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'अमृत-वाणी' पुनः पंडिताइन बोली ,' हाँ बेटा कह सकते हैं वे,लेकिन उसके लिए उनको समस्या सुननी पड़ेगी। ...


एक पंडित जी थे उनको धर्म का बहुत ज्ञान था रोज़ ही उनसे कोई न कोई अपने दुःखो का कारण और उससे छुटकारे की विधि पूछने उनके घर पर आया ही करता था।  दूर-दूर तक पंडित जी को लोग जानने लगे थे और अपने ही गांव से नहीं अब उनसे मिलने  लोग परदेस तक से आने लगे। लोग अपनी समस्या और उलझन पंडित जी को बताते और उनको कान में मन्त्र दे कर पंडित जी लौटा देते अगर समस्या दूर हो जाती; जो के हो ही जाती थी, तब लोग दक्षिना  देते जिसे पंडित जी का घर परिवार  रहा था।  

किसी दिन एक नौजवान अपनी समस्या लेकर आया लेकिन  पंडित जी घर पर नहीं मिले तो गृह-लक्ष्मी ने उसको बैठाया और  पानी लेने अंदर चली गयी। पानी लेकर जब वह लौटी तब नौजवान ने पंडिताइन के नीरस चेहरे पर कोई भाव न देख कर उसने कहा माता तबियत तो ठीक है। पंडिताइन बोली,' बेटा दो दिनों से बुखार है बस।' नवयुवक बोला, ' माँ पंडित जी ने वैध को नहीं बुलाया ?' गृह लक्ष्मी बोली ,' उनको शायद मालूम नहीं। "  युवक ने आश्चर्य से पूछा, ' पंडित जी तो जान लेते है ,वह तो स्वंम ही उपचार भी कह देंगे। ' 

पुनः पंडिताइन बोली ,' हाँ बेटा कह सकते हैं वे,लेकिन उसके लिए उनको समस्या सुननी पड़ेगी। तुमने ध्यान दिया है तो समस्या मालूम हुयी न। जीवन में जिस चीज़ में ध्यान रमता है बस फिर वहाँ ईश्वर स्वंम ही उपस्थित हो कर काम पूरा करवाता है। '

नवयुवक ने जान लिया के उसकी समस्या का समाधान है और वह है ध्यान से समस्या पर किया गया विचार। और वह माँ के चरण छू कर लौट गया।  

अदिति 

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