काशी सत्संग: संगत की रंगत - Kashi Patrika

काशी सत्संग: संगत की रंगत

एक भंवरे की मित्रता एक गोबरी (गोबर में रहने वाले) कीड़े से थी! एक दिन कीड़े ने भंवरे से कहा- भाई तुम मेरे सबसे अच्छे मित्र हो, इसलिए मेरे यहां भोजन पर आओ।
भंवरा भोजन करने पहुंचा। बाद में भंवरा सोच में पड़ गया कि मैंने बुरे का संग किया इसलिए मुझे गोबर खाना पड़ा! अब भंवरे ने कीड़े को अपने यहां आने का निमंत्रण दिया कि तुम कल मेरे यहां आओ।
अगले दिन कीड़ा भंवरे के यहां पहुंचा। भंवरे ने कीड़े को उठा कर गुलाब के फूल में बिठा दिया। कीड़े ने परागरस पीने का आनंद लिया। वह मित्र का धन्यवाद कर ही रहा था कि पास के मंदिर का पुजारी आया और फूल तोड़ कर ले गया और बिहारी जी के चरणों में चढा दिया! कीड़े को ठाकुरजी के दर्शन हुए। उनके चरणों में बैठने का सौभाग्य भी मिला। संध्या में पुजारी ने सारे फूल एकत्र किए और गंगाजी में प्रवाहित कर दिए। कीड़ा अपने भाग्य पर हैरान था! इतने में भंवरा उड़ता हुआ कीड़े के पास आया, पूछा-मित्र! क्या हाल है? कीड़े ने कहा-भाई! जन्म-जन्म के पापों से मुक्ति हो गई! ये सब अच्छी संगत का फल है-
संगत से गुण ऊपजे, संगत से गुण जाए,
लोहा लगा जहाज में, पानी में उतराय!

मित्रों, कोई भी नहीं जानता कि हम इस जीवन के सफर में एक-दूसरे से क्यों मिलते हैं! सब के साथ रक्त संबंध नहीं हो सकते, परंतु ईश्वर हमें कुछ लोगों के साथ मिलाकर अद्भुत रिश्तों में बांध देता है। हमें उन रिश्तों को हमेशा संजोकर रखना चाहिए।
ऊं तत्सत…

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