काशी सत्संग: तीन गांठें - Kashi Patrika

काशी सत्संग: तीन गांठें


एक दिन भगवान बुद्ध जब प्रवचन सभा में पहुंचे, तो उनके हाथ में एक रस्सी थी। बुद्ध ने आसन ग्रहण किया और बिना किसी से कुछ कहे वे रस्सी में गांठें लगाने लगे। वहां उपस्थित सभी लोग यह देख सोच रहे थे कि अब बुद्ध आगे क्या करेंगे; तभी बुद्ध ने सभी से एक प्रश्न किया, “ मैंने इस रस्सी में तीन गांठें लगा दी हैं। अब मैं आपसे ये जानना चाहता हूं कि क्या यह वही रस्सी है, जो गांठें लगाने से पूर्व थी?”
एक शिष्य ने कहा, “गुरुजी, इसका उत्तर देना थोड़ा कठिन है। ये वास्तव में हमारे देखने के तरीके पर निर्भर है। एक दृष्टिकोण से देखें, तो रस्सी वही है, इसमें कोई बदलाव नहीं आया है। दूसरी तरह से देखें, तो अब इसमें तीन गांठें लगी हुई हैं, जो पहले नहीं थीं। अतः इसे बदला हुआ कह सकते हैं। पर ये बात भी ध्यान देने वाली है कि बाहर से देखने में भले ही ये बदली हुई प्रतीत हो, पर अंदर से तो ये वही है जो पहले थी; इसका बुनियादी स्वरूप अपरिवर्तित है।”
“सत्य है!” बुद्ध ने कहा, “अब मैं इन गांठों को खोल देता हूं।” यह कहकर बुद्ध रस्सी के दोनों सिरों को एक-दूसरे से दूर खींचने लगे। उन्होंने पूछा, “तुम्हें क्या लगता है, इस प्रकार इन्हें खींचने से क्या मैं इन गांठों को खोल सकता हूं?”
“नहीं-नहीं, ऐसा करने से ये गांठें तो और भी कस जाएंगी और इन्हें खोलना और मुश्किल हो जाएगा।” एक शिष्य ने शीघ्रता से उत्तर दिया।
बुद्ध ने कहा, “ठीक है। अब एक आखिरी प्रश्न का उत्तर दो। इन गांठों को खोलने के लिए हमें क्या करना होगा?” शिष्य बोला, “इसके लिए हमें इन गांठों को गौर से देखना होगा, ताकि हम जान सकें कि इन्हें कैसे लगाया गया था और फिर हम इन्हें खोलने का प्रयास कर सकते हैं।”
“मैं यही तो सुनना चाहता था। मूल प्रश्न यही है कि जिस समस्या में तुम फंसे हो, वास्तव में उसका कारण क्या है, बिना कारण जाने निवारण असंभव है। मैं देखता हूं कि अधिकतर लोग बिना कारण जाने ही निवारण करना चाहते हैं। कोई मुझसे ये नहीं पूछता कि मुझे क्रोध क्यों आता है, लोग पूछते हैं कि मैं अपने क्रोध का अंत कैसे करूं? कोई यह प्रश्न नहीं करता कि मेरे अंदर अंहकार का बीज कहां से आया? लोग पूछते हैं कि मैं अपना अहंकार कैसे खत्म करूं?”
प्रिय शिष्यों, जिस प्रकार रस्सी में गांठें लग जाने पर भी उसका बुनियादी स्वरूप नहीं बदलता, उसी प्रकार मनुष्य में भी कुछ विकार आ जाने से उसके अंदर से अच्छाई के बीज खत्म नहीं होते। जैसे हम रस्सी की गांठें खोल सकते हैं, वैसे ही हम मनुष्य की समस्याएं भी हल कर सकते हैं। इस बात को समझो कि जीवन है तो समस्याएं भी होंगी ही और समस्याएं हैं तो समाधान भी अवश्य होगा। आवश्यकता है कि हम किसी भी समस्या के कारण को अच्छी तरह से जानें, निवारण स्वतः ही प्राप्त हो जाएगा।”
ऊं तत्सत...

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