काशी सत्संग: श्रीकृष्णम् शरणम् मम्: - Kashi Patrika

काशी सत्संग: श्रीकृष्णम् शरणम् मम्:


एक बार एक ऋषि कुमार ने अपने ज्ञान के अहंकार में एक जंगली भैंसे की हंसी उड़ाई थी। संयोग से वह यम का भैंसा था। वह तुरंत अपने असली रूप में आया और बोला- "रे मूर्ख ऋषि कुमार, तुम्हें नहीं पता कि सृष्टि के सभी प्राणियों में ईश्वर का ही अंश विद्यमान है। तूने भैंसा समझकर मेरा तिरस्कार-अपमान किया अब तू भी इस जीवन में भैंसा बन जाएगा। और जैसे तूने भैंसा समझकर मेरा अपमान किया है, तू भी तिरस्कार पूर्ण जीवन व्यतीत करेगा।”श्राप से ऋषि कुमार तत्काल भैंसा बन गया।
उस जंगल में एक नटखट बंदर रहता था। उसे ऋषि कुमार को तंग करने में बड़ा आनन्द आता। वह कभी उनकी पीठ पर सवार हो जाता, तो कभी पूंछ से लटक कर झूलता, कभी कान में, तो कभी नाक में उंगली डालकर उसे दिन भर परेशान करता था। कई बार गर्दन पर बैठकर दोनों हाथों से सींग पकड़ कर झकझोरता! ऋषि कुमार उससे कुछ भी नहीं कहता था। उसकी सहन-शक्ति और वानर की धृष्टता देखकर देवताओं ने उनसे निवेदन किया, “हे ऋषि कुमार इस नटखट बंदर को आप दंड दीजिए। यह आपको बहुत सताता है और आप इसकी क्रियाओं को चुपचाप सह लेते हैँ।”
वह बोला कि, “मैं इसे अपने सींग से अभी ही दंड दे सकता हूं, परन्तु मैं ऐसा नहीं करता हूं और न ही करुंगा। क्योंकि सभी में ईश्वर का अंश है। अपने से बलशाली के अत्याचार को सहने की शक्ति तो सभी जुटा लेते हैं,
परन्तु सच्ची सहन-शक्ति तो अपने से बलहीन की बातों को सहन करने में है।”
ऐसा विचार करते ही यम के श्राप से देवताओं ने उसे मुक्त कर दिया।
मित्रों, किसी की कमियों पर उसका अपमान-तिरस्कार करने की बजाय पञ्चभौतिक में विद्यमान आत्मा रूपी परमात्मा का सम्मान करना चाहिए।
ऊं तत्सत...

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