मटरगश्ती: देवलोक की धरती 'उत्तर-काशी' - Kashi Patrika

मटरगश्ती: देवलोक की धरती 'उत्तर-काशी'


आत्मा-परमात्मा के मिलन की आस लिए श्रद्धालुओं का तांता मानो बद्रीनाथ और केदारनाथ के कपाट खुलने की ही बाट जोह रहा था। प्राकृतिक कोप का भाजन हो चुकी इस धरती पर तमाम कष्ट उठाकर पहुंचने वाले भक्तों के मुख पर वही निश्छलता व्याप्त थी, जो जननी को देख अबोध बालक के मुख पर होती है। संभवतः यही ईश्वर और भक्तों के परस्पर संबंधों की थाती है, जो उन्हें देवलोक के द्वार तक ले आई। उत्तराखंड के चार धाम का पहला पड़ाव "यमुनोत्री" को  प्रकृति का अद्भुत आश्चर्य कहना अतिश्योक्ति नहीँ होगा। उबलते पानी का कुण्ड और उससे निकलती "ओम" की ध्वनि आपको विस्मय में डालती है, वहीँ दुर्गम्य पर्वत पर स्थित यमुना का वास्तविक उद्गम बर्फ की जमी झील और हिमनद (चंपासर ग्लेशियर) आपको अपनी तरफ खींचता है। 

"यमुनोत्री" उत्तर काशी में स्थित चार धाम यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ का प्रथम पड़ाव है या यूं कहें प्रवेश द्वार है। यहां दर्शनार्थियों के लिए मंदिर के द्वार अप्रैल-मई से ऑक्टूबर-नवंबर तक खुले रहते हैं, इन दिनों मौसम भी बहुत सुहाना बना रहता है। दिसंबर से मार्च तक यह समस्त भाग हिमाच्छादित रहता है और यहां का तापमान शून्य से भी कम रहता है।

यह उत्तरकाशी जिले की राजगढी (बड़कोट) तहसील में तकरीबन 3185 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यमुना नदी की जन्म स्थली मुख्य मंदिर से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर है, जहां पहुंचना संभव नहीँ है, क्योंकि मार्ग अत्यधिक दुर्गम है। यमुना का वास्तविक स्रोत बर्फ की जमी हुई एक झील और हिमनद (चंपासर ग्लेसियर) है, जो समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊंचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है। कालिंद
पर्वत से निकलने के कारण इसे कालिंदी भी कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के चश्मे से यमुना सूर्य देव की पुत्री हैं और मृत्यु के देवता यम की बहन हैं। इसलिए कहा जाता है कि भैयादूज के दिन जो भी व्यक्ति यमुना में स्नान करता है, वह यमत्रास से मुक्त हो जाता है। यहीँ वजह हैं यम से मुक्ति के लिए लोग "यमुनोत्री" में पूजन-दर्शन करते हैं।

यूं आया अस्तित्व में "यमुनोत्री" 
सप्तऋषि कुण्ड यमुना का उदगम स्थल है, फिर "यमुनोत्री" का दर्शन इतना महत्वपूर्ण क्यों बन गया, इससे जुड़ी एक कथा है। असित ऋषि अत्यधिक वृद्धावस्था के कारण जब सप्तऋषि कुंड में स्नान करने के लिए नहीं जा सके, तब उनकी अपार श्रद्धा देखकर यमुना उनकी कुटिया से ही प्रकट हो गई। यही स्थान अब "यमुनोत्री" कहलाता है।

निर्माण का इतिहास
"यमुनोत्री" मंदिर पूर्णतः देवी यमुना को  समर्पित है। यहां यमुना की प्रतीक काले रंग के संगमरमर के पत्थर से बनी है। मंदिर को सर्वप्रथम टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह ने वर्ष 1919 में  बनवाया था। लेकिन, भूकंप के कारण यह मंदिर पूरी तरह नष्ट हो गया। मंदिर का पुनः निर्माण  जयपुर की “महारानी गुलेरिया” ने 19वीं सदी में करवाया था।

पिंड दान की परंपरा
मंदिर के मुख्य गर्भगृह में मां यमुना की काले संगमरमर की मूर्ति विराजमान है, जिनकी पूजा विधि-विधान से की जाती है। इस धाम में पिंड दान का विशेष महत्व है। श्रद्धालु इस मंदिर के परिसर में अपने पितरो का पिंड दान करते है।

दर्शन की कसरत
हनुमान चट्टी (2400मीटर) तक चार पहिया वाहन सुविधा उपलब्ध है। यहां से मंदिर की दूरी 13 किलोमीटर है। इसके बाद नारद चट्टी, फूल चट्टी एवं जानकी चट्टी से होकर यमुनोत्तरी तक पैदल मार्ग है। मंदिर तक की यात्रा पैदल चल कर अथवा टट्टुओं पर सवार होकर तय करनी पड़ती है। अब हल्के वाहनों से जानकीचट्टी तक पहुंचा जा सकता है, जहां से मंदिर की दूरी मात्र 5 किमी दूर है। यहां तीर्थयात्रियों की सुविधाओं के लिए किराए पर पालकी तथा कुली भी आसानी से उपलब्ध रहते हैं। इन चट्टीयों मे सबसे महत्वपूर्ण जानकी चट्टी है, क्योंकि अधिकतर यात्री रात्रि विश्राम का अच्छा प्रबंध होने से रात्रि विश्राम यहीं करते हैं। कुछ लोग इसे सीता के नाम से जानकी चट्टी मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। 1946 में बीफ गांव की रहने वाली एक महिला ने यमुना के दायें तट पर विशाल धर्मशाला बनवाया था। उनका नाम जानकी
था, इसलिए उनकी याद में बीफ गांव "जानकी चट्टी" के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यमुनोत्तरी से कुछ पहले भैंरोघाटी है, जहां भैंरो बाबा का मंदिर है।


धार्मिक-पौराणिक महत्व
यमुनोत्तरी का वर्णन वेद-पुराणों में भी मिलता है, जैसे- कूर्मपुराण, केदारखंड, ऋग्वेद, ब्रह्मांड पुराण में यहां का उल्लेख ‘‘यमुना प्रभव’’ तीर्थ के रूप में मिलता है। महाभारत के अनुसार जब पांडव उत्तराखंड आए, तो वे पहले यमुनोत्तरी, फिर गंगोत्री और उसके बाद केदारनाथ-बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड में चार धाम यात्रा की परंपरा है।
कथाओं के झरोखे से "महामयूरी" ग्रंथ के अनुसार इस क्षेत्र में दुर्योधन का अधिकार था। उसका प्रमाण यह है कि पार्वत्य यमुना उपत्यका की पंचगायीं और गीठ पट्टी में अभी भी दुर्योधन की पूजा होती है। यमुना तट पर शक और यवन बस्तियों के बसने का भी उल्लेख है। काव्यमीमांसाकार ने 10वीं शताब्दी में लिखा है कि यमुना के उत्तरी अंचलों में जहां शक रहते हैं,वहां यम तुषार- कीर भी है। इस प्रकार यमुनोत्तरी धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रही।

यहां है गर्म पानी का कुण्ड

यमुनोत्तरी का आकर्षण यहां स्थित कुण्ड हैं, जिनमें तप्तकुण्ड मुख्य है। यह मंदिर से लगभग 20 फीट की दूरी पर है। केदारखंड में इसका वर्णन "ब्रह्मकुण्ड" के नाम से मिलता है, अब इसे "सूर्यकुण्ड" के नाम से पुकारा जाता है। सूर्यकुण्ड का तापक्रम लगभग 195डिग्री फारनहाइट है, जो कि गढ़वाल के सभी तप्तकुण्डों में सबसे अधिक गरम है। इससे एक विशेष ध्वनि निकलती है,जिसे "ओम् ध्वनि" कहा जाता है। इस स्रोत में थोड़ा गहरा स्थान है, जिसमें आलू व चावल पोटली में डालने पर पक जाते हैं। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले की पार्वती घाटी में मणिकर्ण तीर्थ में स्थित ऐसे ही तप्तकुण्ड को "स्टीम कुकिंग" कहा जाता है।

सूर्यकुण्ड के निकट दिव्यशिला है, भक्तगण भगवती यमुना की पूजा करने से पहले इस शिला की पूजा करते हैं। कुण्ड के पास से उष्ण जल नाली की सी ढलान लेकर निचले गौरीकुण्ड में जाता है, इस कुण्ड का निर्माण जमुनाबाई ने करवाया था,इसलिए इसे जमुनाबाई कुण्ड भी कहते हैं। इसे काफी लंबा-चौड़ा बनाया गया है, ताकि सूर्यकुण्ड का तप्तजल इसमें प्रसार पाकर कुछ ठंडा हो जाय और यात्री स्नान कर सकें। गौरीकुण्ड के नीचे भी तप्तकुण्ड है। यमुनोत्तरी से 4मील ऊपर एक दुर्गम पहाड़ी पर "सप्तर्षि कुण्ड" स्थित है। यहां प्रचलित मान्यताओं के मुताबिक इस कुण्ड के किनारे सप्तॠषियों ने तप किया था। दुर्गम होने के कारण साधारण व्यक्ति यहां नहीं पहुंच सकता।

पहुंचने का रास्ता
वायुमार्ग- देहरादून स्थित जौलिग्रांट निकटतम हवाई अड्डा है। यह मार्ग संख्या 1 ए से होकर यमुनोत्री तक जाता है। इसकी कुल दूरी 210 किलोमीटर है।
रेल- मार्ग संख्या 1ए से होते हुए अंतिम रेल स्टेशन ऋषिकेश से 231 किलोमीटर तथा देहरादनू से 185 किलोमीटर की दूरी पर हैं।
सड़क मार्ग- ऋषिकेश से बस, कार अथवा टैक्सी द्वारा नरेंद्र नगर होते हुए यमुनोत्री के लिए 228 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए फूलचट्टी तक पहुंचा जा सकता है। फूलचट्टी से मंदिर तक पहुंचने के लिए चढ़ाई चढ़नी पड़ती हैं।
-सोनी सिंह

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