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मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे/दुष्यंत कुमार


मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे,
इस बूढे पीपल की छाया में सुस्ताने आयेंगे।

हौले-हौले पाँव हिलाओ, जल सोया है छेड़ो मत,
हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आयेंगे।

थोड़ी आँच बची रहने दो, थोड़ा धुँआ निकलने दो,
तुम देखोगी इसी बहाने कई मुसाफिर आयेंगे।

उनको क्या मालूम निरूपित इस सिकता पर क्या बीती,
वे आये तो यहाँ शंख सीपियाँ उठाने आयेंगे।

फिर अतीत के चक्रवात में, दृष्टि न उलझा लेना तुम,
अनगिन झोंके उन घटनाओं को दोहराने आयेंगे।

रह-रह आँखों में चुभती है, पथ की निर्जन दोपहरी,
आगे और बढ़े तो शायद दृश्य सुहाने आयेंगे।

मेले में भटके होते, तो कोई घर पहुँचा जाता,
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आयेंगे।

हम क्यों बोलें इस आँधी में, कई घरौंदे टूट गये,
इन असफल निर्मितियों के शव कल पहचाने जयेंगे।

हम इतिहास नहीं रच पाये, इस पीड़ा में दहते हैं,
अब जो धारायें पकड़ेंगे इसी मुहाने आयेंगे।।

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