतारू था। वे मछलियां ही चींटियां हैं, जो इसे नोच-नोचकर खा रही हैं।
यह सुनते ही आश्चर्य में भरे शिष्य ने कहा- यह तो बड़ा ही विचित्र न्याय है।
गुरुजी बोले- बेटा! इसी लोक में स्वर्ग-नरक के सारे दृश्य मौजूद हैं। हर क्षण तुम्हें ईश्वर के न्याय के नमूने देखने को मिल सकते हैं। चाहे तुम्हारे कर्म शुभ हो या अशुभ उसका फल तुम्हें भोगना ही पड़ता है, इसलिए ही वेद में भगवान ने उपदेश देते हुए कहा है कि अपने किए कर्म को हमेशा याद रखो, यह विचारते रहो कि तुमने क्या किया है, क्योंकि तुमको वह भोगना पड़ेगा। जीवन का हर क्षण कीमती है। इसे बुरे कर्मों में व्यर्थ न करो. अपने खाते में हमेशा अच्छे कर्मों की बढ़ोत्तरी करो क्योंकि जैसे कर्म होंगे वैसा ही फल मिलेगा।
ऊं तत्सत...

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