गंगालहरी
कटाक्षव्याक्षेपक्षणजनितसंक्षोभनिवहाः ।
भवन्तु त्वङ्गंतो हरशिरसि गङ्गातनुभुव-
स्तरङ्गाः प्रोक्तुङ्गा दुिरतभयभङ्गाय भवतां ॥ ३॥
तवालंबादम्ब स्फुरदलघुगर्वेण सहसा
मया सर्वेऽवज्ञासरणिमथ नीताः सुरगणाः ।
इदानीमौदास्यं भजसि यदि भागीरथि तदा
निराधारो हा रोदिमि कथय केषामिह पुरः ॥ ४॥
श्री पंडित जगन्नाथ मिश्र कृत गंगालहरी श्रोत के दो और सुन्दर श्लोकों को आप के साथ साझा कर रहे है। पाठकों से आशा है कि वो इसका आनन्द लेंगे और आगे की कड़ियों का इंतजार करेंगे। अगर देवनागरी हिंदी अनुवाद की आवश्यकता हो तो पाठक हमें इसके लिए कह सकते है।
संपादक की कलम से।