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बेबाक हस्तक्षेप

बेबाक हस्तक्षेप

आज जिसे देखो राजनैतिक समीकरणों के जाल में उलझा हुआ है और दलितों और अति पिछड़ो की बात कर रहा है।  दिन तो आज भी याद है जब वोट मांगते समय केंद्र के दोनों मुख्य दलों  ने स्वर्णो के आरक्षण का मुद्दा उठाया था।
कोरी गप्पबाजी करना और टालमटोल अंदाज में मुख्य बातो को इधर उधर घूमना  राजनैतिक कारिंदो की पहचान भर बन कर रह गया है।

इन सब के बीच फस रहा है सवर्ण समाज का वो दावेदार जो योग्यता तो रखता है पर उसके लिए कोई जगह नहीं है, उनके अपने नेता इतने कमजोर और कमजर्फ है की उनकी दावेदारी कौन करे; स्वरोजगार उसका भाग्य कह लो या मज़बूरी बांध दी गई  है इन कमजोर नेताओँ के द्वारा।

हस्तक्षेप करना इस लिए भी जरुरी है कि निकट भविष्य में ये प्रक्रिया जस की तस रहने वाली है। आर्थिक रूप से कमजोर न जाने कितने स्वर्ण आज भुखमरी की कगार तक पहुंचा दिए गए है।

वो जब भी अपना मुद्दा उठता है तो उसको उसके जमीन का हवाला देकर चुप करा  दिया जाता है खेती और रोजगार के लिए मजदूरी कर रहा स्वर्ण अपनी भूमि अधिया पे दलितों को दे चूका होता है और स्वयं किसी प्राइवेट फर्म में नौकरी या सरकारी में गार्ड की नौकरी करने को बाध्य किया जाता है। और अंततः उसकी पूरी जिंदगी दो जून की रोटी कमाने में बीत जाती है।  जबकि उसके उलट दलित और पिछडो को आरक्षण की दो धारी तलवार थमा दी गई है कि जिससे वह जिसे चाहो जब चाहो मरते काटते रहो।

मेरा मानना है कि सवर्णो को एक जुट होकर २०१९ के केंद्रीय चुनावों का बहिष्कार करना चाहिए जब तक कि  उनके हितो के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते.

ये लेखक के निजी विचार है।

- संपादक की कलम से



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