- Kashi Patrika

बनारस में एक ही मंच से कभी फागुन की बहार तो कभी बही चैती की बयार
चैत की शाम जब फागुन के रंग बिखरे तो हर किसी के जेहन में होली की उमंग जीवंत हो उठी। पीएनयू क्लब के सजे मंच पर काशी की संगीत परंपरा की कड़ी में कभी फागुन की बहार तो कभी चैती की बयार श्रोताओं ने महसूस की। मौका था ‘सुगना बोलतीं हमरी अटरिया’ के आयोजन का। यह शाम पद्मभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र और पद्मश्री मालिनी अवस्थी के सुरों से सजी। कार्यक्रम के दौरान श्रोता आनंद में डूबते, उतराते नजर आए।
 सबसे पहले पद्मभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र ने गणेश वंदना से गायन की शुरुआत की। उनकी दूसरी प्रस्तुति काशी नगरी की महिमा को बखानती ‘काशी नगरी की महिमा अपार है शिव क दरबार है’ रही। भावपूर्ण पेशकश ‘खेले मसाने में होली दिगंबर खेले मसाने में होली’ पर श्रोता झूम उठे। इसके बाद पद्मश्री मालिनी अवस्थी के गायन ने समां बांध दिया।

उन्होंने अपने गायन की शुरुआत ठुमरी से की। शुरुआत राग माज खमाज में ‘जाग पड़ी मैं तो पिया के जगाए’ से किया। इसके बाद दादरा ‘पूरब देश से आई गोरिया’ सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। चैती की शुरुआत ‘सुगना बोलतीं हमरी अटरिया’ से की जिसको श्रोताओं ने खूब सराहा।

उनकी अगली प्रस्तुति चैती रही जिसके बोल ‘सोवत निंदिया...भोरे-भोरे’ सुनाया। उन्होंने एक के बाद एक ठुमरी और चैती पेश की। इस दौरान लोगों ने फरमाइशें भी कीं। सहयोगी कलाकारों में हारमोनियम पर पंडित धर्मनाथ मिश्र, सारंगी पर उस्ताद मुराद अली खां और तबले पर पं. रामकुमार मिश्र ने संगत की। 

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