जीवन संतोष/ओशो - Kashi Patrika

जीवन संतोष/ओशो

अपने केंद्र को खोजे बिना, यहां किसी प्रकार की संतुष्टि संभव नहीं है। तुम खोजे चले जा सकते हो और जीवन में तुम बहुत कुछ प्राप्त कर लोगे, लेकिन कुछ भी संतुष्ट नहीं करेगा। जब कोई इच्छा पूरी होती है तब क्षण भर के लिए भ्रम होता है। क्षण भर के लिए तुम्हें अच्छा लगता है, लेकिन क्षण भर के लिए। जैसे ही कोई इच्छा पूरी होती है, दस इच्छाएं उसकी जगह ले लेती हैं । फिर से सारी बैचेनी शुरू हो जाती है, फिर से सारा जंजाल शुरू हो जाता है। और यह कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया है।

सिर्फ अपने केंद्र को पा लेने पर ही यह प्रक्रिया रुकती है, फिर चक्र नहीं चलता। अपने केंद्र पर, घर आ जाने पर, सारी वासनाएं विदा हो जाती हैं--तुम पूरी तरह से, और हमेशा के लिए संतुष्ट हो जाते हो। यह क्षणिक संतुष्टि नहीं होती। यह संतोष है, परम संतोष। अपने भीतर घर आ जाना संतुष्ट करता है, वास्तव में संतुष्ट करता है।

जीवन में सभी चीजें वादे हैं, लेकिन झूठे वादे। कभी कुछ मिलता नहीं। धन वादे करता है कि यदि तुम्हारे पास यह होगा तुम्हें मदद मिलेगी। लेकिन लोग धनी से धनी होते चले जाते हैं और प्रसन्नता कभी भी नहीं आती। यह हमेशा क्षितिज की तरह होती है--बहुत भ्रामक। रिश्ते यह भ्रम देते हैं कि सब कुछ ठीक हो जाएगा और तुम्हारा सारा जीवन आनंदित हो जाएगा, लेकिन ऐसा कभी होता नहीं। केवल अपने केंद्र को पा लेने के साथ, संतोष होता है।

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