पुराने समय में एक राजा थे। राजा की सेवा में असंख्य सेवक-सेविकाएं हर समय उपलब्ध रहते थे। उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी। फिर भी राजा का जीवन सुखमय नहीं था, क्योंकि वह अपने स्वास्थ्य को लेकर काफी परेशान रहते थे। वे सदा बीमारियों से घिरे रहते थे। राजा का उपचार सभी बड़े-बड़े वैद्यों द्वारा किया गया, परंतु राजा स्वस्थ नहीं हो सके। समय के साथ राजा की बीमारी बढ़ती जा रही थी। उनकी बीमारी से राज दरबार भी चिंतित था। अंततः दरबारियों द्वारा नगर में ऐलान करवा दिया गया कि जो भी राजा का स्वास्थ्य ठीक करेगा, उसे असंख्य स्वर्ण मुहरे दी जाएगी।
यह सुनकर एक वृद्ध राजा का इलाज करने महल पहुंचा। वृद्ध ने राजा के पास आकर कहा, ‘महाराज, आप आज्ञा दे तो आपकी बीमारी का इलाज मैं कर सकता हूं।’ राजा की आज्ञा पाकर वह बोला, ‘आप किसी पूर्ण सुखी मनुष्य के वस्त्र पहनिए, आप अवश्य स्वस्थ और सुखी हो जाएंगे।’ वृद्ध की बात सुनकर राजा के सभी मंत्री और सेवक जोर-जोर से हंसने लगे। इस पर वृद्ध ने कहा ‘महाराज आपने सारे उपचार करके देख लिए है, यह भी करके देखिए आप अवश्य स्वस्थ हो जाएंगे।’ राजा ने उसकी बात से सहमत होकर के सेवकों को सुखी मनुष्य की खोज में राज्य की चारों दिशाओं में भेज दिया। परंतु उन्हें कोई पूर्ण सुखी मनुष्य नहीं मिला।
प्रजा में सभी को किसी न किसी बात का दुख था। अब राजा स्वयं सुखी मनुष्य की खोज में निकल पड़े। गर्मी के दिन होने के कारण बाहर राजा का बुरा हाल हो गया और वह एक पेड़ की छाया में विश्राम हेतु रुक गए। तभी राजा को एक मजदूर इतनी धूप में काम करता दिखाई दिया। राजा ने उससे पूछा, ‘क्या, आप पूर्ण सुखी हो?’ मजदूर खुशी-खुशी और सहज भाव से बोला, ‛भगवान की कृपा से मैं पूर्ण सुखी हूं।’ यह सुनते ही राजा भी अतिप्रसन्न हुआ। उसने मजदूर को ऊपर से नीचे तक देखा, तो उसने सिर्फ धोती पहनी थी और वह गाढ़ी मेहनत से पूरा पसीने से तर था। राजा यह देखकर समझ गए कि श्रम करने से ही एक आम मजदूर भी सुखी है और राजा कोई श्रम नहीं करने की वजह से बीमारी से घिरे रहते हैं। राजा ने लौटकर उस वृद्ध का उपकार मान उसे असंख्य स्वर्ण मुद्राएं दी। अब राजा स्वयं आराम और आलस्य छोड़कर श्रम करने लगे। परिश्रम से कुछ ही दिनों में राजा पूर्ण स्वस्थ और सुखी हो गए।
कथा का सार यही है कि आज हम भौतिक सुख-सुविधाओं के इतने आदि हो गए हैं कि हमारे शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति क्षीण हो जा रही है। इससे हम जल्द ही बीमारी की गिरफ्त में आ जाते हैं। अत: स्वस्थ और सुखी जीवन का रहस्य यही है कि थोड़ा बहुत शारीरिक परिश्रम जैसे योगा, ध्यान, भ्रमण आदि अवश्य करें। यानी-
“आसन, सत्संग, ध्यान समाधि,
दूर करैं तन मन की व्याधि॥”
ऊं तत्सत...
यह सुनकर एक वृद्ध राजा का इलाज करने महल पहुंचा। वृद्ध ने राजा के पास आकर कहा, ‘महाराज, आप आज्ञा दे तो आपकी बीमारी का इलाज मैं कर सकता हूं।’ राजा की आज्ञा पाकर वह बोला, ‘आप किसी पूर्ण सुखी मनुष्य के वस्त्र पहनिए, आप अवश्य स्वस्थ और सुखी हो जाएंगे।’ वृद्ध की बात सुनकर राजा के सभी मंत्री और सेवक जोर-जोर से हंसने लगे। इस पर वृद्ध ने कहा ‘महाराज आपने सारे उपचार करके देख लिए है, यह भी करके देखिए आप अवश्य स्वस्थ हो जाएंगे।’ राजा ने उसकी बात से सहमत होकर के सेवकों को सुखी मनुष्य की खोज में राज्य की चारों दिशाओं में भेज दिया। परंतु उन्हें कोई पूर्ण सुखी मनुष्य नहीं मिला।
प्रजा में सभी को किसी न किसी बात का दुख था। अब राजा स्वयं सुखी मनुष्य की खोज में निकल पड़े। गर्मी के दिन होने के कारण बाहर राजा का बुरा हाल हो गया और वह एक पेड़ की छाया में विश्राम हेतु रुक गए। तभी राजा को एक मजदूर इतनी धूप में काम करता दिखाई दिया। राजा ने उससे पूछा, ‘क्या, आप पूर्ण सुखी हो?’ मजदूर खुशी-खुशी और सहज भाव से बोला, ‛भगवान की कृपा से मैं पूर्ण सुखी हूं।’ यह सुनते ही राजा भी अतिप्रसन्न हुआ। उसने मजदूर को ऊपर से नीचे तक देखा, तो उसने सिर्फ धोती पहनी थी और वह गाढ़ी मेहनत से पूरा पसीने से तर था। राजा यह देखकर समझ गए कि श्रम करने से ही एक आम मजदूर भी सुखी है और राजा कोई श्रम नहीं करने की वजह से बीमारी से घिरे रहते हैं। राजा ने लौटकर उस वृद्ध का उपकार मान उसे असंख्य स्वर्ण मुद्राएं दी। अब राजा स्वयं आराम और आलस्य छोड़कर श्रम करने लगे। परिश्रम से कुछ ही दिनों में राजा पूर्ण स्वस्थ और सुखी हो गए।
कथा का सार यही है कि आज हम भौतिक सुख-सुविधाओं के इतने आदि हो गए हैं कि हमारे शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति क्षीण हो जा रही है। इससे हम जल्द ही बीमारी की गिरफ्त में आ जाते हैं। अत: स्वस्थ और सुखी जीवन का रहस्य यही है कि थोड़ा बहुत शारीरिक परिश्रम जैसे योगा, ध्यान, भ्रमण आदि अवश्य करें। यानी-
“आसन, सत्संग, ध्यान समाधि,
दूर करैं तन मन की व्याधि॥”
ऊं तत्सत...
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