- Kashi Patrika
अधुनिकता को जीता शहर- बनारस 

अधुनिकता के परिपेक्ष्य में हम जब बनारस को आँकते है तब भी बनारस एक शहर के रूप में हमें निराश नहीं करता है। आधुनिक पहनावे की बात हो रही हो चाहे महिलाओं के आर्थिक आत्मनिर्भरता की, हाँ इस विषय में महिलाओं को विकल्प के रूप में बहुत अवसर शहर में के बराबर ही है। राजनीति बदलाब के बाद भी इस ओर कोई बहुत ही ख़ास प्रयास नही ही होता दिख रहा। अधुनिकता के नाम पर जो एकल परिवार का चलन हर शहर में दिखाई पड़ता है वो अब बनारस में भी दिखाई पड़ रहा है,फ्लैट में सिमटते नित नए परिवार।  
 

बनारस के खान पान में भी अब अधुनिकता की झलक देखने को मिलती है, चौक की गलियों में छनने वाली कचौड़ी अगर आज भी बिकती है तो मैकडॉनल्ड्स,बर्गरर्किंग,डोमिनोज़,पिज़्ज़ा हट, मिंग गार्डन और ऐसे ही अनगिनत खाने के शौकीनों के लिए पाश्चात्य खान पान की दुकानें रेस्तरां हैं। 

मोमोस जो के दिल्ली वालो के मुंह का स्वाद है आज बनारस वालो के लिए भी वही मायने रखता है। पहनावे में हर ब्रांड के कपड़ो की दुकान बनारसियों के ख़रीदारी के लिए शहर में मौजूद है और पहनावे में बदलाव का साक्ष्य भी।      

हां बौद्धिक तो बनारस था ही और अब भी शिव की नगरी में वही सांस्कृतिक चमक है बस दायरा घाट और आसपास के मकानों तक ही सिमटता जा रहा है, बाक़ी बनारस तो शायद अब आधुनिक होने के लिए प्रयासरत ही है।

- अदिति सिंह 

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