करोड़ों में कभी कोई एक बुद्ध होता है, करोड़ों बुद्धों में कोई एक प्रगट होता है, शास्त्र बनता है, क्योंकि जान लेना एक बात, कहना और बात होती है। जान लेना एक बात, जना देना और बात...
बुद्ध के पास लोग आ जाते थे और वे वेदों की दुहाई देते थे कि वेद में ऐसा कहा है, आप ऐसा कहते हैं; उपनिषद में ऐसा कहा है, आप ऐसा कहते हैं। आदमी बड़ा दयनीय है, जहां से उपनिषद पैदा होते हैं, वह आदमी मौजूद है। जहां से वेद जन्म लिए हैं, वह आदमी मौजूद है। तुम उसके सामने वेदों की दुहाई दे रहे हो! और तुम यह चेष्टा करते हो कि यह आदमी गलत है, क्योंकि वेद में कुछ और कहा है।
और वेद में जो कहा है, वह तुमने ही अर्थ किया है। वह वेद ने नहीं कहा है, तुमने कहा है। तुम वेद को गवाह बनाकर ला रहे हो। तुम अपने पीछे वेद को खड़ा कर रहे हो। तुम्हें अपने पर भरोसा नहीं हैं। तुम वेद की साक्षी ले रहे हो। और तुम किससे लड़ रहे हो?तो बुद्ध कहते, तुम अपने वेद को बदल लो। तुम अपने उपनिषद में संशोधन कर लो। जरूर कहीं भूल हो गई होगी,लेकिन जब भी कोई तुमसे कहेगा, अपने उपनिषद में संशोधन कर लो, तुम दुश्मन हो जाओगे। तुम पीठ फेर लोगे। लगेगा, यह आदमी तो धर्म का दुश्मन है। यह बड़ी चकित करने वाली बात है। जब भी कोई धर्म को इस पृथ्वी पर लाता है, तभी वह धर्म का दुश्मन मालूम होता है। जिन्हें तुम धर्म के मित्र समझते हो, वे तुम्हारे ही खरीदे हुए पंडित-पुजारी हैं।
फिर दूसरी बात बुद्ध कहते हैं, भली प्रकार उपदिष्ट। सभी का यह सौभाग्य नहीं। सत्य को तो करोड़ों में कभी एक व्यक्ति उपलब्ध होता है। फिर जो व्यक्ति सत्य को उपलब्ध होते हैं, उनमें भी सभी का सौभाग्य नहीं कि वे ठीक से कह सकें, जो उन्होंने जाना है। वह फिर करोड़ों में कभी एक—आध को उपलब्ध होता है। करोड़ों में कभी कोई एक बुद्ध होता है, करोड़ों बुद्धों में कोई एक प्रगट होता है, शास्त्र बनता है, सदगुरु होता है। क्योंकि जान लेना एक बात, कहना बड़ी और बात। जान लेना एक बात, जना देना बड़ी और बात। जानने से भी ज्यादा कठिन है, जना देना।
■ ओशो
बुद्ध के पास लोग आ जाते थे और वे वेदों की दुहाई देते थे कि वेद में ऐसा कहा है, आप ऐसा कहते हैं; उपनिषद में ऐसा कहा है, आप ऐसा कहते हैं। आदमी बड़ा दयनीय है, जहां से उपनिषद पैदा होते हैं, वह आदमी मौजूद है। जहां से वेद जन्म लिए हैं, वह आदमी मौजूद है। तुम उसके सामने वेदों की दुहाई दे रहे हो! और तुम यह चेष्टा करते हो कि यह आदमी गलत है, क्योंकि वेद में कुछ और कहा है।
और वेद में जो कहा है, वह तुमने ही अर्थ किया है। वह वेद ने नहीं कहा है, तुमने कहा है। तुम वेद को गवाह बनाकर ला रहे हो। तुम अपने पीछे वेद को खड़ा कर रहे हो। तुम्हें अपने पर भरोसा नहीं हैं। तुम वेद की साक्षी ले रहे हो। और तुम किससे लड़ रहे हो?तो बुद्ध कहते, तुम अपने वेद को बदल लो। तुम अपने उपनिषद में संशोधन कर लो। जरूर कहीं भूल हो गई होगी,लेकिन जब भी कोई तुमसे कहेगा, अपने उपनिषद में संशोधन कर लो, तुम दुश्मन हो जाओगे। तुम पीठ फेर लोगे। लगेगा, यह आदमी तो धर्म का दुश्मन है। यह बड़ी चकित करने वाली बात है। जब भी कोई धर्म को इस पृथ्वी पर लाता है, तभी वह धर्म का दुश्मन मालूम होता है। जिन्हें तुम धर्म के मित्र समझते हो, वे तुम्हारे ही खरीदे हुए पंडित-पुजारी हैं।
फिर दूसरी बात बुद्ध कहते हैं, भली प्रकार उपदिष्ट। सभी का यह सौभाग्य नहीं। सत्य को तो करोड़ों में कभी एक व्यक्ति उपलब्ध होता है। फिर जो व्यक्ति सत्य को उपलब्ध होते हैं, उनमें भी सभी का सौभाग्य नहीं कि वे ठीक से कह सकें, जो उन्होंने जाना है। वह फिर करोड़ों में कभी एक—आध को उपलब्ध होता है। करोड़ों में कभी कोई एक बुद्ध होता है, करोड़ों बुद्धों में कोई एक प्रगट होता है, शास्त्र बनता है, सदगुरु होता है। क्योंकि जान लेना एक बात, कहना बड़ी और बात। जान लेना एक बात, जना देना बड़ी और बात। जानने से भी ज्यादा कठिन है, जना देना।
■ ओशो
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