“भय के पार जाना ही साहस है” - Kashi Patrika

“भय के पार जाना ही साहस है”

प्रारंभ में साहसी और डरपोक में फर्क नहीं होता है। दोनों में भय होता है। भेद यह है कि डरपोक अपने भय की सुनता है और उसका अनुसरण करता है। साहसी व्यक्ति उन्हें एक तरफ रख देता है और आगे बढ़ता है...

भय तो है, वह उन्हें जानता है, लेकिन साहसी व्यक्ति सभी भय के बावजूद अज्ञात में जाता है। साहसी का मतलब यह नहीं होता है कि वह भयमुक्त होता है, बल्कि सभी भय के बावजूद अज्ञात में जाने वाला होता है।
जब तुम समुद्र में बगैर नकशे के जाते हो, जैसे कि कोलंबस ने किया, भय होता है, बहुत भय होता है, क्योंकि तुम्हें नहीं पता कि क्या होने वाला है। और तुम सुरक्षा का किनारा छोड़ रहे हो। एक तरह से तुम पूरी तरह से ठीक थे; सिर्फ एक ही बात चूक रही थी-रोमांच। अज्ञात में जाना तुम्हें रोमांचित करता है। हृदय धड़कने लगता है; तुम फिर से जीवंत हो जाते हो, पूरी तरह से जीवंत। तुम्हारे होने का प्रत्येक रेशा जीवंत हो जाता है क्योंकि तुमने अज्ञात की चुनौती को स्वीकारा।
अज्ञात की चुनौती को स्वीकारना साहस है। भय है, लेकिन यदि तुम बार-बार चुनाती को स्वीकारते रहते हो, धीरे-धीरे वे भय तिरोहित हो जाएंगे। अज्ञात जो आनंद लाता है, अज्ञात के साथ जो महान उत्साह घटने लगता है, वह तुम्हें समग्र बनाता है, बहुत अखंडता देता है, तुम्हारी बुद्धिमत्ता को तीक्ष्ण बनाता है। तुम्हें लगने लगता है कि जीवन सिर्फ ऊब ही नहीं है, जीवन रोमांच है। धीरे-धीरे भय तिरोहित होने लगते हैं और तुम नए रोमांच खोजने और ढूंढ़ने लगते हो।
अज्ञात के लिए ज्ञात को, अपरिचित के लिए परिचित को, असुविधाजनक के लिए सुविधानजक को, दुष्कर यात्रा के लिए दांव पर लगा देना साहस है। तुम नहीं जानते कि तुम यह कर पाओगे या नहीं। यह जुंआ है, लेकिन सिर्फ जुंआरी जानते हैं कि जीवन क्या होता है।
■ ओशो

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